देवता की कितनी परिक्रमा करनी चाहिए ?

हममें से अधिकतर लोग देवता के दर्शन हेतु देवालय जाते हैं । दर्शन का सर्वाधिक लाभ मिले इस हेतु व्यक्ति को देवता की परिक्रमा अवश्य करनी चाहिए । हाथों को नमस्कार मुद्रा में रख गर्भ गृह के बांए से सामान्य गति से भगवान का नामजप करते हुए परिक्रमा करना चाहिए । Read more »

तरकारी (सब्जी) काटने की उचित पद्धति

हम सभी प्रतिदिन सब्जी बनाते हैं । सब्जी काटते समय हम कभी क्या इसका विचार करते हैं कि सब्जी कैसे काटनी चाहिए कि उससे बनने वाला भोजन सात्त्विक हो । आज हम सब्जी से संबंधित आचार नियमों को जानेंगे । Read more »

भोजन में नमक का प्रयोग आवश्यक मात्रा में ही क्यों करना चाहिए ?

भोजन बनाने हेतु प्रयुक्त महत्त्वपूर्ण सामग्री में ‘नमक’का स्थान अग्रगण्य है । यद्यपि यह सत्य है कि नमक के बिना भोजन रुचिकर नहीं बनता, तथापि नमक का प्रयोग आवश्यक मात्रा में ही क्यों करना चाहिए, यह आगे दिए सूत्रों से ज्ञात होगा । Read more »

गाय का दूध एवं उससे बने घी का महत्त्व

गाय को हिंदू धर्म में अत्यंत पवित्र माना जाता है; क्योंकि उसके दूध से घी समान सात्त्विक घटक की निर्मिति संभव है । इस लेख में हम इस गाय का दूध एवं उससे बने घी संदर्भ में जानकारी प्राप्त करेंगे । Read more »

रसोई से संबंधित बर्तनों की धातुओं का महत्त्व

वर्तमान युग में भोजन बनाने तथा उसे ग्रहण करने हेतु विविध धातुओं के बर्तनों का प्रयोग किया जाता है । इस लेख में हम देखते है की रसोई से संबंधित बर्तनों की धातुओं में सबसे स्वास्थ्यप्रद धातु कौनसा है । Read more »

सोते समय पूर्व-पश्चिम दिशा में क्यो सोना चाहिए ?

पूर्व-पश्चिम दिशा में सोना चाहिए । इससे सत्त्व, रज एवं तम तरंगों में समतोल रहता है । प्रातः पूर्व दिशा से सत्त्व तरंगें अधिक मात्रा में प्रक्षेपित होती हैं । ब्रह्मरंध्र द्वारा वातावरण की सत्त्व तरंगें शरीर में प्रवेश करती हैं । उन्हें ग्रहण कर जीव सात्त्विक बनता है । Read more »

कहां नहीं सोना चाहिए ?

जिस प्रकार आध्यात्मिक शास्त्र अन्य कार्यों की विधि समझाता है, उसी प्रकार सोने के भी कई नियम हैं जिनका पालन करने से हमें दैविक रक्षा उपलब्ध होती है । सोने के स्थान पर यदि हम ध्यान दें तो ऐसे कई स्थान हैं जहांँ सोना वर्जित है । Read more »

भेंट (उपहार) देना

आजकल कीमती वस्तुएं भेंटस्वरूप देने को उपहार मानते हैं; परंतु वास्तव में यह भावनावश किया गया कर्म है । ‘भेंट’ दूसरे जीव की आध्यात्मिक उन्नति हेतु पोषक होनी चाहिए । इसके कुछ उदाहरण हैं, ईश्वरप्राप्ति हेतु साधना सिखानेवाले ग्रंथ, भक्तिभाव बढानेवाले देवताओें के सात्त्विक चित्र एवं नामजप-पट्टियां । Read more »

हिन्दू संस्कृति का प्रतीक ‘नमस्कार’

ईश्वरके दर्शन करते समय अथवा ज्येष्ठ या सम्माननीय व्यक्तिसे मिलनेपर हमारे हाथ अनायास ही जुड जाते हैं । हिंदू मनपर अंकित एक सात्त्विक संस्कार है `नमस्कार’ । भक्तिभाव, प्रेम, आदर, लीनता जैसे दैवीगुणोंको व्यक्त करनेवाली व ईश्वरीय शक्ति प्रदान करनेवाली यह एक सहज धार्मिक कृति है । Read more »

आरती कैसे करें ?

उपासकके हृदयमें भक्तिदीपको तेजोमय बनानेका व देवतासे कृपाशीर्वाद ग्रहण करनेका सुलभ शुभावसर है `आरती’ । कोई कृति हमारे अंत:करणसे तब तब होती है, जब उसका महत्त्व हमारे मनपर अंकित हो । इसी उद्देश्यसे आरतीके अंतर्गत विविध कृतियोंका आधारभूत अध्यात्मशास्त्र यहां दे रहे । Read more »