महिलाआें के साथ हो रहे अन्याय के विरुद्ध आवाज उठाने की आड में हिन्दू धर्म की आलोचना करनेवाली धर्मद्रोही साहित्यकार नीरजा !

मुंबई की साहित्यकार नीरजा ने श्री शारदा ग्रंथ प्रसारक संस्था और कला एवं संस्कृति संचलनालय की ओर से फोंडा, गोवा के विद्याप्रसारक मंडल के सभागार में आयोजित कार्यक्रम में महिलाआें के साथ हो रहे अन्याय की आड में हिन्दुआें के धर्मग्रंथ, प्रथा एवं परंपराआें की आलोचना की । उनके द्वारा की गई आलोचना एवं उसका खंडन यहां दे रहे हैं ।

१. हिन्दू धर्म द्वारा महिलाआें का सम्मान किए जाने पर भी हिन्दू धर्म में महिलाआें का स्थान नीचा है, ऐसा कहना असत्य !

अ. आलोचना

मैंने हिन्दू धर्मग्रंथों के साथ ही बाइबल, कुरान जैसे सभी धर्मग्रंथों का अध्ययन किया है । इन सभी धर्मों में महिला को नीचा दिखाया गया है । उनमें महिलाआें को स्वतंत्रता नहीं दी गई है ।

खंडन

हिन्दू धर्म ने महिला को जितनी स्वतंत्रता दी है, उतनी अन्य किसी धर्म ने नहीं दी है । वास्तव में हिन्दू धर्म में महिलाआें को प्रदान की गई स्वतंत्रता के कारण ही नीरजा ऐसा बोलने का साहस दिखा सकती है । आजकल स्वतंत्रता के नाम पर जो किया जाता है, वह स्वैराचार है । हिन्दू धर्म में महिला को मर्यादा के साथ कैसे रहना है, यह उसके भले के लिए ही बताया गया है । इसके विपरीत मुसलमान पंथ में महिलाआें को हिजाब पहनने के लिए कहा गया है और पुरुषों को अनेक विवाह करने की अनुमति दी गई है ! नीरजा इस विषय को न बताकर केवल लोकप्रियता के लालच में महिलाआें का दिशाभ्रम कर रही है ।

आ. आलोचना

महिला के गर्भ से उत्पन्न होने पर भी धर्म ने पुरुष को ही वर्चस्व प्रदान किया है । पुराणकाल में महिलाएं स्वतंत्र नहीं थी ।

खंडन

प्राचीन काल में अरुंधती, गार्गी एवं मैत्रेयी जैसी महिलाएं वेदशास्त्र में निपुण थीं । तत्कालीन महिलाएं युद्धनीति के साथ ही विविध शस्त्रों को चलाने में भी निपुण थीं । मध्यप्रदेश की रानी दुर्गावती, कर्नाटक की रानी चन्नम्मा, झांसी की रानी लक्ष्मीबाई ने तो रणांगण पर युद्ध भी किया । इससे प्राचीन काल में महिलाएं स्वतंत्र नहीं थी, ऐसा कहना हास्यास्पद है । साथ ही अंग्रेजों ने यह दुष्प्रचार किया कि पुराणकाल में महिलाएं स्वतंत्र नहीं थी और उन्होंने भारतीय महिलाआें को अनावश्यक स्वतंत्रता देनेवाली पश्‍चिमी संस्कृति थोपकर भारतीय महिलाआें को स्वैराचारी बनाया ।