धर्माधारित ‘हिंदू राष्ट्र’की स्थापना हेतु योगदानकी आवश्यकता !

वर्तमान धर्मनिरपेक्ष, भ्रष्ट, स्वार्थलोलुप, जातिवाद एवं देशाभिमानशून्य राज्यप्रणालीमें ही सभी उलझ गए हैं । इस राज्यप्रणालीद्वारा उत्पन्न प्रदूषणके कारण ‘हिंदू राष्ट्र’की इस तेजस्वी संकल्पनाको भेदा जा रहा है । छत्रपति शिवाजी महाराजद्वारा स्थापित ‘हिंदवी स्वराज्य’, अर्थात ‘हिंदू राष्ट्र’को विस्मृत करवाकर उसे ‘सर्वधर्मसमभावयुक्त राज्य’के नामपर ‘हरा’ रंग देनेका प्रयास किया जा रहा है । ‘रामराज्य’ अर्थात यहांपर प्रत्यक्ष ‘हिंदू राष्ट्र’ अवतरित हुआ था, तब भी आज एक ‘दंतकथा’के (काल्पनिक कथाके) नामसे उसका उपहास किया जा रहा है । ‘हिंदू राष्ट्र अर्थात धर्मांधता’, ऐसी धारणा प्रयोजनपूर्वक रूढ की जा रही है; परंतु यह दुष्प्रचार है । छत्रपति शिवरायके ‘हिंदू राष्ट्र’का आदर्श लेकर वर्ष २०२३ में भारतमें संपन्न, सांस्कृतिक एवं आध्यात्मिक धरोहर संजोनेवाला एवं ‘रामराज्य’का दर्शन करवानेवाला एक ‘हिंदू राष्ट्र’ स्थापित होगा ! ‘हिंदू राष्ट्रकी स्थापना होगी’, ऐसी आशा उत्पन्न हो, ऐसी कोई भी घटना स्थूलसे नहीं घट रही है । तब भी ‘हिंदू राष्ट्र’के विषयमें इतना दृढतापूर्वक बताना, यह बात कुछ लोगोंको मिथ्या प्रतीत होगी; परंतु कालकी गतिविधियोंको समझनेवाले संतोंको उस आगामी उज्ज्वल ‘हिंदू राष्ट्र’की आहट मिल चुकी है !

अ. धर्मसंस्थापनाके लिए योगदान देना, धर्मकर्तव्य ही है ! : आधुनिक भाषामें हम जिसे ‘राष्ट्ररचना’ कहेंगे, उसे संस्कृत धर्मग्रंथोंमें ‘धर्मसंस्थापना’के नामसे उल्लेखित किया गया है । ऐसी धर्मसंस्थापना, अर्थात ‘हिंदू राष्ट्र’ स्थापित करना ही वर्तमान स्थितिमें सर्व दृष्टिसे श्रेयस्कर है । प्रत्येक हिंदूद्वारा उस दिशामें प्रयत्न करना ही प्रत्येककी साधना एवं धर्मकर्तव्य है ।

धर्मसंस्थापना हेतु ब्राह्मतेज एवं क्षात्रतेज ये दो घटक आवश्यक होते हैं । राष्ट्रके लिए साधनाके आधारपर ‘ब्राह्मतेज’का संवद्र्धन करनेका कार्य अधिकांश संत एवं ‘सनातन संस्था’समान आध्यात्मिक संस्थाएं कर रही हैं; तो राष्ट्रकी दुःस्थिति परिवर्तित करनेके लिए राष्ट्रप्रेमी एवं धर्मप्रेमी संस्था, कुछ नियतकालिक तथा अनेक विचारक क्रमशः शारीरिक, मानसिक एवं बौदि्धक स्तरपर प्रत्यक्ष कार्य अर्थात ‘क्षात्रतेज’का संवद्र्धन कर रहे हैं । इस कार्यका स्वरूप निम्नानुसार है ।

अ १. शारीरिक : धर्मसंस्थापना हेतु प्रत्यक्ष देहसे कृत्य करना, उदा. प्रत्यक्ष धर्महानि रोकना, धर्महानिके विरोधमें आंदोलन करना, प्रत्यक्ष कृत्य करना इत्यादि । कालानुसार इसका महत्त्व १० प्रतिशत है ।

अ २. मानसिक : ‘राष्ट्रभावना एवं धर्मभावना जागृत हुए बिना कार्य नहीं होता’, इस सिद्धांतके अनुसार धर्मसंस्थापना हेतु हिंदुओंका प्रबोधन कर उन्हें सकि्रय करना, उदा. समाचार-पत्र, नियतकालिकोंमें बोधप्रद लेखन करना, व्याख्यान देना इत्यादिका कालानुसार महत्त्व १० प्रतिशत है ।

अ ३. बौदि्धक : धर्मसंस्थापना हेतु हिंदू समाजको दिशा देना, उदा. हिंदुओंपर आ रही आपदाओंका अध्ययनपूर्वक विश्लेषण करना, संगठनोंको वैचारिक सामथ्र्य प्रदान करना इत्यादि । कालानुसार इसका महत्त्व भी १० प्रतिशत है ।

अ ४. आध्यात्मिक : धर्मसंस्थापनाके शारीरिक, मानसिक एवं बौदि्धक कार्यको आध्यात्मिक बल प्राप्त होने हेतु उपासना करना, उदा. कार्यकी पूर्णता हेतु नामजप, यज्ञ-यागादि उपासना । कालानुसार इसका महत्त्व सर्वाधिक अर्थात ७० प्रतिशत है । कालानुसार प्रत्येक हिंदूको धर्मसंस्थापना हेतु स्वक्षमता तथा साधनाके अनुसार क्षात्रतेज एवं ब्राह्मतेजका कार्य करनेका अर्थ ही धर्माधारित हिंदू राष्ट्रकी स्थापनामें प्रत्यक्ष सहभागी होने जैसा है ।

आ. हिंदुओ, ‘हिंदू राष्ट्र-स्थापना’के धर्मकार्य हेतु इस प्रकार सहयोग दें !

१. ‘हिंदू राष्ट्र-स्थापना’ हेतु कार्यरत संस्था, संगठन एवं संप्रदायोंके उपक्रमोंमें प्रत्यक्ष सम्मिलित हों ! इस हेतु प्रतिदिन स्वयं न्यूनतम १ घंटा समय अवश्य दें !

२. इस ग्रंथके आधारपर ‘हिंदू राष्ट्रकी आवश्यकता’के संबंधमें जनजागृति करें!

३. प्रसारमाध्यम, जालस्थल इत्यादिके माध्यमसे ‘हिंदू राष्ट्रकी स्थापना’के विचार प्रसारित करें !

४. ‘हिंदू राष्ट्र’की स्थापना हेतु कार्यरत व्यकि्त एरां संगठनोंकी अपनी क्षमतानुसार अर्थिक सहायता अवश्य करें !

५. ‘हिंदू राष्ट्र’की स्थापनाका कार्य करनेवालोंके लिए सहायक कृत्य करें, उदा.

अ. शिक्षकोंद्वारा विद्यालयोंमें ‘हिंदू राष्ट्र’की संकल्पनाके प्रसार हेतु छत्रपति शिवाजी महाराज, वीर सावरकर आदि राष्ट्रपुरुषोंके स्मृतिदिन मनाना

आ. अधिवक्ताओंद्वारा (वकीलोंद्वारा) ‘हिंदू राष्ट्र’की स्थापना हेतु कार्य करनेवालोंको निःशुल्क कानूनी सहायता प्रदान करना

इ. पत्रकारोंद्वारा समाचारपत्रमें ‘हिंदू राष्ट्र’की स्थापनाका महत्त्व विशद करनेवाले लेख प्रकाशित करना

ई . शासकीय सेवामें रहनेवाले कर्मचारी एवं अधिकारियोंद्वारा वर्तमान प्रशासन व्यवस्थाकी त्रुटियोंका अभ्यास कर धर्माधारित हिंदू राष्ट्रमें वे त्रुटियां न रहें, इस दृष्टिकोणसे समाधानयोजना ढूंढना

उ. व्यापारियोंद्वारा ‘हिंदू राष्ट्र’की स्थापना हेतु कार्यरत व्यकि्त एवं संगठनोंको प्रतिमास वस्तु अथवा धन अर्पित करना

ऊ. पुस्तकालयोंद्वारा ‘हिंदू राष्ट्र’की स्थापनाका विचार प्रसारित करनेवाले ग्रंथ उपलब्ध कर जनप्रबोधन करना

ए. हिंदू संगठनोंद्वारा ‘लव जिहाद’का विरोध’, ‘धर्मांतरितोंका शुदि्धकरण’, ‘गोरक्षा’, ‘गंगा शुदि्धकरण’ इत्यादि उपक्रमोंसहित धर्माधारित ‘हिंदू राष्ट्र’की स्थापना होने हेतु जागृतिपर उपक्रम चलाना

ऐ. वेदपाठशाला एवं पुरोहितोंद्वारा ‘हिंदू राष्ट्र’की स्थापनाके लिए आध्यात्मिक बल प्राप्त होने हेतु यज्ञयाग आदि करना

ओ. संत एवं आध्यात्मिक संप्रदायोंद्वारा ‘हिंदू राष्ट्र’स्थापना हेतु प्रतिदिन कुछ समय प्रार्थना एवं नामजप करना

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