संतों के दर्शन से कुछ अच्छा लगना अथवा कुछ भी न लगना

किसी संत के पास जानेपर कुछ लोगों को अच्छा लगता है अथवा उनमें भाव जागृत होता है, तो कुछ लोगों को कुछ भी नहीं लगता । उसमें से कुछ लोगों को कुछ भी न लगने से बुरा लगता है । अनुभूति प्राप्त होना अथवा न प्राप्त होने के कारण निम्न प्रकार से हैं –

१. संतों के स्थूलशरीर की ओर ध्यान देना : साधना के प्रारंभ में संतों को केवल आंखों से देखना और उनकी बातें कानों से सुनना, इतना ही होता है । उस समय संतों की ओर से प्रक्षेपित होनेवाला चैतन्य, आनंद आदि की अनुभूति लेने की क्षमता न होने से उसमें कुछ अलग नहीं लगता; परंतु जिन्होंने साधना में उन्नति की है, उनको ये प्रतित होता है ।

२. कृतज्ञभाव का होना अथवा न होना : संतों को देखकर कुछ लोगों में भाव जागृत होता है । वह कृतज्ञभाव होता है । संतों द्वारा अभीतक किया गया मार्गदर्शन अथवा उनके द्वारा की गई सहायता का स्मरण होकर भाव जागृत होता है । प्राथमिक अवस्थावाले साधकों में कृतज्ञभाव न होने से उनमें भाव जागृत नहीं होता ।

३. साधनापद्धति के अनुसार कुछ अच्छा लगना : कुछ लोगों को उनके द्वारा अपनाई गई साधनापद्धति के अनुसार उस पद्धति में व्याप्त तरंग प्रतित होते हैं । अतः उनको इस साधनापद्धति का अनुसरण करनेवाले संतों से मिलने से अच्छा लगता है; परंतु जो लोग साधना के अगले चरण में पहुंच गए हों, उनको किसी भी साधनापद्धति का अनुसरण करनेवाले संतों के मिलनेपर भी उनको अपनी साधनापद्धति के अनुसार विशेषतापूर्ण अनुभूतियां प्राप्त होती हैं ।

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