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अनादर के विविध प्रकार
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FAQ
विडंबनो के द्वारा होने वाली धर्महानी हमे क्यों रोकनी चाहिए?
व्यापक सन्दर्भ मे विडंबन का अर्थ है किसी वस्तु को अपने मुल स्वरुप, आकर से भिन्न दर्शाना । यदि कोर्इ धार्मिक ,आध्यात्मिक स्तर पर कोई कृति या वस्तु जो उससे प्रक्षेपित होने वाली ईश्वरी तत्व की सात्विकता में बाधा डाले ,उसे भी विडंबन कहा जाता है।( हर एक में वस्तु तीन गुण समाविष्ट होते है -तामसिक ,राजसिक और सात्विक । इन तीन गुणों में से कोई एक सर्वाधिक प्रमाण में होता है । इन में से सबसे कनिष्ठ तामसिक गुण एवं सबसे उच्च सात्विक गुण होता है ।) किसी चित्र,शिल्प, शब्दों,वाक्यो,नाटक,चित्रपट आदि के माध्यम से विडंबन हो सकता है ।
दैवी चिन्हों का क्या महत्व है ?
१. दैवी चिन्ह सात्विकता प्रक्षेपित करते है ।
२. दैवी चिन्ह, दैवी तत्त्व को आकृष्ट करते है। अतः वह ईश्वरी गुणों के प्रतिक है और सामान्य जन को सही रास्ते पर चलने की प्रेरणा देते है ।
३. दैवी चिन्ह मनुष्य को धर्माचरण करने की प्रेरणा देते है ।
४. एक आस्तिक व्यक्ति के मनमें देवता के साथ उनसे जुडे हुए दैवी चिन्ह के प्रति भी श्रद्धा होती है (इसके विपरीत ,नास्तिक व्यक्ति को दैवी चिन्हों के बारे में कुछ नहीं लगता ।)
५. दैवी चिन्हों का भक्तों के मन में एक विशिष्ठ स्थान होता है । जिसके फल स्वरुप उनके मन में श्रद्धा वृद्धिंगत होती है ।
६ ईश्वर से एक रूप होना ,यह साधना का अंतिम चरण है । यह साध्य करने के लिए किसी वस्तु /आकार (सगुन) की आवश्कता होती है । दैवी चिन्ह इसमें सहायता करते है । (इस चर्चा के लिए हमने साधारण मनुष्य और दैवी जीवो को अलग बताया है । परंतु ,आध्यात्मिक दृस्टि से उन्नत मनुष्य, दैवी जीव ही होते है ।
विडंबन के विविध प्रकार कौनसे है ?
१. जान -बूझकर विडंबन करना : विडंबन जो धर्मिक भावना को ठेस पहुचने के लिये किया जाए ।
अ. द्वेष के कारण
उदाहरण अ : एम. एफ. हुसैन के द्वारा बनाए गए चित्र।
आ : किसीका महत्व कम करने लिये या लोगो के मन मे भ्रम निर्माण करने के लिये ।
उदाहरण अ: भगवान श्रीगणेश को हिटलर ,लादेन और बुश के रूपमें दर्शाना ।
२. विडंबन अनजाने में होना :
अ. अज्ञातवश / अज्ञान के कारण
उदाहरण अ : भगवान शिव को कुत्ते/श्वान के रूप में दर्शाना
आ. व्यावसायिकलाभ हेतु
उदाहरण अ : दुर्गा देवी के हाथ में व्हिस्की की बोतले पकडे हुए दिखाना ।
इ. धर्माभिमान का अभाव
उदाहरण अ: भगवान श्रीकृष्ण को कम कपडो में दर्शाना ।
विडंबन का प्रभाव एवं अधर्म को रोकने की आवश्कता!
१. विडंबन से व्यक्ति के आस्था को ठेस पहुचती है तथा आने वाली पीढ़ियों के समक्ष अयोग्य आदर्श निर्माण होता है।
२. विडंबन से मन में देवता , या दैवी चिन्हों के सामर्थ्य के विषयम में शंका निर्माण होती है । अंततः इस कारण समय के साथ समाज से धार्मिक कृतिया लुप्त हो सकती है ।
चरित्रता का हनन विरूद्ध अनादर
किसी राज्यकर्ता अथवा सामाजिक व्यक्तिमत्व के अयोग्य कृती पर टिपण्णी करना या उनके व्यंगात्मक चित्र बनाना ,यह विडंबन का साधारण उदाहरण है । मतभेद,विरोध दिखने हेतु उस व्यक्ति को अयोग्य रूप से दर्शाया जाता है। परंतु दैवत्व पर विडंबन करनेसे ,मनुष्य के परमात्मा से जुड़े नाते पर प्रश्न चिन्ह उठता है । यह व्यक्ति की ईश्वर तथा दैवी शक्ति पर श्रद्धा को चुनौती देता है । इससे नैतिक,सामाजिक एवं आध्यात्मिक मूल्यों का पतन होता है। अतः ,यह समय की मांग है कि हम किसी भी माध्यमसे होने वाले विडंबन को पहचाने तथा उसका विरोध करे ।