तरकारी (सब्जी) काटने की उचित पद्धति

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हम सभी प्रतिदिन सब्जी बनाते हैं । तरकारी (सब्जी) काटते समय हम कभी क्या इसका विचार करते हैं कि तरकारी कैसे काटनी चाहिए कि उससे बनने वाला भोजन सात्त्विक हो । आज हम तरकारी से संबंधित आचार नियमों को जानेंगे ।

        तरकारी धोने के उपरांत काटना आरंभ करें । उसे जल से धोते समय उसमें कुछ मात्रा में सात्त्विक अगरबत्ती की विभूति मिलाएं । तरकारी अधिक समयतक पानी में भिगोए रखने से उसमें विद्यमान ‘ब’ और ‘क’ जीवसत्त्व घटते हैं ।

१. तरकारी काटते समय शरीर की स्थिति

अ. खडे रहकर छुरी से तरकारी काटना

छुरी से विपरीत पद्धति से तरकारी काटने से भी पीडादायी स्पंदनों का वायुमंडल में उत्सर्जन होता है तथा तरकारी भी रज-तमात्मक तरंगों से आवेशित होती है । छुरी आगे से अपनी दिशा में खींचकर लाने का अर्थ है उलटी दिशा में तरकारी काटना । इसी के साथ छुरी से तरकारी काटते समय उसे यथासंभव खडे रहकर काटने से देहकी कोई भी संरक्षक मुद्रा (स्थिति विशेष में जो आकृति बनती है, उसे मुद्रा कहते हैं) निर्मित नहीं होती । इसलिए जीव के मन में चल रहे रज-तमात्मक विचारों की गति के बल पर पाताल से उत्सर्जित पीडादायी स्पंदनों का जीव की देह में संचार आरंभ होता है और उनके स्पर्श से तरकारी भी आवेशित होती है । – पूजनीय (श्रीमती) अंजली मुकुल गाडगीळ

आ. पहंसुल पर बैठकर तरकारी काटना

दाहिना घुटना ऊपर उठाकर और पेट से सटाकर पहंसुल पर बैठें तथा तरकारी काटें ।

बैठकर तरकारी काटने का महत्त्व : पहंसुल पर दाहिना घुटना ऊपर उठाकर बैठने से देह की जो मुद्रा बनती है, उससे जीव के रजोगुणी विचारों के वेग पर भी नियंत्रण रहता है और तरकारी काटने की प्रक्रिया कष्टदायक स्पंदनों की निर्मिति से मुक्त रहती है । तरकारी काटते समय बननेवाली देहकी मुद्रा द्वारा नाभिस्थित पंचप्राण कार्यरत होते हैं तथा देह के रजोगुणपर नियंत्रण रखने में सहायता मिलती है । इससे तरकारी काटते समय हाथ के तमोगुणी स्पर्श से तरकारी दूषित होने से बच जाती है । इससे देह के त्रिगुणात्मक संबंधित स्तरों के अवयवों के विकास हेतु तरकारी में विद्यमान आवश्यक पोषक और पूरक प्राकृतिक सूक्ष्म
रसबीज का भी ह्रास नहीं होता । – पूजनीय (श्रीमती) अंजली मुकुल गाडगीळ

इ. पहंसुल पर बैठकर भावपूर्ण और नामजपसहित तरकारी काटते समय सूक्ष्म-स्तरीय लाभ दर्शानेवाला चित्र

पहंसुल पर बैठकर तरकारी काटने से उत्पन्न स्पंदनों की मात्रा : ‘चैतन्य १.२५ प्रतिशत, शक्ति ३.२५ प्रतिशत एवं तरकारी में कार्यरत शक्ति २ प्रतिशत

अन्य सूत्र

१. काटने की क्रिया से उत्पन्न रज-तमोगुणी स्पंदनों का स्त्रीकी देह पर अधिक परिणाम नहीं होता । नाभि पर (मणिपुरचक्रपर) शक्ति कार्यरत होती है ।

२. नामजप सहित तरकारी काटने की क्रिया से मन अंतर्मुख होता है और तरकारी का सेवन करनेवाले व्यक्ति को शक्ति के स्पंदन प्राप्त होते हैं ।

३. तरकारी काटते समय उत्पन्न नाद के स्पंदन रजोगुणी स्पंदनों की निर्मिति करते हैं; परंतु स्त्री द्वारा नामजप सहित तरकारी काटने पर उसपर इन स्पंदनों का अधिक परिणाम नहीं होता ।

४. नामजप करते हुए मन को अंतर्मुख कर तरकारी न काटने से उंगली कटने की आशंका अधिक होती है ।

५. खडे होकर छुरी से तरकारी काटने पर शक्ति और चैतन्य के स्पंदन आकर्षित नहीं होते ।’
– कु. प्रियांका लोटलीकर, अध्यात्म विश्वविद्यालय, गोवा

टिप्पणी – रजो-तमोगुणी कृत्य के कारण (फसकडा मारकर बैठने के कारण) वातावरण से कष्टदायक स्पंदन आकर्षित होते हैं । इन्हीं स्पंदनों के परिणाम स्वरूप अनिष्ट-शक्ति दर्शक तामसिक व्यक्ति (रूप) दिखाई दिया ।

२. तरकारी काटते समय ध्यान रखने योग्य मुद्दे

अ. डंठल

तरकारी काटते समय उसका डंठल निकालने पर, उसमें घनीभूत और तमोगुण वर्धन हेतु पूरक सिद्ध होनेवाली सूक्ष्म-वायु वायुमंडल में उत्सर्जित होती है ।

आ. तरकारी के संदर्भ में दिशा

तरकारी काटते समय सदैव ऊपर से नीचे की दिशा में काटें । इससे तरकारी काटने के नाद से उत्पन्न जडत्वदर्शक अधोगामी तरंगें भूमि में तत्काल विसर्जित हो पाती हैं ।

इ. शाक

शाक बहुत महीन (बारीक) न काटकर साधारणतः मध्यम आकार में काटें, जिससे पत्तों से रस बाहर न आए ।

ई. तरकारी के टुकडों का आकार

तरकारी को अनुपातिक आकार में अर्थात बहुत बडे अथवा बहुत छोटे भी नहीं, ऐसे मध्यम आकार के टुकडे करें । यदि भिंडी हो, तो एक से डेढ इंच के टुकडे करें । लौकी जैसी बडे आकार की तरकारी हो, तो २-३ इंच के टुकडे करें ।

२-३ इंच के टुकडे खाते समय उन्हें तोडना ही पडेगा । ऐसे में उन्हें पहले से ही छोटे क्यों न काटें ?

सामान्य आकार की तरकारी के टुकडे एक से डेढ इंच के हों । बडे आकार की तरकारी की अधिकतम सीमा २-३ इंच बताई है । टुकडे एक-डेढ इंचसे छोटे न हों; क्योंकि उसमें विद्यमान सूक्ष्मजन्य प्रभावकारी पोषकता दर्शानेवाली रसबीजरूप रिक्तियों का ह्रास हो सकता है । (तरकारी की सूक्ष्म रिक्तियां रसयुक्त होती हैं । अनुपातिक आकार में तरकारी काटने से जीव को भोजन ग्रहण करते समय इस पोषक रस का लाभ होता है ।)

उ. रूप

गोलाकार अथवा खडे और सीधे टुकडे : इस स्वरूप में तरकारी काटने की प्रक्रिया से रज-तमात्मक स्पंदनों की निर्मिति रुक जाती है ।

 

कलात्मक स्वरूप : तरकारी को कलात्मक पद्धति से तिरछे अथवा पतले गोल टुकडों में न काटें; क्योंकि इन तिरछे टुकडों से कष्टदायक स्पंदनों की निर्मिति होती है । उनसे निकलनेवाले सूक्ष्म घर्षणात्मक नाद की ओर वायुमंडल की अनिष्ट शक्तियां आकर्षित होती हैं ।

ऊ. यंत्र से तरकारी काटने से क्या हानि होती है ?

यंत्र से काटी गई तरकारी का चेतनाहीन हो जाती है । विद्युतवेग से चलनेवाले यंत्र वेग के बल पर प्रचंड मात्रा में रज-तमात्मक ऊर्जा का निर्माण करते हैं और यह ऊर्जा ही उस विशिष्ट घटक में विद्यमान जीवसत्त्वरूप कणों को नष्ट करती है । यंत्र अल्प अवधि में अत्युच्च वेग धारण कर तरकारी के टुकडे करता है; इसलिए इस वेग की घर्षणात्मक तरंगों के सूक्ष्म आघातदायी स्पर्श से तरकारी में विद्यमान सूक्ष्म-रस रिक्तियों का उसी स्थान पर विघटन हो जाता है । इसलिए यंत्र से काटी गई तरकारी चेतनाहीन, अर्थात किसी शव समान दिखता है; क्योंकि तरकारी काटने के उपरांत भी उससे बहुत समयतक रज-तमात्मक तेजदायी विघटनात्मक ऊर्जा का उत्सर्जन होता है । इसलिए ऐसी तरकारी गैस के चूल्हेपर पकाने पर इस उत्सर्जित (उत्सारण करनेवाला) ऊर्जा को (उत्सर्जन प्रक्रिया को) और गति मिलती है और कालांतर में यह विघटनात्मक ऊर्जा अन्न पकते हुए ही उसमें घनीभूत होती है । इसलिए हमारे सर्व ओर उत्सारक पीडादायी स्पंदनों के सूक्ष्म वायुमंडल का निर्माण करती है । – पूजनीय (श्रीमती) अंजली मुकुल गाडगीळ

संदर्भ ग्रंथ : सनातन का ग्रंथ, ‘रसोईके आचारोंका अध्यात्मशास्त्र’