भोजन के संदर्भ आचार

अन्नसेवनादि कर्म को, अर्थात भोजनादि आचार को हिन्दू धर्म में ‘यज्ञकर्म’ की संज्ञा दी गई है । यज्ञकर्म तेजदायी विचारों के कर्मबल पर ही हो सकता है । यदि पाचनप्रक्रिया तेज के बल पर, अर्थात सूर्यनाडी-जागृति के स्तर पर (माध्यम से) होनी अपेक्षित है, तो भोजन ग्रहण करने के अंतर्गत प्रत्येक आचार उचित पद्धति से कर उस में अंतर्भूत कृत्ययुक्त कर्मस्वरूप विचारधारा का (अर्थात मन के स्तर पर विचार एवं स्थूलदेह के स्तर पर कृत्य से युक्त धारणा का) पालन करना चाहिए । ऐसा होने पर ही भोजन ‘यज्ञकर्म’स्वरूप बन सकता है । भोजन से संबंधित आचारों के प्रमुखतः तीन भाग होते हैं; भोजनपूर्व आचार, भोजन के समय के आचार एवं भोजन के उपरांत के आचार । इन सर्व आचारों के संदर्भ में अध्यात्मशास्त्रीय आधार इत्यादि का विवेचन प्रस्तुत लेख में दिया है । अन्नसेवन का शास्त्रीय आधार एक बार समझ में आने पर, घर पर ही नहीं, बाहर भी अन्न ग्रहण करने का समय आए, तब भी आचारों का पालन करने में किसी को लज्जा अनुभव नहीं होगी ।

भोजन की थाली कैसे परोसनी चाहिए ?

भूमिपर जल से मंडल बनाकर उसपर थाली रखें । उस थाली के मध्यभाग में चावल परोसें । भोजन करनेवाले के बार्इं ओर चबाकर ग्रहण करनेयोग्य पदार्थ परोसें । दाहिनी ओर घी युक्त पायस (खीर) परोसें । थाली में सामने तरकारी, शकलाद (सलाद) आदि पदार्थ होने चाहिए । Read more »

भोजन के संदर्भ में अधिकतर पुछे जानेवाले प्रश्न

भोजन से संबंधित आचारों के संदर्भ में  अधिकतर पुछेजानेवाले प्रश्न एवं उनका धर्मशास्त्रीय आधार प्रस्तुत लेख में दिया है । अन्नसेवन का शास्त्रीय आधार एक बार समझ में आने पर, घर पर ही नहीं, बाहर भी अन्न ग्रहण करने का समय आए, तब भी आचारों का पालन करने में किसी को लज्जा अनुभव नहीं होगी । Read more »

भोजन करने हेतु कहां अौर किस दिशा में बैठना चाहिए ?

रसोईघर भोजन के लिए बैठने का उत्तम स्थान क्यों है, पूर्व अथवा पश्चिम दिशा की ओर मुख कर भोजन के लिए कयों बैठें, उत्तर एवं दक्षिण दिशा में मुख कर भोजन कभी क्यों न करें इतयादी की जानकारी इस लेख में दी है । Read more »

भोजन के उपरांत मुखशुद्धि हेतु सौंफ अथवा पान क्यों खाते है ?

भोजन के उपरांत मुखशुद्धि हेतु सौंफ अथवा पान खाते है । इस लेख में पढते है स्वास्थ्य एवं आध्यात्मिक दृष्टि से उसका महत्त्व, पान के कुछ भागों से संभावित हानि, बीडे का सेवन किसे नहीं करना चाहिए, अति पानसेवन के दुष्परिणाम, इत्यादी की जानकारी । Read more »

जनिए २० सूत्र जो भोजन करते समय नही करने चाहिए

भोजन करना, केवल ‘पेट भरना’ नहीं है, अपितु यह एक ‘यज्ञकर्म’ है । अतः यह कार्य करते समय बातचीत न करें, मुख से ध्वनि (आवाज) न करें, भोजन की थाली में उंगली से न लिखें, भोजन करते समय अपनी थाली का अन्न दूसरे को न दें, एक ही थाली में दो व्यक्ति एक साथ अन्न-सेवन न करें, इत्यादी के बारे में अध्यात्मिक दृष्टी से जानकारी । Read more »

भोजन के समय जल कब आैर कैसे पीना चाहिए ?

१. भोजन के लिए बैठने पर बाएं हाथ की ओर जल का पात्र क्यों रखना चाहिए एवं बाएं हाथ से जल क्यों पीना चाहिए ? अ. भोजन के लिए बैठते समय बाएं हाथ की ओर जल का पात्र रखना पूर्वकाल में भोजन के लिए बैठने पर सदैव बाएं हाथ की ओर जल का पात्र रखकर … Read more

भोजन का आरंभ सादी (तडकारहित) दाल एवं चावल से क्यो करना चाहिए ?

सादी दाल एवं चावल तथा उसपर घी, यह मिश्रण अत्यंत सात्त्विक है । इस मिश्रण से प्रक्षेपित सूक्ष्म वायु में वायुमंडल शुद्ध करने की क्षमता होती है । भोजन करते समय प्रार्थना करने के उपरांत प्रथम सादी दाल एवं चावल ग्रहण करना आरंभ करें । Read more »

भोजन के पश्चात क्या करना चाहिए आैर क्या वर्जित है ?

भोजनोपरांत के आचारों का, उदा. सौंफ अथवा पान खाना, दोपहर में वामकुक्षी (बार्इं करवट) करना), अन्नपाचन भली-भांति होने हेतु किए जानेवाले कृत्य अध्यात्मशास्त्रीय आधार इत्यादि का विवेचन किया है । Read more »

भोजन के समय क्या करना चाहिए आैर क्या नही ?

भोजन से संबंधित आचारों का विभाजन प्रमुखतः तीन भागों में किया जा सकता है – भोजनपूर्व आचार, भोजन के समय के आचार एवं भोजनोपरांत आचार । भोजन के समय के सर्व आचार क्रमशः आगे दिए हैं । Read more »

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