हिन्दू धर्म के तत्त्वों का शुद्धीकरण करने हेतु ईसाई धर्म का सजीव एवं ताजा जल अपरिहार्य है ! – ईसाई

आलोचना : ‘हिन्दुुस्थान को अति प्राचीन काल से किसी धर्म का ज्ञान था । ठीक है; परंतु उनके मूल सत्य आगे विकृत हो गए एवं उन्हें पुनर्जीवित करने एवं शुद्धीकरण करने हेतु ईसाई धर्म का सजीव और ताजा जल अपरिहार्य है । – ईसाई

खंडन

१. हिन्दू धर्म की परंपरा आज भी अखंडित होने के कारण पश्चिमी लोगों का हिन्दू धर्म की ओर मुडना ! :

‘केवल अपने धर्म का महिमामंडिन करने हेतु ईसाईयों द्वारा किया गया यह फिका तर्क है । हिन्दू धर्म का महान इतिहास पृथक करना संभव नहीं; क्योंकि हिन्दू धर्म की महत्ता एवं गहनता आज भी है । हिन्दू धर्म की परंपराएं अखंडित हैं । इन परंपराओं के कारण आज भी हिन्दू धर्म ने अपनी शुद्धता निरंतर एवं यथातथ्य संजोकर रखी है; इसीलिए आज अनेक पश्चिमी लोग हिन्दू धर्म की ओर आकर्षित हो रहे हैं ।’ – गुरुदेव डॉ. काटेस्वामीजी (घनगर्जित, जुलाई २००७)

२. ईसाई धर्म की ओर मोडने हेतु ईसाईयों ने हिन्दुओं का बुद्धिभ्रम करना :

‘मूलतः हिन्दू धर्म के मूल सत्य विकृत नहीं हुए हैं, अपितु कलियुग के प्रभाव से हिन्दू धर्मियों ने धर्माचरण करना छोड दिया है । उन्होंने पश्चिमी संस्कृति का स्वीकार किया, इसलिए ईसाई उन्हें भ्रमित कर ईसाई धर्म की ओर मोडने का प्रयास करते हैं । इसलिए धर्मशिक्षा द्वारा समाज को जागृत कर उसे धर्माचरण का महत्त्व बताना अत्यंत आवश्यक हो गया है ।’ – प.पू. पांडे महाराज

एक भी धर्मगुरु को सुसंस्कृत बनाने में असफल ईसाई धर्म महान हिन्दू धर्म का क्या शुद्धीकरण करेगा ? :

‘आज पश्चिमी देश के अनेक बडे-बडे चर्च रिक्त हो गए हैं । स्वयं को धर्मगुरु कहलानेवाले लोगों द्वारा किए भ्रष्टाचार तथा यौन अत्याचार के कारण लोगों ने चर्च की उपेक्षा की है । जो पंथ उनके ही एक भी धर्मगुरु को सुसंस्कृत बनाने में असफल सिद्ध हुआ, वह अन्य लोगों का क्या मार्गदर्शन करेगा ? हिन्दू धर्म के जो सिद्धांत आज विकृत प्रतीत होते हैं, उस विकृति अर्थात धर्मग्लानि को दूर करने हेतु आज हमारे धर्म में अनेक संत एवं धर्मग्रंथ हैं । साथ ही देवी-देवताओं के आशीर्वाद भी हैं । इसलिए ईसाई धर्म के सजीव और ताजे जल की कोई आवश्यकता नहीं है । उचित समय आने पर धर्मग्लानि दूर होकर हिन्दू धर्म ‘विश्वधर्म’ के रूप में निश्चित ही स्वीकार किया जाएगा; परंतु ईसाई धर्म में ऐसे कौनसे शाश्वत सिद्धांत हैं जिससे वह जीवित रह सके ? हिन्दुस्थान ही नहीं, अपितु पूरे विश्व को आज स्वेच्छाचारी एवं धोखेबाज ईसाई धर्म की नहीं, अपितु केवल हिन्दू धर्म की ही आवश्यकता है ।’ – प.पू. पांडे महाराज

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