भगवान दत्तात्रेय

‘दत्त’ (दत्तात्रेय) अर्थात वह जिसे (निर्गुण की अनुभूति) प्रदान की गई हो कि ‘वह स्वयं ब्रह्म ही है, मुक्त है, आत्मा है । जन्म से ही दत्तात्रेय को निर्गुण की अनुभूति थी, जबकि साधकों को ऐसी अनुभूति होने के लिए अनेक जन्म साधना करनी पडती है । इससे दत्तात्रेय देवता का महत्त्व ध्यान में आता है । मार्गशीर्ष पूर्णिमा के दिन मृग नक्षत्रपर सायंकाल भगवान दत्तात्रेयका जन्म हुआ, इसलिए इस दिन भगवान दत्तात्रेय का जन्मोत्सव सर्व दत्तक्षेत्रों में मनाया जाता है । दत्तजयंती पर दत्ततत्त्व पृथ्वी पर सदाकी तुलना में १००० गुना कार्यरत रहता है । इस दिन दत्त की भक्तिभाव से नामजपादि उपासना करने पर दत्ततत्त्व का अधिकाधिक लाभ मिलने में सहायता होती है ।

दत्तजयंती से संबंधित द्रूकश्राव्य (व्हिडिआेज)

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