पंथ एवं संप्रदाय की सीख के परे धर्माधिष्ठित एवं सभी के लिए उपयुक्त गुरुकृपायोग !

पंथ एवं संप्रदाय की सीख उसके अनुयायियोंतक ही सीमित होती है । सभी को वह अपनी नहीं प्रतीत होती । इसके विपरीत धर्म तो केवल एक है तथा वह सभी के लिए है । गुरुकृपायोग तो धर्म में ही अंतर्निहित है; क्योंकि उसमें बताई गई अष्टांग साधना सभी के लिए उपयक्त है । अष्टांग साधना में निम्न तत्त्वों का अंतर्भाव है ।
१. स्वभावदोष-निर्मूलन
२. अहं-निर्मूलन
३. भावजागृति
४. नामजप
५. सत्संग
६. सत्सेवा
७. त्याग एवं
८. प्रेमभाव
इसमें से नामजप को छोडकर अन्य सभी तत्त्व सभी पंथ एवं संप्रदायों के लिए लागू होते हैं । शेष रहे नामजप को अपना-अपना पंथ अथवा संप्रदाय के अनुसार चुना जा सकता है ।

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