देवता स्वयं की धोती स्वयं धारण नहीं कर सकते !

देवता को देखने और उनका कार्य जानने के लिए अंनिस के डॉ. नरेंद्र दाभोलकर साधना करें !

अंनिस के डॉ. दाभोलकर कहते हैं, देवता स्वयं की धोती स्वयं धारण नहीं कर सकते !

आलोचना : देवता स्वयं की धोती स्वयं धारण नहीं कर सकते – अंनिस के डॉ. नरेंद्र दाभोलकर (संदर्भ : दैनिक सनातन प्रभात ५.३.२०१२, पृष्ठ १)

खंडन

डॉ. दाभोलकर ने ईश्‍वर को न ही देखा है और न ही जाना है । इसलिए देवता की धोती धारण करने की क्षमता के विषय में उन्हें कुछ ज्ञात होना संभव नहीं है ।

देवता का शरीर नहीं होता अर्थात वे अशरीरी होते हैं । उन्हें वस्त्रों की आवश्यकता नहीं होती । जब वे किसी मानव के सामने प्रकट होते हैं, तब मानव को मर्यादापालन सिखाने के लिए वे वस्त्रों सहित दिखाई देते हैं ।

डॉ. दाभोलकर को कदाचित मूर्ति के विषय में बताना होगा, तो अब उसका विचार करते हैं ।

एक अंकगणित की पुस्तक है । उस पुस्तक को २ और २ = ४ ऐसा साधारण जोड करना भी नहीं आता, पुस्तक बोल नहीं पाती अथवा लिख भी नहीं पाती; परंतु ऐसी ही पुस्तकों से मनुष्य ज्ञान प्राप्त कर पहली कक्षा से पदव्युत्तर शिक्षा तक पहुंचकर गणितज्ञ बन सकता है । मूर्तियों का भी वैसा ही है, अपितु उससे अधिक महत्त्व है । मूर्ति की प्राणप्रतिष्ठा करने के पश्‍चात उसमें ईश्‍वरीय चैतन्य का अंश वास करने लगता है । अनेक लोगों ने अपनी भक्तिभाव से उस मूर्ति के माध्यम से चैतन्य प्राप्त किया है और स्वयं का उद्धार कर लिया है ।

विज्ञान प्रतिदिन नए-नए शोध करता है । इसलिए पूर्व कल्पनाएं अपूर्ण अयोग्य सिद्ध होती हैं । ईश्‍वरीय चैतन्य सूक्ष्मातिसूक्ष्म है । उसे विज्ञान के आधार पर अनुभव की कक्षा में लाना अभी संभव नहीं हुआ है, इसका अर्थ यह नहीं कि वह है ही नहीं । ऐसा कहना अयोग्य है । उदाहरणार्थ, सूक्ष्मदर्शक यंत्र का आविष्कार होने तक सूक्ष्म जीवाणुआें का अस्तित्व ज्ञात नहीं था । सूक्ष्म जीवाणुआें के कारण दूध से दही बनता है, यह भी ज्ञात नहीं था; परंतु पहले ज्ञात नहीं था, इसलिए सूक्ष्म जीवाणु नहीं थे, ऐसा नहीं है । विज्ञान कितनी भी उन्नति कर ले; परंतु वह सूक्ष्म जीवाणु साधारण आंखों से नहीं दिखा सकता । सूक्ष्म जीवाणु देखने के लिए जिस प्रकार सूक्ष्मदर्शक यंत्र नामक साधन की आवश्यकता होती है, उसी प्रकार सूक्ष्म से भी अतिसूक्ष्म ईश्‍वरीय चैतन्य का अनुभव करने तथा उसका साक्षात्कार करने के लिए कुछ साधन आवश्यक होते हैं । पूर्ण निर्दोष स्वभाव और आचरण, निरीच्छता, दृढ श्रद्धा, अचल भक्ति, संपूर्ण शरणागति, ईश्‍वरप्राप्ति की लगन आदि साधन संपत्ति के कारण प्रत्यक्ष पांडुरंग संत नामदेव को दिखाई देते थे, उनसे बोलते थे, ऐसी साधन-संपत्ति जब डॉ. दाभोलकर प्राप्त करेंगे, तब उन्हें भी ईश्‍वर स्वयं की धोती स्वयं धारण करते हुए दिखाई देंगे अर्थात ईश्‍वर का सूक्ष्म कार्य दिखाई देगा !