साधना में शिष्य अपने सर्वस्व का त्याग कर लेनेवाले गुरु की सेवा करता है !

नित्य जीवन में जहां अधिक वेतन मिलता है, वहां व्यक्ति नौकरी करता है । इसके विपरीत साधना में शिष्य अपने सर्वस्व का त्याग कर लेनेवाले गुरु की सेवा करता है !

संतों के दर्शन से कुछ अच्छा लगना अथवा कुछ भी न लगना

किसी संत के पास जानेपर कुछ लोगों को अच्छा लगता है अथवा उनमें भाव जागृत होता है, तो कुछ लोगों को कुछ भी नहीं लगता । उसमें से कुछ लोगों को कुछ भी न लगने से बुरा लगता है । अनुभूति प्राप्त होना अथवा न प्राप्त होने के कारण निम्न प्रकार से हैं – १. … Read more

सूक्ष्म में व्याप्त अनिष्ट शक्तियों को नष्ट करने हेतु साधना की आवश्यकता !

कोई मनुष्य चाहे कितना भी बलवान हो अथवा उसके पास शस्त्र हों, तो भी उसे कीटाणुनाशक औषधियां लेनी पडती हैं; क्योंकि यह कीटाणु सूक्ष्म होते हैं । उसी प्रकार से अनिष्ट शक्तियों को नष्ट करने हेतु साधना करनी पडती है । पाश्‍चात्त्यों को केवल कीटाणु ज्ञात हुए, तो हमारे संत एवं ऋषियों को सूक्ष्मातिसूक्ष्म विश्‍व … Read more

अध्यात्म में किसी भी प्रश्‍न का उत्तर तत्काल ज्ञात होता है ।

विज्ञान को जानकारी को एकत्रित कर किसी प्रश्‍न का उत्तर ढूंढना पडता है । इसके विपरीत अध्यात्म में जानकारी एकत्रित नहीं करनी पडती । इसमें किसी भी प्रश्‍न का उत्तर तत्काल ज्ञात होता है ।

भक्तिमार्ग में व्याप्त व्यष्टि एवं समष्टि साधना

१. व्यष्टि साधना : यह व्यक्तिगत जीवन से संबंधित होती है । इस साधनामार्ग में धार्मिक विधि, पूजा-अर्चना, पोथीपठन, नामजप, मंत्रजप, भाव की स्थिति में रहना इत्यादी साधनाएं होती हैं । २. समष्टि साधना : यह साधना समष्टि अर्थात समाजजीवन से संबंधित होती है । कालमहिमानुसार समाजपर जो अनिष्ट परिणाम होनेेवाले होते हैं, उनकी तीव्रता … Read more

बुद्धि से अध्ययन करने पर, उसकी गहराई समझ में नहीं आतीं

सागर को केवल देखने अथवा उसके विषय में बुद्धि से अध्ययन करने पर, उसकी गहराई एवं वहां की बातें समझ में नहीं आतीं । उसी प्रकार, स्थूल विषय का बुद्धि से अध्ययन करने पर, उसमें विद्यमान सूक्ष्म आध्यात्मिक जगत् समझ में नहीं आता ।

सनातन तात्त्विक नहीं, अपितु प्रायोगिक प्रत्यक्ष साधना सिखाता है

सनातन तात्त्विक नहीं, अपितु प्रायोगिक प्रत्यक्ष साधना सिखाता है; क्योंकि तात्त्विक ज्ञान कितने भी जन्मों तक सिखने पर पूरा नहीं होता । इसके विपरीत प्रत्यक्ष साधना सिखाने से साधकों की शीघ्र गति से आध्यात्मिक उन्नति होकर वे जन्म-मृत्यु के चक्रों से मुक्त होते हैं ।

साधना के लिए प्रत्यक्ष रूप से क्रिया करना आवश्यक होता है

रसोई बनाने के अनेक पुस्तकों को पढकर रसोई बनाना नहीं आता । उसी प्रकार से साधना के संदर्भ में सैकडों पुस्तकों को पढकर साधना नहीं होती । उसके लिए प्रत्यक्ष रूप से रसोई बनाने की तरह प्रत्यक्ष रूप से साधना करने की क्रिया करना आवश्यक होता है ।

व्यष्टि एवं समष्टि साधना परस्परों के लिए अनुपूरक !

व्यष्टि एवं समष्टि साधना परस्परों के लिए अनुपूरक ! १. व्यष्टि साधना : इस साधना को करनेवालों का आध्यात्मिक स्तर ८० प्रतिशत होनेतक उनका ध्यान अपनी स्वयं की प्रगति की ओर ही होता है । उसके आगे जानेपर उनके अज्ञानवश ही उनके अस्तित्व के कारण उनके द्वारा समष्टि का कार्य होने लगता है । जैसे … Read more