कहते हैं, सनातन हिन्दू धर्म में पूर्णतः परिवर्तन होना चाहिए !

आलोचना

`सनातन हिन्दू धर्म में पूर्णतः परिवर्तन होना चाहिए’ – रॉयिस्ट त  तीर्थ लक्ष्मणशास्त्री जोशी (घनगर्जित, जनवरी २००९)

खंडण

‘पूरे विश्व में वंदनीय हिन्दू धर्म अनादि है । वेदों से लेकर अनेक साधु-संत, ऋषि-मुनि एवं तत्त्वज्ञ ऐसे अनेकों द्वारा लिखित वाङ्मय से हिन्दू धर्म का अद्वितीयत्व विशद किया गया है । आज तक हिन्दू धर्म के मूल्यों में परिवर्तन लाने की इच्छा रखनेवाले व्यक्ति के विचारों में चैतन्य न होने के कारण वे कुछ दिनों से अधिक कालावधि तक नहीं टिक सके ! वास्तव में ऐसे महान हिन्दू धर्म के मूल्यों में परिवर्तन लाने की इच्छा रखनेवालों का महत्त्वपूर्ण कारण है हिन्दुओं का धर्म के विषय में घोर अज्ञान !

और एक महत्त्वपूर्ण सूत्र यह है कि हिन्दू धर्म में शाश्वत तत्त्वज्ञान के सभी अंगों की जानकारी रहनेवाले एवं इस विषय में अनुभूति ग्रहण करनेवाले संत ही सच्चे धर्माधिकारी है । इसलिए उन्हें धर्मविषयक मूल्यों में, मूलभूत मानसिकता में नहीं, अपितु आचारधर्म में समय के अनुसार थोडा-सा परिवर्तन करना संभव होता है । भागवतकार व्यास में इतनी दीर्घदृष्टि थी कि भविष्य में क्या स्थिति रहेगी, लोगों का रहनसहन, उनकी मानसिकता आदि विषयों में विस्तृत वर्णन उन्होंने किया है । क्या जोशी के पास ऐसी दीर्घदृष्टि है ? यदि नहीं है, तो उनकी योग्यता न होते हुए भी वे ऐसे निरर्थक वक्तव्य क्यों देते हैं ?’ – प.पू. पांडे