भाेजशाला (सरस्वती मंदिर)

इस्लामी आक्रमणकारियों से लडनेवाली भोजशाला (सरस्वती मंदिर) को पुनर्वैभव की प्रतीक्षा !

इस्लामी आक्रमणकारियोंने जिस प्रकारसे अयोध्याकी श्रीराम जन्मभूमि, मथुराका श्रीकृष्ण जन्मस्थान एवं काशीके विश्वनाथ मंदिरको बलपूर्वक ले लिया था , उसी प्रकारका प्रयत्न वे धार (मध्यप्रदेश) की भोजशालाके विषयमें कर रहे हैं । भोजशाला, अर्थात विद्याकी देवी सरस्वतीका प्रकटस्थल ! अपने अनेक प्रकारकी विद्याओंका जनक भारतीय विश्वविद्यालय ! महापराक्रमी राजा भोजकी तपोभूमि ! इस सरस्वतीदेवीके मंदिरमें आज प्रत्येक शुक्रवारको ‘नमाज’ पढी जाती है । सहस्रों वर्षसे चल रहा इस भोजशाला मुक्तिका संघर्ष आज भी जारी है । अधर्मी शासन मतोंकी तुष्टीकरण राजनीतिसे प्रेरित होकर हिंदुओंके आस्था केंद्रोंकी उपेक्षा कर रहा है । पुनर्वैभवकी प्रतीक्षा कर रहे भोजशालाकी श्री सरस्वती देवीका परंपरागत वसंतोत्सव शुक्रवार, १२ फरवरी २०१६ को है ।

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भोजशालाका भव्य प्रांगण तथा मध्यभागमें विशाल यज्ञकुंड

इस वसंतोत्सव शुक्रवार, १२ फरवरी २०१६ पर भोजशालामें आप क्या चाहते है  – पूजा या नमाज ?

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चलो भोजशाला (सरस्वती मंदिर) को आजाद करानेके लिए एकजुट हो जाएं !

हिंदुओंको १२ फरवरी २०१६ पर वसंत पंचमीको पूरे दिनके लिए पूजा करनेकी अनुमति देनेकी मांग करें


भोजशालाका इतिहास तथा उसका प्राचीन वैभव !

 शिलालेखपर शब्द – ‘सीताराम’ मंदिरके गर्भगृहकी चौखटपर
 घंटेकी शिल्पकारा
 उत्खननमें पाए गए स्तंभपर  
 देवी-देवताओंकी शिल्पकारी
 उत्खननमें पाए गए व्याघ्रमुख
 एवं स्तंभ
 उत्खननमें पाए गए स्तंभपर 
देवी-देवताओंकी शिल्पकारी

 

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राजा भोज

१. सरस्वती देवीकी प्रकटस्थली, अर्थात वाग्देवी मंदिरका इतिहास ! : ‘पूर्वकालमें मालवा राज्यके (वर्तमान मध्यप्रदेशके) परमार वंशमें महापराक्रमी और महाज्ञानी राजा भोज (शासनकाल वर्ष १०१० से १०६५) हुए । इनकी तपस्यासे प्रसन्न होकर सरस्वती देवीने उन्हें दर्शन दिए थे ।  तत्पश्चात, राजा भोजने सुप्रसिद्ध मूर्तिकार मनथलद्वारा संगमरमर पत्थरसे देवीकी शांतमुद्रामें मनमोहक मूर्ति बनवाई । राजा भोजको जिस स्थानपर वाग्देवीके अनेक समय दर्शन हुए थे, उसी स्थानपर इस मूर्तिकी स्थापना की गई ।

 

२. केवल सरस्वती देवीकी प्रकटस्थली नहीं, अपितु भारतका सबसे बडा विश्वविद्यालय ! : राजा भोजने ‘सरस्वतीदेवीकी उपासना’, ‘हिंदू जीवनदर्शन’ एवं ‘संस्कृत प्रसार’के लिए वर्ष १०३४ में धारमें भोजशालाका निर्माण किया । इस भोजशालामें भारतका सबसे बडा विश्वविद्यालय और विश्वका प्रथम संस्कृत अध्ययन केंद्र बना । इस विश्वविद्यालयमें देश-विदेशके १ सहस्र ४०० विद्वानोंने अध्यात्म, राजनीति, आयुर्वेद चिकित्सा, व्याकरण, ज्योतिष, कला, नाट्य, संगीत, योग, दर्शन इत्यादि विषयोंका ज्ञान प्राप्त किया था । इसके अतिरिक्त इस विद्यालयमें वायुयान, जलयान, चित्रकशास्त्र (कैमरा), स्वयंचलित यंत्र इत्यादि विषयोंमें भी सफल प्रयोग किए गए थे । एक सहस्र वर्षपूर्व राजा भोजके किए हुए कार्यको भारतीय शासकोंने दुर्लक्षित किया था, किंतु आज भी विश्व उसे आश्चर्यभरी दृष्टिसे देख रहा है । इस विषयमें संसारके २८ विश्वविद्यालयोंमें अध्ययन और प्रयोग किए जा रहे हैं ।

भोजशालाका वैभव नष्ट करनेवाले धर्मांध मुसलमान आक्रमणकारी और उनका प्राणपणसे विरोध करनेवाले हिंदू राजा !

१. राजा भोजके राज्यकी अखंडतापर कपटसे आघात करनेवाला ‘सूफी संत (?) कमाल मौलाना’ ! : राजा भोजके असामान्य कर्तृत्वके कारण उनके राज्यपर आक्रमण करनेका साहस किसीको नहीं होता था । उनकी मृत्युके लगभग २०० वर्ष पश्चात, इस राज्यकी अखंडतापर पहला आघात किया सूफी संतके रूपमें घूमनेवाले कमाल मौलानाने ! वर्ष १२६९ में मालवामें आए इस मौलानाने यहां ३६ वर्ष रहकर राज्यके तथा यहांके सर्व गुप्त मार्गोंकी जानकारी एकत्र की । इस कालमें उसने इस्लामका प्रचार, तंत्र-मंत्र, जादूटोना, गंडा-डोराका योजनाबद्ध प्रयोग कर सैकडों हिंदुओंको मुसलमान बनाया । इस स्थितिका अनुचित लाभ उठाते हुए अलाउद्दीन खिलजीने मालवा राज्यपर आक्रमण कर दिया ।

२. इस्लामको अस्वीकार करनेवाले १२०० विद्वानोंको यज्ञकुंडमें जलाकर हत्या करनेवाला और वाग्देवीकी मूर्तिका अंगभंग करनेवाला अलाउद्दीन खिलजी ! : अलाउद्दीन खिलजीने वर्ष १३०५ में मालवा राज्यपर आक्रमण कर दिया । यह आक्रमण रोकनेके लिए राजा महलकदेव और सेनापति गोगादेव जी-जानसे लडे । भोजशालाके आचार्यों और विद्यार्थियोंने भी खिलजीकी सेनाका प्रतिकार किया । किंतु, इस युद्धमें वे पराजित हुए । खिलजीने १२०० विद्वानोंको बंदी बनाकर इनके समक्ष प्रस्ताव रखा -‘इस्लाम धर्म अपना लो’ अथवा ‘मृत्यु’के लिए तत्पर हो जाओ । उसने, मुसलमान बनना अस्वीकार करनेवालोंकी हत्या कर उनके शवोंको भोजशालाके यज्ञकुंडमें फेंक दिया तथा जिन लोगोंने मृत्युसे भयभीत होकर मुसलमान बनना स्वीकार कर लिया, ऐसे कुछ मुट्ठी भर लोगोंको विष्ठा स्वच्छ करनेके कार्यमें लगा दिया । खिलजीने भोजशाला सहित हिंदुओंके अनेक मानबिंदु स्थानोंको उद्ध्वस्त किया । उसने वाग्देवीकी मूर्तिका भी अंग-भंग किया तथा मालवा राज्यमें इस्लामी शासन आरंभ किया ।

श्री वाग्देवी (श्री सरस्वती देवी) के गर्भगृहके सर्वओर नई मार्बलकी पट्टी जिसपर अरबी भाषामें लिखा है । इसके साथ मंदिरके गर्भगृहके समीप नमाज पढनेवाले मौलवीके लिए बनाया गया चबूतरा ।

(संपूर्ण मंदिर गुलाबी पत्थरोंसे बना हुआ है । मंदिरमें इस मार्बलकी पट्टीके अतिरिक्त कहीं भी मार्बलका उपयोग नहीं किया गया है । इसीसे स्पष्ट हो जाता है कि यह पट्टी बादमें लगाई गई है ।) 

३. श्री सरस्वती मंदिरके कुछ भागका मस्जिदमें रूपांतर करनेवाला हिंदूद्वेषी दिलावर खां गोरी ! : खिलजीके पश्चात गोरीने वर्ष १४०१ में मालवा राज्यको अपना राज्य घोषित किया तथा सरस्वती मंदिरका कुछ भाग मस्जिदमें रूपांतरित कर दिया ।

४. भोजशालाको मस्जिदमें बनानेके लिए उसे खंडित करनेका प्रयत्न करनेवाला तथा कमाल मौलानाको महान बतानेवाला महमूदशाह खिलजी ! : गोरीके पश्चात महमूदशाह खिलजीने वर्ष १५१४ में भोजशालाको खंडित कर वहां मस्जिद बनानेका प्रयत्न किया । महमूदशाहके इस कुकृत्यका राजपूत सरदार मेदनीरायने प्रबल प्रत्युत्तर दिया । इस प्रत्युत्तरकी विशेषता यह थी कि महमूदशाहको चुनौती देनेके लिए सरदार मेदनीरायने मालवा राज्यके वनवासियोंको प्रेरित किया । धर्मयुद्धकी प्रेरणासे संगठित वनवासियोंकी सहायतासे मेदनीरायने महमूदशाहके सहस्रों सैनिकोंको मार डाला तथा ९०० सैनिकोंको बंदी बना लिया । अंततः, इस पराजयसे भयभीत महमूदशाहने गुजरात पलायन किया ।

महमूदशाह तो भाग गया; किंतु कमाल मौलानाकी मृत्युके २०४ वर्ष पश्चात उसने अपने शासनकालमें, भोजशालाकी बाहरी भूमिपर अवैध अधिकार कर वहां पर उसकी कब्र बना दी । यह कब्र आज भी हिंदुओंके लिए सिरदर्द बनी हुई है । आज इस कब्रके आधारपर देवी सरस्वतीके मंदिरको कमाल मौलानाकी मस्जिद बनानेका षड्यंत्र रचा जा रहा है ।  प्रत्यक्षमें वर्ष १३१० में कमाल मौलानाकी मृत्युके पश्चात उसे कर्णावती (अहमदाबाद), गुजरातमें दफना दिया गया ।

 

दृश्यपट (video) : भाेजशाला का इतिहास एवं उसकी रक्षा हेतु हिंदूआेंका लडा

भाग १ (हिंदी) »

भाग २ (हिंदी) »

भाग ३ (हिंदी) »

भाग ४ (हिंदी) »

 

भाेजशाला आंदाेलन : नवलकिशाेर शर्मा के साथ हुआ वार्तालाप २०१२

 

हिंदुओंका प्रवेश वर्जित कर मंदिरको मस्जिदमें रूपांतरित करनेवाले (मौलाना) दिग्विजय सिंह !

सैकडों वर्षसे आरंभ भोजशालापर आक्रमणके इतिहासमें भारतकी स्वतंत्रताके पश्चात, १२.५.१९९७ को एक नया मोड आया, जब कांग्रेसके तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंहने एक अध्यादेश जारी कर अपना हिंदूद्वेष प्रकट किया । इस अध्यादेशके अनुसार भोजशालाकी सर्व प्रतिमाओंको हटा दिया गया । वहां हिंदुओंका प्रवेश वर्जित कर दिया गया । दिग्विजय सिंहका हिंदूद्वेष इतनेपर ही नहीं थमा, उन्होंने भोजशालाको मस्जिद होनेकी मान्यता दे डाली । उन्होंने, भोजशालाकी रक्षा हेतु पराक्रमी हिंदू राजाओंके और सैनिकोंके बलिदानका अनादर करते हुए भोजशाला मुसलमानोंको दे डाली । भोजशालामें नमाज पढनेकी अनुमति देकर उसे भ्रष्ट भी किया गया । इस अध्यादेशसे पूर्व भोजशालामें हिंदुओंकी पूजा-अर्चनापर प्रतिबंध था; परंतु प्रवेशकी अनुमति थी । यह अनुमति भी इस अध्यादेशद्वारा समाप्त कर दी गई । हिंदुओंको वर्षमें केवल एक दिन वसंत पंचमीपर विविध प्रतिबंधात्मक नियमोंके साथ भोजशालामें प्रवेशकी अनुमति दी गई ।

वर्ष २००२ में तो हिंदुओंको वर्षमें एक दिन दी गई भोजशाला प्रवेशकी अनुमतिमें भी बाधा डाली गई । इस वर्षकी वसंत पंचमी समीप आनेपर कमाल मौलानाके जन्मदिनको निमित्त बनाकर भोजशालामें नमाज, कव्वाली और लंगरका आयोजन किया गया । तत्कालीन कांग्रेसी शासनने भी हिंदुओंपर पहलेसे अधिक कडा नियम बनाकर धर्मांधोंको  प्रोत्साहित किया । इस परिवर्तित नियमके अनुसार वसंत पंचमीके दिन हिंदुओंको दिनके १ बजेतक ही पूजा-अर्चना करनेकी तथा मंदिरमें अकेले प्रवेश करनेकी अनुमति दी गई । सबके लिए एक ढोलक, एक ध्वनिक्षेपक और ध्वज भी एक होगा । दोपहर २ बजेके पश्चात मुसलमानोंका कव्वाली और लंगरका कार्यक्रम आरंभ होगा, यह आदेश प्रशासनने जारी किया ।

न्यायोचित धार्मिक अधिकारोंके लिए संघर्ष करनेवाले हिंदुओंपर किए गए अगणित अत्याचार !

हिंदुओंके धार्मिक अधिकारोंका हनन करनेवाले प्रशासनिक आदेशको अमान्य कर सहस्रों हिंदू भोजशालामें पूजा करने आए । उस दिन राजकीय अवकाश होनेके कारण हिंदुओंको अपनी न्यायोचित मांगोंके लिए भी कोई मंच उपलब्ध नहीं था । हिंदूद्वेषी शासकोंके आदेशसे पुलिस कर्मियोंने यज्ञ करने भोजशालामें जानेवाले युगलोंको रोका, गालियां दी तथा महिलाओंके हाथसे पूजाकी थाली छीनकर फेंक दी । हिंदुओंको धक्के मारकर पीछे ढकेला तथा बिना कोई पूर्वसूचना दिए श्रद्धालुओंपर लाठी प्रहार किया । यह सब सहकर भी हिंदुओंने कठोर विरोध करते हुए भोजशालामें यज्ञ और सरस्वतीदेवीकी महाआरती पूर्ण की । हिंदुओंके इस सफल कृत्यसे क्रुद्ध कांग्रेसी राज्यशासनने देवीकी पूजा करनेके अपराधमें ४० कार्यकर्ताओंपर पुलिसकी दैनंदिनीमें असत्य आरोप प्रविष्ट किए । शासनकी इस दमननीतिका प्रत्युत्तर देनेके लिए सहस्रों लोगोंने धार जनपदके सर्व पुलिस थानोंका घेराव कर अपनेआपको बंदी बनवाया । तत्पश्चात, सत्याग्रहके रूपमें प्रत्येक मंगलवारको भोजशालाके बाहर मार्गमें आकर ‘सरस्वती वंदना’ और ‘हनुमान चालीसा पढना’ प्रारंभ किया गया ।

असंख्य अत्याचारोंका भय त्यागकर भोजशालाको मुक्त करनेके ध्येयसे व्यापक संगठन खडा करनेवाले धर्माभिमानी हिंदू !

कांग्रेसी शासनकी दमननीतिका अनुभव करनेवाले हिंदुओंने किसी भी परिस्थितिमें वर्ष २००३ तक भोजशाला हिंदुओंके लिए मुक्त करनेके उद्देश्यसे व्यापक जनजागरण कर ‘धर्मरक्षक संगम’ सभा आयोजित करनेका निश्चय किया । इन सभाओंको व्यापक जन समर्थन मिलता देखकर घबराए दिग्विजय सिंह शासनने ‘धर्मरक्षक संगम’को विफल बनानेके लिए प्रयत्न आरंभ कर दिए । कांग्रेसी शासनने अत्यंत निम्नस्तरपर जाकर निम्नानुसार दुष्टताका हथकंडा अपनाकर हिंदुओंके संगठनमें बाधाएं उपस्थित करनेका प्रयत्न किया –

१. शासनने, इस कार्यक्रमके प्रचारके लिए चिपकाए गए २० सहस्र भित्ति-पत्रकोंको पुलिसकर्मियोंके हाथों फडवा दिया अथवा उनपर कोलतार पोतवा दिया ।

. वसंत पंचमी समीप आनेपर ही राज्य शासनने ‘ग्राम संपर्क  अभियान’ आरंभ कर उसमें १९ सहस्र हिंदू राजकीय सेवकोंको नियुक्त किया ।

३. ‘धर्मरक्षक संगमके कार्यक्रममें उपद्रव एवं बमविस्फोट होंगे’,यह भय फैलाकर लोगोंको कार्यक्रममें जानेसे रोका । 

४. वसंत पंचमीके केवल पांच दिन पूर्व धारस्थित सर्व धर्मशाला, पाठशाला, ‘लॉज’ और बसगाडियोंको अधिगृहीत कर लिया गया तथा निजी वाहनवालोंको धमकाया । 

५. गांवोंमें ५ सहस्र सैनिकोंका पथसंचलन (परेड) करवाकर भयका वातावरण उत्पन्न किया ।

६. वसंत पंचमीके दिन राज्यशासनने १६ केंद्रोंमें ३२ विभागोंसे संबंधित जनसमस्याओंका निवारण करनेके लिए शिविरोंका आयोजन किया । इस शिविरमें प्रस्तुत की गई सभी समस्याओंका निवारण तुरंत किया, जिन्हें पहले करनेमें अनेक फेरे मारने पडते थे । इसी प्रकार, इस शिविरमें सहस्रों लोगोंको निःशुल्क भोजन दिया ।

केंद्रशासनका आदेश अमान्य कर राज्य शासनद्वारा हिंदुओंपर अगणित अत्याचार कर भोजशालाको मस्जिद घोषित किया जाना !

भोजशाला परिसरमें आक्रमक मुसलमानोंद्वारा बनाई गई मस्जिद

कांग्रेसी शासनके उपर्युक्त हिंदूद्रोही षड्यंत्रको विफल करते हुए १ लाखसे अधिक हिंदू धर्माभिमानी ‘धर्मरक्षा संगम’में उपस्थित हुए थे । इस सभामें शासनको चेतावनी दी गई कि वह भोजशालाको हिंदुओंके लिए प्रतिबंधमुक्त करे । इस आंदोलनकी तीव्रता देखकर तत्कालीन केंद्रीय पर्यटन और सांस्कृतिक मंत्री श्री. जगमोहनने भोजशालाको प्रतिबंधमुक्त करनेके लिए मध्यप्रदेशके मुख्यमंत्रीको पत्र लिखा था । तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंहने इस पत्रको कूडेके डिब्बेमें पेंâकते हुए भोजशालाको कमाल मौलानाकी मस्जिद घोषित कर वहां पूजा करने जानेवाले हिंदुओंको कारागृहमें डाल दिया तथा उन्हें जानसे मारनेकी धमकी भी दी । यह शासन इतनेपर ही नहीं रुका; उसने पुलिसबलका प्रयोग कर हिंदुओंका दमन आरंभ कर दिया । इन सर्व अत्याचारोंमें भी अडिग रहकर हिंदुओंने संगठित होकर जो संघर्ष किया, उसके परिणामस्वरूप ६९८ वर्ष पश्चात ८.४.२००३ को प्रतिदिन दर्शन और प्रत्येक मंगलवारको केवल अक्षत-पुष्पके साथ भोजशालामें प्रवेशको स्वीकृति दी गई । भोजशाला सरस्वती देवीका मंदिर है, यह शासनने स्वीकार किया । वर्षमें केवल वसंतपंचमीपर कुछ प्रतिबंधोंके साथ पूजा करनेकी अनुमति दी गई । दूसरी ओर मुसलमानोंको प्रति शुक्रवार नमाज पढनेकी अनुमति दी गई, जो आजतक चल रही है ।

हिंदुओंके वसंत पंचमीके उत्सवमें नमाज पढनेकी अनुमति देनेवाला मुसलमानप्रेमी भाजपा शासन !

वर्ष २००३ के पश्चात थोडी-थोडी स्वीकृत मांगोंको मानकर हिंदू भोजशालामें दर्शनके लिए जाने लगे थे । वर्षमें एक ही दिन वसंत पंचमीको उन्हें वास्तविक अर्थोंमें भोजशालामें विधि-विधानसे पूजा-अर्चना करनेकी अनुमति थी । वर्ष २००६ में शुक्रवारको ही वसंत पंचमी आनेके कारण हिंदुओंने राज्यशासनसे मांग की कि आजके दिन यहां नमाज न पढने दी जाए, केवल हिंदुओंको पूजाकी अनुमति मिले, जिसे शासनने अमान्य कर दिया । भारतीय जनता पार्टीके मुख्यमंत्री शिवराज सिंहने मुसलमानोंको संतुष्ट रखनेके लिए तथा अपने दलकी धर्मनिरपेक्ष छवि बनानेके लिए भोजशालाकी यज्ञाग्नि बुझाकर मुसलमानोंको नमाज पढनेकी अनुमति दी । भाजपा नेताओंने हिंदुओंको फुसलाकर भोजशाला खाली करवाई । दूसरी ओर संत और उपस्थित हिंदुओंपर गोलियां बरसा कर उन्हें वहांसे भगा दिया गया । इस मार-पीटमें ७४ हिंदू गंभीर रूपसे घायल हुए । हिंदुओंको पीटनेके साथ-साथ १६४ हिंदुओंपर हत्याके प्रयत्न करनेका अपराध भी प्रविष्ट कर दिया । वहीं, मुसलमानोंको पुलिसके वाहनोंमें बैठाकर वहां नमाज पढनेके लिए सब प्रकारसे सहायता की ।

सरस्वती देवीको बंदीगृहमें रखनेवाले भाजपाके मुख्यमंत्री !

वर्ष २००६ के पश्चात पुनः वर्ष २०११ में  भाजपा शासनका हिंदूद्वेषी रूप दिखा । राजा भोजकी जन्मशताब्दीपर धारके हिंदुओंने सरस्वती देवीकी भव्य पालकी यात्रा आयोजित की थी । ‘लंदनके संग्रहालयमें रखी वाग्देवीकी मूर्तिको लाकर भोजशालामें स्थापित करूंगा’, ऐसी गर्जना करनेवाले; किंतु सत्तामदसे उन्मत्त भाजपाने मंदिरमें स्थापित वाग्देवीकी नवीन मूर्तिका अधिग्रहण कर बंदीगृहमें डाल दिया; पालकी यात्राके समारोहपर प्रतिबंध लगा दिया एवं इस समारोहका आयोजन करनेवाले कार्यकर्ताओंको भी कारागृहमें डाल दिया । इन कुकृत्योंका जब हिंदुओंने तीव्र विरोध किया, तब यह मूर्ति हिंदुओंको हस्तांतरित कर कार्यकर्ताओंको कारागृहसे मुक्त किया गया ।

वाग्देवीकी मूर्तिका पुनः अधिगृहण करनेवाले प्रशासनके षड्यंत्रमें सम्मिलित न होनेवाले हिंदुत्ववादियोंको यातनाएं देनेवाला भाजपा शासन !

वर्ष २०१२ में भाजपा शासनने पुनः वसंत पंचमीके पूर्व वाग्देवीकी मूर्तिको बंदीगृहमें डालकर सरस्वती जन्मोत्सवपर प्रतिबंध लगा दिया । शासनके इस कृत्यका असमर्थन करनेवाले संघ कार्यकर्ताओंके परिजनोंकी दुर्दशा की गई । तब मूर्तिको कारागृहसे मुक्त करनेके तथा जन्मोत्सवके लक्ष्यसे प्रेरित हिंदुओंने आमरण अनशन प्रारंभ किया । लोकतंत्रद्वारा स्वीकृत अनशनसमान शांतिपूर्ण मार्गसे होनेवाले आंदोलनको भी शासनने कुचल दिया ।

हिंदुओ, यह चुनौती स्वीकार कर अपना धर्मकर्तव्य पूरा करो !

आगामी वसंत पंचमीको वर्ष २००६ की भांति शुक्रवार ही आ रहा है । अतः हिंदुओंने मांग की है कि भोजशालामें नमाज पढना वर्जित कर, उन्हें पूजा करनेकी अनुमति मिले तथा कारागृहमें रखी गई अष्टधातुकी वाग्देवीकी मूर्ति शासन मुक्त करे । वर्ष २०१३ के अंतमें मध्यप्रदेशमें विधानसभाका चुनाव होनेवाला है । इस दृष्टिसे भाजपा भोजशालाको मुसलमानोंको दे सकती है । इससे पूर्व वर्ष २००६ में इस विषयमें भाजपाद्वारा किए गए छल-कपटको ध्यानमें रखकर हिंदुओंको सतर्क  रहना चाहिए ।

आज हिंदुओंको अपना धर्मिक अधिकार प्राप्त  करनेके लिए  प्रभावशाली हिंदू संगठनकी आवश्यकता है । इसके लिए निम्नांकित मार्गोंका अवलंबन कर सकते हैं ।

१. अपने कार्यक्षेत्रमें व्यापक जनजागरण एवं प्रबोधन करना । 

२. सामाजिक, धर्मिक एवं जातीय संघोंके माध्यमसे हस्ताक्षर अभियान चलाकर, हस्ताक्षरयुक्त पत्र मुख्यमंत्रीको भेजना ।

३. पत्र, ‘ई-मेल’, ‘फेसबुक’ इ. से अपनी भावनाएं राज्यशासन एवं केंद्रशासनको अवगत करवाना ।

४. १५ फरवरीको आसपासके मंदिरोंमें सामूहिक महाआरतीका आयोजन करना ।

५. प्रत्यक्ष भोजशालामें होनेवाले समारोहमें इष्टमित्रोंसहित सम्मिलित होना ।