आर्यों ने सिंधु नदी तट पर स्थित प्राचीन काल की सर्वाधिक महान सिंधु संस्कृति नष्ट की !

टिपणी : यह अत्यंत श्रेष्ठ संस्कृति थी। वह इ.स. पूर्व १५०० में सदा के लिए अदृश्य हो गई।’ यह संस्कृति समाप्त होने का कारण ब्रिटिश इतिहासकार इस प्रकार बताते हैं कि, मध्य एशिया में भटकनेवाले आर्यों की टोली ने भारत पर आक्रमण किया तथा यह श्रेष्ठ संस्कृति मिट्टी में मिलाई। ये आर्य आक्रमणकारी भारत की उत्तरपश्चिमी सीमा के प्रांत खैबर खिंडी से भारत में बलपूर्वक घुसे। सिंधु संस्कृति की बस्तियों पर आक्रमण किया तथा पूरे उत्तर भारत पर बलपूर्वक अधिकार किया। तत्पश्चात उन्होंने अपना वाङ्मय निर्माण किया। उनके सबसे प्रमुख ग्रंथ का नाम ऋग्वेद है।

खंडन : 

१. आर्यों का हिन्दुस्थान पर आक्रमण राजनीतिक षड्यंत्र तथा उसका कोई शास्त्रीय एवं साहित्यिक प्रमाण न होना : उत्खनन, सैटेलाईट छायाचित्र तथा संगणकीय विश्लेषण के माध्यम से (स्व.) वाकणकर तथा ‘अमेरिकन इंस्टिट्यूट ऑफ वेदिक स्टडीज’ के संचालक डेव्हिड फ्रॉले तथा कनडा के ‘इंटरनेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ इंडियन स्टडीज’ के उपाध्यक्ष डॉ. राजाराम इन दोनों ने मिलकर ‘वेदिक आर्यन्स एंड द ओरिजिन्स ऑफ सिक्विलायजेशन’, नामक ग्रंथ लिखकर यह सिद्ध किया है कि, ‘आर्यों का हिन्दुस्थान पर आक्रमण एक राजनीतिक षड्यंत्र है। उसका किसी भी प्रकार का शास्त्रीय अथवा साहित्यिक प्रमाण नहीं है।’ डेव्हिड फ्रॉले का ‘द मिथ ऑफ दी आर्यन इन्वेशन ऑफ इंडिया’ यह ग्रंथ उल्लेखनीय है। उसे पढने के पश्चात यह ध्यान में आएगा कि, ‘हमारे देश के लोगों का ब्रिटीश पंडितों ने किस प्रकार मनोबल तोडा है। मोहन्जोदरो में जो थी, वही आर्यों की संस्कृति थी, वही सरस्वती के तट पर रहनेवालों की संस्कृति थी। उत्खनन के ‘अवशेषों से यह स्पष्ट होता है कि, ‘आर्य संस्कृति के चिन्ह अर्थात घोडा, लोहा, गोपालन, अग्निपूजा यही हैं !’ सैटेलाईट पर इस लुप्त हुई संस्कृति का स्थान ज्ञात होता है !

– डॉ. प्र. ना. अवसरीकर, पुणे

२. युरोप की धार्मिक तथा राजनीतिक श्रद्धा पर आर्य आक्रमण का अनुचित सिद्धांत प्रस्थापित होना : ब्रिटिश तथा अन्य पश्चिमी इतिहासकारों का यह मत है कि, ‘हिन्दुस्थान का इतिहास आर्यों के आक्रमण से प्रारंभ हुआ है !’ साथ ही इस पूरे इतिहास के समाचारों से अभ्यासकों का यह मत बनता है कि, ‘आर्य आक्रमण का सिद्धांत उत्खनन के शोध पर आधारित है। उत्खनन में प्राप्त हडप्पा तथा मोहन्जोदरो नगरों के आधार पर यह सिद्धांत प्रस्तुत किया गया है !’ वास्तव में ऐसा नहीं है !

यह आर्य आक्रमण का सिद्धांत २०० वर्ष पूर्व का है तथा उस समय भूगर्भशास्त्र आस्तित्व में नहीं था। वास्तव में १८ वीं तथा १९ वीं शताब्दी के युरोप की धार्मिक एवं राजनीतिक श्रद्धाओं पर यह सिद्धांत प्रस्थापित किया गया है। तत्पश्चात भाषिक शोधकर्ताओं ने यह सिद्ध सिद्धांत स्वीकृत किया तथा उसे भाषिक ढांचे में बिठाया। यह संशोधन अनुचित है।

यह कितना पूर्वग्रहदूषित है यह राजाराम, डेव्हिड फ्रॉले जैसे शोधकर्ताओं ने सप्रमाण सिद्ध किया है !

२ अ. आर्यों के आक्रमण का शोध कितना पूर्वग्रहदूषित है, यह दर्शानेवाली राजाराम तथा डेव्हिड फ्रॉले के पुस्तकों की सूची इस प्रकार हैं –

1. Gods, Sages and Kings : Vedic secrets of Ancient civilisation. by David Frawley.

2. Vedic Aryans and the Origins of Civilisation. A Literary and Scientific Perspective. by N.S. Rajaram and David Frawley.

3. Aryan Invasion of India – the Myth and the truth. by N.S.Rajaram Nene Dethi (?) Voice of India, 1993.

4. The Politics of History – Aryan Invasion Theory and the Subversions of Scholarship. by N.S. Rajaram.’

– गुरुदेव डॉ. काटेस्वामीजी (साप्ताहिक ‘सनातन चिंतन’, ४.३.२०१०)

स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात

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