द्रविड ही इस देश के मूलनिवासी हैं तथा उनकी संस्कृति ही श्रेष्ठ है !

आलोचना : द्रविड ही इस देश के मूलनिवासी हैं और उनकी संस्कृति ही श्रेष्ठ है !

खंडन : युरोपियन लोगों को अपने ‘हिन्दुस्थान असभ्य है तथा उसकी अपेक्षा युरोपियन संस्कृति सभी क्षेत्रों में अत्यंत श्रेष्ठ है’, इस अहंकार की तृप्ति करनी थी; इसलिए ब्रिटिश सहित हर पाश्‍चात्त्य विचारधारा (आइडियोलॉजी) एवं तत्त्वज्ञानद्वारा अपने लाभ हेतु ‘द्रविड ही इस देश के मूलनिवासी हैं तथा उनकी संस्कृति ही श्रेष्ठ है’, इस झूठे सिद्धांत का उपयोग किया गया है। इसीलिए वैदिक संस्कृति को अधम सिद्ध कर आर्य आक्रमण के सिद्धांत को प्रस्थापित करने हेतु उन्होंने बहुत भागदौड की। आगे जाकर यही सिद्धांत दृढ हुआ और आज विद्यालय एवं महाविद्यालयों में उसी इतिहास को सिखाया जा रहा है ! विशेष बात यह है कि, रमेश मुजुमदार जैसे हमारे विख्यात विद्वान हिन्दू इतिहासकार मूल स्वरूप से अनुसंधान न कर जो युरोपियन इतिहासकारों ने बताया, उसी का अनुकरण करते हैं, यह दुर्भाग्यपूर्ण है ! (उनकेद्वारा लिखा History and culture of the Indian people, vol. 1 देखिए)

आज दक्षिण भारत के नेता, मार्क्सवादी, ईसाई एवं इस्लामी धर्मगुरु भी अपने स्वार्थ हेतु उसी सिद्धांत का उपयोग कर रहे हैं। इसी सिद्धांत पर आधारित उनके मत आगे दिए गए हैं . . .

१. बाहर से आए आर्यों ने भारत पर आक्रमण किया !

आलोचना : ‘आर्यों का मूलस्थान उत्तर पश्‍चिम (वायव्य) की ओर अर्थात मूल उत्तर ध्रुव, अफगानिस्तान, ईरान अथवा मध्य एशिया में से कोई एक है। लगभग ५ सहस्र वर्ष पहले श्‍वेत त्वचावाले बंजारे इंडो-युरोपियन (अर्थात आर्य) समूहों ने उस क्षेत्र से हिमालय पर्वतशृंखला पार कर हिन्दुस्थान में प्रवेश किया !’ – मैक्सम्युलर एवं अन्य पाश्‍चात्त्य अनुसंधानकर्ता

खंडन

अ. प्रत्यक्ष ऋग्वेद की अनेक ऋचाओं में ‘हमारे पूर्वज यहीं थे’, ऐसा स्पष्ट उल्लेख मिलता है !

आ. संस्कृत के किसी भी प्राचीन ग्रंथ में आर्यों का मूल स्थान भारत के बाहर होने का धुंधला सा भी संकेत नहीं है ! (म्युर Original Sanskrit Text – Vol 2, पृष्ठ क्र. ३४७) एक अनुसंधानकर्ता एलफिस्टनद्वारा भी इसी प्रकार से उल्लेख किया गया है !

इ. मूलतः ‘आर्य’ जातिवाचक नहीं है। ‘कृण्वन्तो विश्‍वम् आर्यम्।’ की उदघोषणा आर्य शब्द ‘जातिवाचक न होकर ‘गुणदर्शक’ है, यह सिद्ध करने के लिए पर्याप्त है !

– गुरुदेव डॉ. काटेस्वामीजी (साप्ताहिक ‘सनातन चिंतन’ (२८.२.२००८), अंक ५)

२. आर्य का अर्थ इंडो-युरोपिअन भाषाओं में से किसी भी भाषा को बोलनेवाला मनुष्य !

आलोचना : ऑक्सफर्ड का शब्दकोश ‘आर्य’ शब्द को भारतीय-युरोपियन भाषा से जोडता है, जबकि Oxford Advanced Learners Dictionary आर्य शब्द को Indo-European languages से जोडती है।

१. लगभग वर्ष १५०० में दक्षिण एशिया में गए समूह का सदस्य (A member of the group of people that went to South Asia in around 1500 BC)

२. इंडो-युरोपिअन भाषाओं में से कोई भी भाषा बोलनेवाला व्यक्ति (A person who spoke any of the languages of the Indo-European group)

खंडन : पाश्‍चात्त्यों ने ही यह शब्दकोश बनाया है, इसलिए उन्होंने उसमें उनको अपेक्षित अर्थ ही लिया है। ‘आर्य’ का अर्थ सज्जन, सात्त्विक, श्रेष्ठ, धर्म के अनुसार आचरण करनेवाले, मान्यवर अथवा सम्माननीय है !

‘आर्य’ शब्द से संबंधित विवाद जिससे आरंभ हुआ, वह मैक्सम्युलर ही कहता है, ‘‘आर्य का अर्थ वंश नहीं है। आर्य का अर्थ है सुसंस्कृत सभ्य पुरुष। मैं ‘आर्यन’ संज्ञा का प्रयोग किसी भी मानववंश के लिए नहीं करता; अपितु भाषा के लिए करता हूं, ऐसा होते हुए भी आर्यवंश की कल्पना मुझ पर थोपी गई !’’ इससे यह सिद्ध होता है कि आर्य बाहर से नहीं आए। वे मूलतः भारतीय हैं। अतः इस शब्दकोश में सुधार करने हेतु प्रयास करना आवश्यक है।

३. आर्य बाहर से आए हैं, इसका प्रमाण यह है कि अनेक व्यक्ति एक-दूसरे को ‘आर्य’ के नाम से बुलाते थे।

आलोचना : आर्यों के बाहर से आने का एक प्रमाण यह है कि संस्कृत के संभाषण में अनेक व्यक्ति एक-दूसरे को ‘आर्य’ नाम से बुलाते हैं।

खंडन : प्राचीन काल में सामनेवाले को सम्मान के साथ बुलाते समय ‘आर्य’ कहकर बुलाते थे। जिसमें सृजन का अभाव है, जो डरपोक एवं हीन है, वह अनार्य है !

अ. दुष्यन्त राजा शकुंतला को अपना परिचय नहीं दे रहे थे, तब शकुंतला उन्हें सम्मान से ‘आर्य’ कहती हैं। इससे आर्य का अर्थ है सज्जन मनुष्य ! अतः ‘एक-दूसरे को आर्य के नाम से बुलाना’, इसका प्रमाण नहीं हो सकता कि आर्य बाहर से आए थे। इसलिए ऐसा कहना हास्यास्पद है !

आ. आर्य = आरे + अयन, आरे का अर्थ आधार (गाडी के पहिए को होते हैं, उस प्रकार के) + अयन का अर्थ ऋतुचक्र। ‘आर्य का अर्थ है ऋतुचक्र की भांति अर्थात प्रकृति के चक्र के अनुसार चलनेवाले !’ इससे सज्जन, सात्त्विक, श्रेष्ठ, धर्म के अनुसार आचरण करनेवाला, मान्यवर एवं सम्माननीय यही आर्य का योग्य अर्थ है, यह ध्यान में आता है।

४. भ्रष्ट शासनकर्ता आर्यों ने द्रविडों को दलित बनाया !

आलोचना : भ्रष्ट शासनकर्ता आर्यों ने द्रविडों को दलित बनाया। आज के जो हिन्दू हैं, वो आर्य एवं अनार्य के एकत्रिकरण से बने हैं। उसमें से मूल आर्य अब ब्राह्मण, क्षत्रिय एवं वैश्य इन ३ वर्गों में हैं तथा अनार्य आज के शूद्र एवं अतिशूद्र हैं !

खंडन :

अ. ‘आर्य-द्रविड वंशभेद पाखंड है’, यह वैज्ञानिकों का स्पष्ट प्रतिपादन है !

१. सभी भारतीयों में आनुवंशिक संबंध हैं’, ऐसा हॉर्वर्ड के तथा भारतीय शोधकर्ताओंद्वारा भारतीयों के पूर्वजों के विषय में किए शोध से सिद्ध हुआ है !

२. ‘उत्तर-दक्षिण’ का कोई भेद ही नहीं है, ऐसा ‘सेंटर फॉर सेल्युलर एंड मॉलिक्युलर बायोलॉजी’ के पूर्व निदेशक लालजी सिंह ने बताया !

३. ‘आर्य-द्रविड सिद्धांत तथ्यहीन है’, ऐसा ‘सेंटर फॉर सेल्युलर एंड मॉलिक्युलर बायोलॉजी’ के वैज्ञानिक कुमारस्वामी थंगराजन ने कहा। इस अध्ययन के लिए वैज्ञानिकों ने १३ राज्यों के २५ विविध समूहों के १३२ व्यक्तियों के ५ लाख वांशिक नमूनों का विश्‍लेषण किया। इसके लिए उच्च एवं कनिष्ठ जातियों के साथ ही आदिवासी समूह के व्यक्तियों को भी चुना गया था। ‘आनुवंशिकता शास्त्र के अनुसार आर्य, द्रविड एवं अन्य जातियां अलग नहीं हैं। इसके विपरीत उनमें भेद करना असंभव है’, ऐसा इस अनुसंधान में कहा गया है ! (दैनिक सनातन प्रभात, आश्‍विन शुद्ध एकादशी, कलियुग वर्ष ५१११ (२९.९.२००९)

आ. ‘शूद्र मुलरूप से कौन हैं ?’, इस ग्रंथ में डॉ. आंबेडकर ने भी यही कहा है कि ‘आर्यवंशियों ने भारत पर आक्रमण किया’, इस बात का वेदों में कोई प्रमाण नहीं है !’ – डॉ. प्र.ना. अवसरीकर, पुणे (महाराष्ट्र टाईम्स)

५. आर्यों ने यदि उस मिश्र संस्कृति को कुछ दिया हो, तो वह केवल संस्कृत भाषा, जातिसंस्था एवं वर्णव्यवस्था !

आलोचना : ‘आक्रमण के पश्‍चात मूल द्रविड वंश से आर्यों ने उनकी श्रेष्ठ संस्कृति को अपने में मिला लिया, उन्होंने उनको इसका तनिक भी श्रेय नहीं दिया। उसके विपरीत उन्होंने अपने आक्रमणों के सभी प्रमाण नष्ट कर दिए। आर्यों ने उस मिश्र संस्कृति को यदि कुछ दिया हो, तो वह है केवल संस्कृत भाषा ! (संस्कृत का अर्थ इंडो-युरोपियन प्रकार में अंतर्निहित भाषा), जातिसंस्था एवं वर्णव्यवस्था !

(साप्ताहिक ‘सनातन चिंतन’ (२८.२.२००८)

खंडन : ‘आक्रमण करने के पश्‍चात आर्यों ने अपने आक्रमणों के सभी प्रमाण नष्ट कर दिए तथा उन्होंने उस मिश्र संस्कृति को केवल संस्कृत भाषा, जातिसंस्था एवं वर्णव्यवस्था दी, इसे किसी पुराणवस्तुशास्त्र (Archeology) अथवा किसी Jee*dcee का आधार नहीं है !

एक ओर ‘आर्य द्रविड लोगों से अधिक विकसित थे तथा आर्यों ने ही श्रेष्ठ वेदों को लिखा’ ऐसा कहना और दूसरी ओर ‘द्रविडों से उनकी श्रेष्ठ संस्कृति लेकर आर्यों ने उसे अपने में समा लिया’, ऐसा भी कहना। इस प्रकार के उलटेपुलटे वक्तव्य कर समाज को विभाजित करने का काम ब्रिटिशों ने किया। ‘फूट डालो और राज्य करो’ की नीति के माध्यम से ही ब्रिटिशों ने भारत पर राज्य किया। दक्षिण में स्थित राजनेता एवं मार्क्सवादी स्वयं के स्वार्थ हेतु अब इसी सिद्धांत का उपयोग कर रहे हैं; किंतु वह सिद्धांत झूठा है तथा संस्कृत भाषा ही सिंधु संस्कृति की भाषा है और द्रविडी भाषा तो उसके पश्‍चात प्रचलित हुई, यह अब सिद्ध हो चुका है !’

– गुरुदेव डॉ. काटेस्वामीजी (साप्ताहिक ‘सनातन चिंतन’ (२१.२.२००८)

स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात

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