धर्म एवं रूढि में सम्भ्रम उत्पन्न कर ‘खरपतवार के समान धर्म की अनिष्ट रूढियां दूर करनी पडती हैं’, ऐसा वक्तव्य करनेवाले आधुनिक विद्वान !

टिपणी : ‘जिस प्रकार खरपतवार को समय-समय पर दूर करना आवश्यक है, अन्यथा उसका परिणाम अनाज पर होता है; उसी प्रकार धर्म में स्थित अनिष्ट रूढियां समय-समय पर दूर करना आवश्यक है !’

(‘अध्यात्म’ ग्रंथ, सूत्र ९ औ १. बुद्धिवादियों को आवाहन) (१४, १५)

खंडन : ‘धर्म एवं रूढि में सम्भ्रम उत्पन्न न करें। धर्म का रूढि से कोई संबंध नहीं। धर्म सर्वत्र एक समान रहता है; किंतु रूढियां उस क्षेत्र की परिस्थिति के अनुसार बनती हैं; परंतु यदि वे धर्मविघातक रहेंगी, तो उन पर प्रहार कर उन्हें बंद करना आवश्यक रहता है। जिससे धर्म अबाधित रहे !

जिस प्रकार हर घर में गणेशव्रत का पालन किया जाता था; किंतु लोगों को इकट्ठा करने हेतु तथा उसकेद्वारा उचित धर्माचरण का प्रसार करने के उद्देश्य से लोकमान्य टिळक ने सामूहिक गणेशोत्सव आरंभ किया था। आज समाज में रज-तम गुणों की प्रबलता बढने लगी है, इसलिए भौतिकता बढकर गणेशोत्सव में अनिष्ट प्रकार होने लगे हैं। इससे उत्सव की पवित्रता नष्ट हो रही है; इसलिए ऐसे अनिष्ट प्रकारों को प्रतिबंधित करना आवश्यक है !’

स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात

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