सूक्ष्म की अनिष्ट शक्तियों को नष्ट करने हेतु साधना आवश्यक !

मनुष्य कितना भी बलवान है, उसके पास शस्त्र हो, फिर भी उसे कीटाणूनाशक औषधियों का सेवन करना पडता है; क्योंकि कीटाणू सूक्ष्म होते हैं । उसी प्रकार अनिष्ट शक्तियों को नष्ट करने हेतु साधना करनी पडती है । पाश्‍चात्त्यों को केवल कीटाणू समझ में आए जबकि अपने संतों एवं ऋषियों को सूक्ष्मातिसूक्ष्म विश्व समझ में … Read more

अध्यात्म आैर विज्ञान में अंतर

विज्ञान में, जानकारी एकत्र कर प्रश्‍न का उत्तर ढूंढना पडता है । इसके विपरीत अध्यात्म में, जानकारी एकत्र किए बिना ही प्रत्येक प्रश्‍न का उत्तर तत्काल मिलता है ।

संत सदैव आनंदी होते हैं !

अपने बच्चे का आगे क्या होगा ?, ऐसी चिंता उसके मां-बाप को होती है । इसके विपरीत राष्ट्र के सभी अपने बच्चे ही हैं, ऐसे व्यापक भाव के कारण संत सदैव आनंदी होते हैं ।

स्वभावदोष एवं अहं निर्मूलन काे कलियुग में प्राधान्य रहेगा !

स्वभावदोष एवं अहं का निर्मूलन करने पर किसी भी साधनामार्ग से साधना कर शीघ्र उन्नति करना संभव होता है । पूर्व के युग में स्वभावदोष एवं अहं का प्रमाण अधिक न होने से स्वभावदोष एवं अहं का निर्मूलन करने की आवश्यकता नहीं थी, वे अपने आप नष्ट होते थे ।

भक्तियोग में होनेवाली समष्टि साधना !

अत्यधिक लोगों को ऐसा प्रतीत होता है कि, भक्तियोग में केवल व्यष्टि साधना होती है । परंतु प्रत्यक्ष में वैसा नहीं है, अपितु भक्त की ओर अन्य लोग आकर्षित होते हैं एवं उनके मार्गदर्शनानुसार साधना करने लगते हैं । इसलिए उनकी समष्टि साधना भी होती है ।

‘विज्ञान केवल स्थूल पंचज्ञानेंद्रियों के संदर्भ में ही संशोधन करता…

‘विज्ञान केवल स्थूल पंचज्ञानेंद्रियों के संदर्भ में ही संशोधन करता है, किंतु अध्यात्म केवल स्थूल एवं सूक्ष्म ही नहीं, अपितु सूक्ष्मतर एवं सूक्ष्मतम का भी विचार करता है !’

अध्यात्म में आयु का नहीं, अपितु आध्यात्मिक स्तर का महत्त्व होता है !

‘व्यावहारिक जीवन में हमसे अधिक आयु के व्यक्ति को हम नमस्कार करते हैं । इसके विपरीत अध्यात्म में आयु का नहीं, अपितु आध्यात्मिक स्तर का महत्त्व होता है ! छोटी आयु के संतों को भी बडे व्यक्ति सम्मान के साथ नमस्कार करते हैं ।’

अध्यात्म में आयु का नहीं, अपितु आध्यात्मिक स्तर का महत्त्व…

अध्यात्म में आयु का नहीं, अपितु आध्यात्मिक स्तर का महत्त्व होता है ! : ‘व्यावहारिक जीवन में हमसे अधिक आयु के व्यक्ति को हम नमस्कार करते हैं । इसके विपरीत अध्यात्म में आयु का नहीं, अपितु आध्यात्मिक स्तर का महत्त्व होता है ! छोटी आयु के संतों को भी बडे व्यक्ति सम्मान के साथ नमस्कार … Read more

‘कहां है आप का भगवान ?’, ऐसा कहनेवाले उचित भाष्य…

‘कहां है आप का भगवान ?’, ऐसा कहनेवाले उचित भाष्य करते हैं; क्योंकि मृत्यु के पश्चात वे एक तो भगवान के, अन्यथा असुर के घर अथवा पाताल अथवा नरक में जाते हैं । इसलिए उन्हें ईश्वर कभी नहीं मिलता ।