भोजन में नमक का प्रयोग आवश्यक मात्रा में ही क्यों करना चाहिए ?

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        भोजन बनाने हेतु प्रयुक्त महत्त्वपूर्ण सामग्री में ‘नमक’का स्थान अग्रगण्य है । यद्यपि यह सत्य है कि नमक के बिना भोजन रुचिकर नहीं बनता, तथापि नमक का प्रयोग आवश्यक मात्रा में ही क्यों करना चाहिए, यह आगे दिए सूत्रों से ज्ञात होगा ।

१. नमक को हथेली पर लेकर न खाएं

नमक को रज-तमोगुणी माना गया है, इसलिए हथेली पर नमक लेने से उसमें तीव्र गति से कार्य करनेवाली रजोतरंगें देह में फैलकर, देह में तमोगुण घनीभूत होने की दृष्टि से सहायक होती हैं । अतः नमक हाथ में लेकर खाना अनुचित कृत्य माना जाता है ।

२. अन्न में आवश्यकता अनुसार ही नमक डालें

सभी व्यंजनों में स्वाद मात्र के लिए ही नमक डालकर उनमें विद्यमान रज-तम को अन्य अन्नघटकों के रसोंद्वारा कार्य की दृष्टि से सीमित रखा जाता है । इस प्रकार अन्न में उचित एवं आवश्यक मात्रा में ही नमक डालने के नियम का कडाई से पालन किया जाता है ।

३. नमक के अतिरिक्त सेवन से बचें

नमक के अतिरिक्त सेवन से देह में रज-तमात्मक तरंगें घनीभूत अवस्था में रहती हैं । इससे विविध स्थानों पर उनके केंद्र निर्मित होते हैं एवं कुछ समय के उपरांत अनिष्ट शक्तियां उन केंद्रों में वास करने लगती हैं । इसलिए भोजन में भी नमक के अतिरिक्त प्रयोग से बचें ।’ – पूजनीय (श्रीमती) अंजली मुकुल गाडगीळ

नमक एवं जामन का (दूध जमाने हेतु छोडी गई खट्टी दही का) लेन-देन रात्रि को क्यों नहीं करना चाहिए ?

रज-तमात्मक वातावरण के कारण रात्रि का समय धर्म में अशुभ माना गया है । इसलिए रात्रि रज-तमात्मक लेन-देन के लिए पोषक है । अतः प्रत्येक कर्म में अनिष्ट शक्तियों की बाधा तथा ली-दी गई वस्तु के माध्यम से अनिष्ट शक्तियों के एक घर से दूसरे घर में प्रवेश करने की आशंका अधिक रहती है । यथासंभव कनिष्ठ स्तर की अनिष्ट शक्तियों को आकर्षित करने के लिए नमक, ज्वार की रोटी (भाकर) एवं छाछ अथवा किसी खट्टे पदार्थ का उतारा देते हैं । इसे ‘श्वेत उतारा’ कहा जाता है इसलिए रात्रि में नमक और जामन के लेन-देन का अशुभ कर्म न करें । – पूजनीय (श्रीमती) अंजली मुकुल गाडगीळ

संदर्भ ग्रंथ : सनातन का ग्रंथ, ‘रसोईके आचारोंका अध्यात्मशास्त्र’