‘हिन्दू’ शब्द ‘सिन्धु’, शब्द का अपभ्रंश नहीं है : एक विश्लेषणात्मक विवेचन

टीका

‘हिन्दू शब्द ‘सिंधु’ शब्द का अपभ्रंश है, इस विषय में अनेक विद्वानों ने विवाद करने का प्रयास किया है ।

खंडण

भाषा शास्त्रकारों के मतानुसार ‘स’ का ‘ह’ होने से ‘सिन्धु’ शब्द का ‘हिन्दू’ ऐसा उच्चारण हुआ, यह तर्कसंगत नहीं है; क्योंकि अनेक संस्कृत ग्रंथों में ‘हिन्दू’ शब्द पाया जाता है । प्राचीन संस्कृत साहित्य में प्राकृत शब्दों का प्रयोग नहीं होता था । ‘हिन्दू’ शब्द संस्कृत नहीं, अपितु वह प्राकृत है, एेसा स्वा. सावरकर का भी मत है । हिन्दुओं के अनेक धर्मग्रंथों में ‘हिन्दू’ शब्द की व्याख्या पृथक-पृथक बताई गई है । ‘हीन गुणों को त्यागनेवाला वह हिन्दू’, ऐसी एक व्याख्या है ।

‘एनसाइक्लोपीडिया ऑफ रिलीजन’, पुस्तक में ‘हिन्दू’ शब्द के विषय में आगे दिए नुसार लेखन किया गया है । ‘इसाई वर्ष पूर्व ४८६ में डेरियस के एक शिलालेख में ‘हिन्दू’ नाम ‘हिन्दस’ के रूप में दिखाई देता है । ’ यहां ध्यान में लेने जैसी बात यह कि अंग्रेजी विद्वानों ने भी ‘हिन्दू’ शब्द का ‘हिन्दस’ नाम स्वीकार किया है । केवल पश्चिमी विद्वानों ने नहीं, अपितु चीनी यात्री युआन श्वांग ने भी उसके स्मृतिग्रंथ में ‘हिन्दू’ शब्द का उल्लेख किया है । दूसरे चीनी यात्री युवान्यांग ने ‘इस देश का ‘इन्दु’ नाम यथार्थ बताया । युआन श्वांग वर्ष ६३० में भारत आया था, तब यहां इस्लाम धर्म का कोई ठिकाना भी नहीं था । तथापि उसने उसकी यात्रा की कालावधि में इस देश को ‘इंदु’ नाम से संबोधित किया । ‘इन्दू’ शब्द ‘हिन्दू’ शब्द का अपभ्रंश है । अरब एवं इरान देश के लोग हमारे लिए ‘हिन्दू’ शब्द का उपयोग सम्मानपूर्वक करते थे । वहां के निवासियों से यह शब्द घृणित रूप से कभी उपयोग में नहीं लाया गया ।’ – ब्रह्मर्षि विश्वात्मा बावरा, ब्रह्मर्षि आश्रम, विराट नगर, पिंजौर, हरियाणा. (संदर्भ : दैनिक सनातन प्रभात, २.७.२००६)