पंथ एवं संप्रदाय की सीख के परे धर्माधिष्ठित एवं सभी के लिए उपयुक्त गुरुकृपायोग !

पंथ एवं संप्रदाय की सीख उसके अनुयायियोंतक ही सीमित होती है । सभी को वह अपनी नहीं प्रतीत होती । इसके विपरीत धर्म तो केवल एक है तथा वह सभी के लिए है । गुरुकृपायोग तो धर्म में ही अंतर्निहित है; क्योंकि उसमें बताई गई अष्टांग साधना सभी के लिए उपयक्त है । अष्टांग साधना … Read more

बुद्धिजीवी के अपेक्षा ‘मुझे दिखाई नहीं देता’, इसका खुले मन से स्वीकार करनेवाला श्रेष्ठ !

मोतियाबिंदवाले व्यक्ति को छोटे अक्षर दिखाई नहीं देते । यदि उसे किसी ने पढकर दिखाया, तो मोतियाबिंदवाला व्यक्ति कभी ‘वहां अक्षर है, इसका आप भ्रम उत्पन्न कर रहे हैं’, ऐसा नहीं कहता । वह कहता है, ‘‘मुझे छोटे अक्षर दिखाई नहीं देते ।’’ उपनेत्र लगानेपर उसे छोटे अक्षर पढने आते हैं । इसके विपरीत बुद्धिजिवीयों … Read more

कुछ अच्छा अथवा बुरा होनेपर इस प्रकार से दृष्टिकोण होना चाहिए !

‘कुछ अच्छा होनेपर ‘ईश्‍वर की कृपा से हुआ’, यह दृष्टिकोण होना चाहिए, तो कुछ बुरा होने से ‘मेरे प्रारब्ध के कारण हुआ’, यह विचार होना चाहिए । किसी ने यदि कुछ बुरा किया, तो उसके संदर्भ में ‘मेरे प्रारब्ध का घडा न्यून हुआ’, यह विचार मन में होना चाहिए ।’

हिन्दू राष्ट्र में साधना कैसे की जाती है ?

हिन्दू राष्ट्र में स्थित विद्यालयों में भूगोल, गणित, रसायनशास्त्र इत्यादि जीवन के लिए निरूपयोगी विषयों की अपेक्षा बच्चे सात्त्विक कैसे होंगे, अर्थात साधना कैसे की जाती है ?, इसकी शिक्षा दी जाएगी । उससे रामराज्य की भांति भ्रष्टाचार, बलात्कार, गुंडागर्दी, हत्याआें की संभावना ही न होने से पुलिसकर्मियों की आवश्यकता ही नहीं रहेगी !

बाल्यावस्था जैसी पाश्‍चात्त्य शिक्षा !

पाश्‍चात्त्यों द्वारा दी जानेवाली सभी शिक्षा बाल्यावस्था जैसी है । यहां उसके केवल ३ उदाहरण दिए गए हैं, अपितु प्रत्येक क्षेत्र में यही बात है । १. आधुनिक वैद्यों को रोगी की प्रकृति वात, पित्त अथवा कफप्रधान है, यह ज्ञात नहीं होता । अतः वो सभी प्रकृतिवाले रोगियों को एक जैसी ही औषधियां देते हैं … Read more

ब्रह्मांड में व्याप्त प्राणिमात्रों के कल्याण की चिंता करनेवाले ईश्‍वर

कहां केवल अपने परिजन अथवा अपनी जातिबंधुआें के हित को देखनेवाले संकीर्ण वृत्ति का मनुष्य, तो कहां अनंक कोटि ब्रह्मांड में व्याप्त प्राणिमात्रों के कल्याण की चिंता करनेवाले ईश्‍वर !

क्षयरोग में केवल खांसी की औषधि देने जैसे उपरी उपाय भ्रष्टाचार के संदर्भ में भी करनेवाला शासन !

सर्वत्र व्याप्त भ्रष्टाचार एवं अनैतिकता क्या उपर उपर के उपाय कर रुकनेवाली है क्या ? उसके मूलतक जाने का अर्थ है नैतिकता एवं साधना सिखाना । एेसा करने से सर्वत्र व्याप्त आर्थिक अराजक मूल से बंद हो जाएगा ।

साधना न करनेवालों एवं बुद्धिवादियों को सूक्ष्म विश्व दिखाई नहीं देता

जिस प्रकार अंधों को स्थूल विश्व दिखाई नहीं देता, उसी प्रकार साधना न करनेवालों एवं बुद्धिवादियों को सूक्ष्म विश्व दिखाई नहीं देता । विश्व दिखाई नहीं देता, इस बात को अंधे स्वीकार करते हैें; परंतु बुद्धिवादी अहंकार से कहते हैं कि, सूक्ष्म विश्व ऐसा कुछ नहीं होता !

साधना एवं हिन्दू धर्म की शिक्षा ग्रहण करने हेतु पूरे विश्व के जिज्ञासु एवं साधक भारत में आते हैं

हिन्दू धर्म का मूल्य न जाननेवाले भारत के हिन्दू उच्च शिक्षा हेतु अमेरिका को प्रयाण करते हैं । उसी प्रकार साधना एवं हिन्दू धर्म की शिक्षा ग्रहण करने हेतु पूरे विश्व के जिज्ञासु एवं साधक भारत में आते हैं । ऐसा होते हुए भी भारत के हिन्दुओं को हिन्दू धर्म का मूल्य नहीं है ।