Watch Video : स्वतंत्रता के लिए प्रेरित करनेवाला महामंत्र ‘वन्दे मातरम्’ !

हर देश का एक राष्ट्रीय गीत होता है, उसी तरह हमारे भारत देश का राष्ट्रीय गीत ‘वन्दे मातरम’ है जिसे हमारे देश में बहुत महत्व दिया जाता है । राष्ट्रीय गीत ‘वन्दे मातरम’ बकिमचंद्र चटर्जी द्वारा लिखा गया था | १५ अगस्त अपने देश का स्वतंत्रता दिवस; किंतु स्वतंत्रता प्राप्त करने से पूर्व भारतीयों ने अंग्रेजों की कुटिल राजनीति का सामना ‘वन्दे मातरम्’, की सामूहिक शंखध्वनि से किया । १२ दिसंबर १९११ को विभाजन का निर्णय वापस लिया गया । ‘वन्दे मातरम’, मंत्र बंगाल की सीमा लांघकर पूरे देश में फैल गया । लोगों को स्फूर्ति एवं ऊर्जा प्राप्त हुई । ‘इस गीत से एक दिन संपूर्ण बंगाल धधक उठेगा’, बंकिमचंद्र की यह भविष्यवाणी उनकी मृत्यु के ग्यारह वर्ष पश्चात  सत्य हुई । केवल बंगाल ही नहीं, पूरा देश धधक उठा ! स्वराज्य हेतु सहस्रों द्वारा लगाई आवाज तथा विदेशी सरकार के विरोध में क्रोध, अर्थात ‘वंदे मातरम्’, समीकरण हो गया । सारे क्रांतिकारी, आंदोलनकर्ता, उपोषणकर्ता आदि द्वारा उच्चारे गए इस महामंत्र से ब्रिटिशों के ह्रदय डर से कांप उठते उठते थे । इस महामंत्र को किसी रणघोषणा जैसा महत्त्व प्राप्त हुआ था । स्वतंत्रता मिलने के बाद २४ जनवरी १९५० में इस गीत को राष्ट्रीय गीत के रूप में संविधान सभा में राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद द्वारा स्वीकार कर लिया गया ।

वन्दे मातरम् सुजलां सुफलां मलयजशीतलाम् शस्यशामलां मातरम् ।

शुभ्रज्योत्स्नापुलकितयामिनीं फुल्लकुसुमितद्रुमदलशोभिनीं सुहासिनीं सुमधुर भाषिणीं सुखदां वरदां मातरम् ।। १ ।।

वन्दे मातरम् ।

कोटि-कोटि-कण्ठ-कल-कल-निनाद-कराले कोटि-कोटि-भुजैर्धृत-खरकरवाले, अबला केन मा एत बले ।

बहुबलधारिणीं नमामि तारिणीं रिपुदलवारिणीं मातरम् ।। २ ।।

वन्दे मातरम् ।

तुमि विद्या, तुमि धर्म तुमि हृदि, तुमि मर्म त्वं हि प्राणा: शरीरे बाहुते तुमि मा शक्ति, हृदये तुमि मा भक्ति, तोमारई प्रतिमा गडि मन्दिरे-मन्दिरे मातरम् ।। ३ ।।

वन्दे मातरम् ।

त्वं हि दुर्गा दशप्रहरणधारिणी कमला कमलदलविहारिणी वाणी विद्यादायिनी, नमामि त्वाम् नमामि कमलां अमलां अतुलां सुजलां सुफलां मातरम् ।। ४ ।।

वन्दे मातरम् ।

श्यामलां सरलां सुस्मितां भूषितां धरणीं भरणीं मातरम् ।। ५ ।।

वन्दे मातरम् ।।

वन्दे मातरम्  का अर्थ

हे माते, मैं तुम्हें वंदन करता हूं ।

जलसमृध्द तथा धनधान्यसमृध्द दक्षिण के मलय पर्वत के ऊपर से आनेवाली वायुलहरों से शीतल होनेवाली तथा विपुल खेती के कारण श्यामलवर्ण बनी हुई, हे माता !

चमकती चांदनियों के कारण यहांपर रातें उत्साहभरी होती हैं, फूलों से भरे हुए पौधों के कारण यह भूमि वस्त्र परिधान किए समान शोभनीय प्रतित होती है । हे माता, आप निरंतर प्रसन्न रहनेवाली तथा मधुर बोलनेवाली, वरदायिनी, सुखप्रदायिनी हैं !

तीस करोड मुखों से निकल रही भयानक गरजनाएं तथा साठ करोड हाथों में चमकदार तलवारें होते हुए, हे माते आपको अबला कहने का धारिष्ट्य कौन करेगा ? वास्तव में माते, आप में सामर्थ्य हैं । शत्रुसैन्यों के आक्रमणों को मुंह-तोड जवाब देकर हम संतानों का रक्षण करनेवाली हे माता, मैं आपको प्रणाम करता हूं ।

आपसे ही हमारा ज्ञान, चरित्र तथा धर्म है । आपही हमारा हृदय तथा चैतन्य हैं । हमारे प्राणों में भी आप ही हैं । हमारी कलाईयोंमें (मुठ्ठी में) शक्ति तथा अंत:करण में काली माता भी आपही हैं । मंदिरों में हम जिन मूर्तियों की प्रतिष्ठापना करते हैं, वे सभी आप के ही रूप हैं ।

अपने दस हाथों में दस शस्त्र धारण करनेवाली शत्रुसंहारिणी दुर्गा भी आप तथा कमलपुष्पों से भरे सरोवर में विहार करनेवाली कमलकोमल लक्ष्मी भी आपही हैं । विद्यादायिनी सरस्वती भी आप ही हैं । आपको हमारा प्रणाम है । माते, मैं आपको वंदन करता हूं । ऐश्वर्यदायिनी, पुण्यप्रद तथा पावन, पवित्र जलप्रवाहों से तथा अमृतमय फलों से समृद्ध माता आपकी महानता अतुलनीय है, उसे कोई सीमा ही नहीं हैं । हे माते, हे जननी हमारा तुम्हें प्रणाम है ।

माते, आपका वर्ण श्यामल है । आपका चरित्र पावन है । आपका मुख सुंदर हंसी से विलसीत है । सर्वाभरणभूषित होने के कारण आप कितनी सुंदर लगती हैं ! सच में, हमें धारण करनेवाली तथा हमें संभालनेवाली भी आपही हैं । हे माते, हमारा आपके चरणों में पुन:श्च प्रणिपात ।

स्वतंत्रता के पूर्व ‘वन्दे मातरम्’ गीत का महत्त्व

१५ अगस्त अपने देश का स्वतंत्रता दिवस; किंतु स्वतंत्रता प्राप्त करने से पूर्व भारतीयों ने अंग्रेजों की कुटिल राजनीति का सामना ‘वन्दे मातरम्’, की सामूहिक शंखध्वनि से किया ।

बंकिमचंद्र चटर्जी द्वारा ‘आनंदमठ’ उपन्यासमें ‘वन्दे मातरम्’ गीत समाविष्ट करना

२००५, ‘बंगभंग’, अर्थात बंगाल के विभाजन का शताब्दी वर्ष था तथा ‘वन्दे मातरम्’ शब्दों को भारित करनेवाले मंत्र को सिद्धि प्राप्त होने का भी वह शताब्दी वर्ष था । आद्य क्रांतिकारी वासुदेव बळवंत फडकेजी के चरित्र से प्रेरणा लेकर बंकिमचंद्र चटर्जी (अर्थात चट्टोपाध्याय) ने १८८० से १८८२ की इस अवधि में ‘बंगदर्शन’ से ‘आनंदमठ’ उपन्यास लिखा, जो आगे जाकर अत्यंत लोकप्रिय तथा प्रसिद्ध हुआ । तत्पूर्व, ७ नवंबर १८७५ को लिखा ‘वन्दे मातरम’, गीत इस उपन्यास में समाविष्ट किया गया ।

अंग्रेजों द्वारा हिंदू तथा मुसलमान समाज में द्वेष उत्पन्न कर विभाजन का बीज बोना

१८५७ का स्वतंत्रता संग्राम समाप्त करते समय उत्तर भारत के हिंदू भूमिपतियों की (जमींदारों की) भूमि जिस प्रकार मुसलमानों में बांटकर वहां शत्रुता उत्पन्न की गई, उसी प्रकार यहां बंगाल का विभाजन कर मुसलमानबहुल भाग अलग करना निश्चित हुआ । इस हेतु लॉर्ड कर्जन ने अगवानी की ।  वाइसरॉय बनकर आते ही लॉर्ड कर्जन ने केवल ५ वर्षों में विभाजन के बीज बोए । विभाजन का निर्णय ३ दिसंबर १९०३ में लिया गया, जब कि इसका प्रारूप १६ जुलाई १९०५ में प्रकाशित हुआ । १६ अक्तूबर १९०५ से विभाजन की कार्यवाही होगी तथा नए विभाग का गवर्नर ब्रैमफिल्ड फुल्लर होगा, यह घोषणा की गई । फुल्लर निर्लज्जता से कहता था, ‘भारतीय राजाकी दो रानियों जैसी मुस्लिम तथा हिंदू समाज मेरी दो रानियां हैं । इनमें से मुस्लिम पसंद, तो हिंदू नापसंद रानी है ।’ विभाजन का कारण बताते हुए सर हेन्सी कॉटन कहता था, ”इस पालट से संगठित होने के प्रयास टूट जाएंगे तथा प्रदेश से एकताकी भावना लुप्त हो जाएगी, यह उद्देश्य था । देशभक्ति की राजकीय वृत्ति नष्ट कर देशप्रेम की बढती क्षमता जड से मिटाने का लॉर्ड कर्जन के दांवपेंच का वह एक हिस्सा था ।’’ (दि कम्युनल टैंरगल, मेहता ऐण्ड पटवर्धन)

हिंदू-मुसलमान एक न हों, इस हेतु मुसलमानों को अनेक सरकारी सुविधाओं का गुप्त लालच दिखाना

विभाजन के विरोध में प्रचंड संताप व्यक्त होने लगा । इसके द्वारा हिंदू-मुसलमान एकता का दर्शन हुआ, वह न हो इस हेतु मुसलमानों को अनेक सरकारी सुविधाओं का गुप्त लालच दिखाकर अलग किया गया । दुर्भाग्य से कुछ मुसलमान इस जाल में फंस गए तथा पूर्व बंगाल के ‘दार-उल्-इस्लाम’ (मुसलमानों का प्रदेश) करने हेतु उन्होंने निरपराध हिंदुअ‍ों के सिर तथा मंदिर तोडे । ढाका का नवाब, सलीमुल्ला खान को नाममात्र ब्याज से एक लक्ष पौंड का ऋण देकर अपनी ओर कर लिया । ढाका की सभा में लॉर्ड कर्जन ने पूर्व बंगाल को ‘मुसलमानों का प्रदेश’ घोषित किया ।

ब्रिटिशों का कुटिल दांवपेंच समझनेपर लोगोंद्वारा ‘वन्दे मातरम’ की गर्जना करना !

७ अगस्त १९०५, ‘बंगभंगविरोधी दिन’ घोषित किया गया । इससे बहुत बडा जनआंदोलन आरंभ हुआ । गांधी के उदयसे पहले ही सत्याग्रह हुआ !  आगे जाकर देश को स्वराज्य प्राप्त होनेतक जो भी आंदोलन हुए, उनका श्रेय बंगभंगविरोधी आंदोलन को जाता है । उस दिन कोलकता ‘टाऊन हॉल’ में सभा थी; किंतु अपार भीड/जनसमुदाय के कारण उस परिसर में ४ सभाएं आयोजित की गई । दोपहर से ही लोग झुंड में आ रहे थे । सर मनिंद्रचंद्र नंदी कासिमबजार के अध्यक्ष थे । सभा में अनेक लोगों ने स्वदेशी की तथा मातृभाषा के माध्यम से शिक्षा लेने की प्रतिज्ञा की । लोगों को विभाजन के पीछे का ब्रिटिशों का कुटिल दांवपेंच बताया गया । वह सुनते ही एक संतप्त युवक के मुखसे एकाएक गर्जना हुई, ‘वन्दे मातरम् ।’ कुछ क्षणों में ही उपस्थित ३० सहस्र से अधिक लोगों के मुख से ‘वन्दे मातरम’ का घोष होने लगा । उसी क्षण इन शब्दों को मंत्र की सिद्धि प्राप्त हुई ।  स्वराज्य हेतु सहस्रोंद्वारा लगाई आवाज तथा विदेशी सरकार के विरोध में क्रोध, अर्थात ‘वंदे मातरम्’, समीकरण हो गया । पांच अक्षर भी ज्ञात न होनेवाले भारतीय को ‘वन्दे मातरम’, ये दो शब्द तो निश्चित ही ज्ञात होते हैं । सारे क्रांतिकारी, आंदोलनकर्ता, उपोषणकर्ता आदि द्वारा उच्चारे गए इस महामंत्र से ब्रिटिशों के ह्रदय डर से कांप उठते/थर्रा उठते थे । इस महामंत्र को किसी रणघोषणा जैसा महत्त्व  प्राप्त हुआ था ।

‘वन्दे मातरम’, गीत द्वारा एक दिन संपूर्ण बंगाल धधक उठेगा, बंकिमचंद्र की यह भविष्यवाणी

१२ दिसंबर १९११ को विभाजन का निर्णय वापस लिया गया । ‘वन्दे मातरम’, मंत्र बंगाल की सीमा लांघकर पूरे देश में फैल गया । लोगों को स्फूर्ति एवं ऊर्जा प्राप्त हुई ।‘इस गीत से एक दिन संपूर्ण बंगाल धधक उठेगा’, बंकिमचंद्र की यह भविष्यवाणी उनकी मृत्यु के ग्यारह वर्ष पश्चात  सत्य हुई । केवल बंगाल ही नहीं, पूरा देश धधक उठा ! उसके ४२ वर्ष पश्चात देश स्वतंत्र हुआ ।

दुर्भाग्य से स्वराज्यप्राप्ति के पश्चात ‘राष्ट्रगीत’का सम्मान प्राप्त करने योग्य यह गीत केवल ‘राष्ट्रीय गीत’ बन कर रह गया !

– डॉ. सच्चिदानंद शेवडे (मासिक, ‘श्री गजानन आशिष’ (१६.८.२०१०))

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