श्री जगन्नाथ मंदिर क्षेत्र में स्थित मठों को अवैध घोषित कर उन्हें गिराने की कार्रवाई रोकें !

ओडिशा सरकार ने श्री जगन्नाथ मंदिर जैसा तीर्थक्षेत्र जिस नगरी में है, उस पुरी नगरी को ऐतिहासिक नगर बनाना, उसका सुशोभीकरण करना तथा संभावित आतंकी आक्रमण से मंदिर की रक्षा करना, इन कारणों के लिए कुछ योजनाएं बनाई हैं । इस परिप्रेक्ष्य में मंदिर की सुरक्षा हेतु उसके चारों ओर से ७५ मीटर की भूमि को खुला रखने का निर्णय लिया है । इस क्षेत्र में एमार मठ, लांगुली मठ, बडा आखाडा मठ जैसे विविध प्रकार के १२ प्राचीन मठ, यात्री निवास एवं १७५ घर हैं । प्रशासन ने इन सभी मठ, यात्री निवास और व्यक्तिगत घरों को अवैध प्रमाणित कर उन्हें गिराना आरंभ किया है । प्रशासन का यह कृत्य तो विकास के नाम पर हिन्दू धर्म के प्रतीक होनेवाले प्राचीन मठ, उनकी परंपराएं और वहांपर स्थित प्राचीन मूर्तियों को नष्ट करने का षड्यंत्र है ।

अतः इस संदर्भ में चल रही कुछ गतिविधियों की ओर हम आपका ध्यान आकर्षित करना चाहते हैं ।

१. प्रशासन ने जगन्नाथ मंदिर क्षेत्र मेंं स्थित ९०० वर्ष पुराने एमार मठ को अवैध प्रमाणित कर उसे गिरा दिया । इसके साथ ही मेघनाद दीवार से सटे लांगुली मठ को भी प्रशासन ने गिराया है ।

२. उक्त मठों को गिराने के पश्‍चात अब प्रशासन की ओर से ‘बडा आखाडा मठ’को गिराया जाएगा । इस मठ की स्थापना नागा साधुआें ने वर्ष १४०२ में की थी । इस मठ की स्थापना ही मूलतः बाह्य आक्रमणकारियों से श्री जगन्नाथ मंदिर की रक्षा हेतु की गई थी ।

३. १४ वीं शताब्दी में पुरी में श्रीरामानंद नामक महान साधु का आगमन हुआ था । उस समय उन्होंने मंदिर की सुरक्षा हेतु कई मठ और धार्मिक केंद्रों की स्थापना की थी । इन मठों की स्थापना के पश्‍चात वहां धार्मिक परंपराएं, श्री जगन्नाथजी की संस्कृति का पालन और नामसंकीर्तन नियमितरूप से होते थे । अतः मंदिर क्षेत्र में आनेवाले कई साधुआें के लिए ये सभी मठ तीर्थस्थान के समान ही हैं । मंदिर क्षेत्र में खडे किए गए इन मठों ने पुरी नगर को ‘धार्मिक राजधानी’के रूप में स्वीकृति दिलवाई थी । अब उक्त मठों को ध्वस्त करने के कारण पुरी नगर अपनी इस ख्याति को भी गंवा देगा ।

४. प्रशासन की ओर से की जा रही इस कार्रवाई के संदर्भ में बडा आखाडा मठ के महंत हरिनारायण दास ने बताया कि मठ की प्राचीन संस्कृति और परंपरा का किया जा रहा संवर्धन और संरक्षण मिटाया जा रहा है । प्रशासन की ओर से प्राचीन मूर्तियां, परंपराएं और संस्कृति को बनाए रखने हेतु कोई प्रयास नहीं किए जाते ।

५. इस प्रकरण में पुरी पीठ के शंकराचार्य जगद्गुरु निश्‍चलानंद सरस्वतीजी ने कहा है कि ओडिशा उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश बी.पी. दास के नेतृत्व में समिति ने मंदिर की चारों ओर ७५ मीटर क्षेत्र को खाली करने का परामर्श दिया था; परंतु श्री. दास ने मेरे साथ इस संदर्भ में कभी चर्चा नहीं की । श्री जगन्नाथ मंदिर के साथ इन मठों की परंपरा जुडी है । इन मठों का संचालन स्वतंत्ररूप से होना चाहिए । सरकार ने जो बडी संख्या में मठों को तोडने का निर्णय लिया, उनका विस्थापन कैसे किया जाए इसका नियोजन करना चाहिए था । विकास के नामपर प्राचीन मठों को तोडने का षड्यंत्र रचा जा रहा है ।

६. कुल मिलाकर इस प्रकरण में यह दिखाई देता है कि सरकार अथवा श्री जगन्नाथ मंदिर की रक्षा हेतु गठित समिति ने हिन्दू धर्मियों का सर्वोच्च आस्था का केंद्र रहे शंकराचार्यजी के मठों को ध्वस्त करते समय मठ का मत विचार नहीं लिया । यह बात हिन्दू धर्म में हस्तक्षेप करने जैसी ही है और इसलिए वह अत्यंत अयोग्य एवं निंदाजनक है । इसके कारण देशभर के हिन्दू धर्मियों की धार्मिक भावनाएं आहत होंगी ।

अतः इस संदर्भ में हम निम्नांकित मांगें कर रहे हैं …

१. श्री जगन्नाथ मंदिर क्षेत्र में स्थित मठ और मंदिरों को अवैध प्रमाणित कर उन्हें गिराने की अयोग्य कार्रवाई तुरंत रोकनी चाहिए ।

२. अबतक जिन प्राचीन मठों को तोडा गया है, उनका ओडिशा सरकार द्वारा पुनर्निर्माण किया जाए और इससे हुई हानि की भरपाई की जाए, साथ ही प्राचीन मूर्तियां और परंपराआें के संवर्धन हेतु प्रयास किए जाए ।

३. श्री जगन्नाथ मंदिर की सुरक्षा हेतु केंद्रीय गृह मंत्रालय और राज्य शासन के गृह विभाग की उच्चस्तरीय संयुक्त सुरक्षा समिति का गठन किया जाए और मठ एवं मंदिरों को किसी भी प्रकार से हानि न पहुंचाकर प्रशासन द्वारा समाधान योजना चलाई जाए ।

४. जिन सरकारी अधिकारियों ने मंदिर क्षेत्र में स्थित मठ और मंदिरों को अवैध प्रमाणित करने का निर्णय लिया, उनके विरुद्ध भी कठोर विधिजन्य कार्रवाई की जाए ।