कुछ लोग कहते हैं, हिन्दू धर्म देवी-देवताओं की विचित्र कल्पना करनेवाला असभ्य धर्म है !

आलोचना

‘हिन्दू असभ्य एवं पिछडा धर्म है । इस धर्म में बैल, कछुआ, सांप, वृक्ष एवं पत्थरों की भी पूजा की जाती है ।’ – धर्मपरिवर्तन के लिए प्रलोभन देनेवाले ईसाई

खंडन

१. हिन्दू धर्म पिछडा अथवा असभ्य नहीं, अपितु सहस्रों वर्ष से विश्व में अग्रणी है, यह बात अब पाश्चात्य देश भी मान चुके हैं और हिन्दू धर्म का महत्त्व जान चुके हैं ।

१ अ.जब विश्व के अन्य महाद्वीपों में लोग असभ्य जीवन जी रहे थे, तब भारत में अत्यंत प्रगत एवं उच्च ज्ञान देनेवाले विश्वविद्यालयों का होना

‘प्राचीन समय में भारत में बडे-बडे विश्वविद्यालय होते थे । इनमें कुछ विश्वविद्यालय बारहवीं शताब्दी के अंत तक थे, जिनमें हजारों विद्यार्थी उच्च शिक्षा प्राप्त करते थे । आजकल हमें ‘ऑक्स्फोर्ड’ एवं ‘केंब्रिज’ आदि पश्चिमी विश्वविद्यालयों के नाम बहुत सुनाई देते हैं । वहां की शिक्षा का उच्च स्तर, उनका अनुशासन एवंं उनकी प्रदीर्घ ज्ञान-परंपरा के विषय में पढ कर हमें कुतूहल होता है; परंतु अपने ही देश में एक ऐसा समय था, जब इन पश्चिमी विश्वविद्यालयों से अधिक प्रगत, उच्च ज्ञान देनेवाले विश्वविद्यालय थे । जिस समय विश्व के अन्य महाद्वीपों में अन्य पंथों के लोग असभ्य एवंं पिछडा जीवन जीते थे, उस समय भरतवर्ष में तक्षशिला, नालंदा, विक्रमशिला, नागार्जुन, काशी, प्रतिष्ठान, उज्जयिनी, वल्लभी, कांची, अयोध्या आदि विश्वविद्यालय प्रसिद्ध थे । भारत में आनेवाले पश्चिमी यात्रियों ने भी इन विश्वविद्यालयों का महत्ता का वर्णन किया है ।

ऐसा होते हुए भी ‘हिन्दू धर्म असभ्य एवंं पिछडा है’, ऐसा कहना अत्यंत अनुचित है । आज भी पश्चिमी लोग भारत की उज्ज्वल संस्कृति का अनुकरण कर रहे हैं, आगे दिए उदाहरणों से यह स्पष्ट होता है ।

१ अ १. वर्तमान में ईसाई विश्वविद्यालय ‘जॉर्जटाऊन’ में हिन्दू धर्म की शिक्षा प्रदान करना : अमेरिका में प्रतिष्ठित ईसाई शिक्षा संस्था के जॉर्जटाऊन विश्वविद्यालय में वेदों की शिक्षा दी जाती है । इस विश्वविद्यालय में हिन्दू धर्म की परंपराएं, आज का हिन्दू धर्म, वेद, उपनिषद, साधु, गुरु, योगी, त्योहार-उत्सव, व्रत, पूजाविधि, भक्तिगीत, तीर्थस्थल इत्यादि विषयों की शिक्षा दी जाती है । नेवाडा से प्रसिद्ध एक ज्ञापन में अमेरिका के हिन्दू नेता श्री. राजन जेद ने कहा है कि जॉर्जटाऊन विश्वविद्यालय में हिन्दू धर्म के संबंध में अपनाया मार्ग उचित दिशा में उठाया गया कदम है ।

१ अ २. विदेश में हिन्दू धर्म एवंं हिन्दू संस्कृति के विषय में बढता आकर्षण ! : पश्चिमी कुप्रथाओं की प्रशंसा करनेवाली भारत की वर्तमान युवा पीढी विदेश मेंं लोकप्रिय सिद्ध हो रही हिन्दू संस्कृति को सुविधाजनक रूप से दुर्लक्षित कर रही है । विदेश में अनुभव की जानेवाली हिन्दू संस्कृति की वास्तविकता अत्यंत स्पष्ट है । इसके कुछ उदाहरण आगे दे रहे हैं ।

अ. अमेरिका के सिनेट का (संसद का) आरंभ वेदमंत्रों से किया जाता है ।

आ. अमेरिका के राष्ट्राध्यक्ष बराक ओबामा उनके साथ सदैव हनुमान की प्रतिमा रखते हैं ।

इ. ‘हॉलिवुड’ की प्रसिद्ध चलचित्र अभिनेत्री ज्युलिया रॉबर्ट्स हिन्दू संस्कृति की ओर आकर्षित होकर उसने हिन्दू धर्म स्वीकार किया है ।

ई. अनेक देशों में संस्कृत भाषा पर शोध चल रहा है एवं वैज्ञानिकोेंं ने बताया कि वह सब से सरल संगणकीय भाषा है ।

उ. विदेश में संस्कृत भाषा सीखनेवालों की मात्रा निरंतर बढ रही है ।

ऊ. विदेश के प्रार्थनास्थल (चर्च) रिक्त हो रहे हैं एवं उन्हें हिन्दू मंदिरों के नियंत्रण में दिया जा रहा है ।

ए. अनेक पश्चिमी लोग हिन्दू संस्कृति के अनुसार जीवन यापन करने का प्रयास कर रहे हैं ।

१ अ ३. अमेरिका की एक शिक्षासंस्था के पाठयक्रम में हिन्दू नेताओं द्वारा हिन्दू देवी-देवताओं की जानकारी अंतर्भूत करना : अमेरिका स्थित शिकागो में वर्ष १८७९ में स्थापित ‘आर्ट इन्स्टिट्यूट’ शिक्षासंस्था ने शिशुवर्ग से बारहवीं तक के पाठ्यक्रम में श्री गणेशजी, शंकर, पार्वती आदि हिन्दू देवी-देवताओं की विशेषताएं, उनकी मुद्राएं, नृत्य, वाहन, आयुध, सृष्टिकार्य का संचालन, मूर्तिशिल्प आदि जानकारी अंतर्भूत की है ।
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१ अ ४. वैदिक संस्कृति द्वारा प्रस्तुत आध्यात्मिक सिद्धांत देशकालातीत एवं वैश्विक होना ! : हिन्दुओं की उच्च वैदिक परंपराएं एवं संस्कृति ऐसी है कि उन्हें केवल आध्यात्मिक सत्य का अंतिम छोर कहना संभव होगा । आत्मा-परमात्मा के गूढ आध्यात्मिक ज्ञान के विषय में वैदिक संस्कृति एवं तत्त्वज्ञान में जैसी सत्यता एवं गहराई पाई जाती है, वैसी कहीं नहीं पाई जाती । वैदिक संस्कृति द्वारा प्रस्तुत आध्यात्मिक सिद्धांत देशकालातीत होने के कारण वास्तव में वैश्विक हैं !’ – स्टिफन नैप, अमेरिका (लेखक) (संदर्भ ग्रंथ : ‘क्राइम्स अगेन्स्ट इंडिया अ‍ॅन्ड द नीड टू प्रोटेक्ट इट्स एन्शियंट वेदिक ट्रेडिशन’)’ (संदर्भ : दैनिक सनातन प्रभात, संस्कृतिरक्षा विशेषांक, १३ मई २०१२)

इन सब बातों से यही स्पष्ट होता है कि हिन्दू धर्म असभ्य नहीं, अपितु वह हजारों वर्ष पूर्व भी अग्रसर था एवं आज भी पश्चिमी लोगों को उसका महत्व समझमें न आनेके कारण उसे पिछडा एवं असभ्य कहना अज्ञानमूलक है ।

१ आ. प्राचीन भारत की समृद्ध राज्यपद्धति !

उस समय भारत की प्राचीन राज्यपद्धति किसप्रकार समृद्ध थी, यह आगे दिए कुछ उदाहरणों से स्पष्ट होता है ।

१ आ १. संपूर्ण पृथ्वीतल पर राज्य करनेवाले पृथु राजा ने सुशिक्षित ब्राह्मणों को अविकसित मानवसमूह की ओर भेज कर उन्हें सुशिक्षित करना एवं पूरे समाज का ही कायापालट करना :  ‘भागवत में पृथु राजा के संदर्भ में जानकारी है । पृथु संपूर्ण समुद्रवलयांकित पृथ्वी का राजा बनता है । उसने भूमि का इतना उत्कर्ष किया कि उसके नाम से ही ‘पृथ्वी’ नाम पडा । उसने यज्ञ द्वारा सभी लोगों को जीवन की समझ दी । गांवों को पुनस्र्थापित कुछ छोटे एवं बडे गांव वैâसे होने चाहिए ?, ऋषिमान्य स्वतंत्र शिक्षाव्यवस्था वैâसी होनी चाहिए ?’, इस विषय में विस्तृत रूप से नियोजन किया था । अशिक्षित, असंस्कारी एवं अविकसित ऐसे मानवों के समूह की ओर सुशिक्षित ब्राह्मणों को भेज कर उन्हें सुशिक्षित किया । उसने पूरे समाज का ही कायापालट किया । उसने व्यक्ति परिवर्तन पर बल दिया । पृथू राजा के इस अलौकिक कार्य से ही आज कुछ पश्चिमी देश विकसित हुए समान प्रतीत होते हैं ।

आज की शिक्षा से व्यक्ति के जीवन में मूलभूत परिवर्तन नहीं होता । पृथू राजाने तत्कालीन परिस्थिति में ऋषियों के सान्निध्य में शिक्षा का समर्थन किया, जो आर्य चाणक्य एवं चंद्रगुप्त मौर्य के कार्यकाल तक चलता ही रहा । तब भी इस देश को असभ्य अथवा पिछडा कहना कितना हास्यजनक दिखाई देता है । (संदर्भ : व्यासविचार, भागवत, चतुर्थ स्कंध, पृष्ठ १२८-१३१)

१ इ. प्रत्येक जीव अन्य जीव के लिए उपकारक ही होना

हिन्दू धर्मशास्त्र के अनुसार चराचर में ईश्वर व्याप्त है । हिन्दुओं की इस धारणा से ही वे बैल, कछुआ, सांप, वृक्ष एवं पत्थरों की भी पूजा करते हैं । ये सभी चीजें मानव के लिए उपकारक हैं । किसी भीr स्वरूप में होने पर भी प्रत्येक जीव अन्य जीव के लिए उपकारक ही होता है । जैसे

‘जीवो जीवस्य जीवनम् ।’

अर्थात ‘प्रत्येक जीव अन्य जीव की सहायता से ही जीवनयापन करता है ।

१ इ १. कहां चराचर में स्थित ईश्वर के विषय में कृतज्ञता व्यक्त करने की सीख देनेवाला व्यापक हिन्दू धर्म एवं कहां उचित आचरण की सीख न देनेवाले एवं मानव के साथ प्राणियों की भी मनमानी हत्या करने को प्रवृत्त करनेवाले अन्य पंथ ! : भारतीय संस्कृति कृषिप्रधान एवं धार्मिक है । इसलिए दैनंदिन जीवन के लिए उपयोग में आनेवाले बैल, कछुआ तथा सांप आदि सजिवों के साथ वृक्ष एवं पत्थरों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने हेतु उनकी पूजा करते हैं । जीवन के लिए हिरे-मोती से भी पत्थर ही अधिक उपकारक हैं । ऐसा पाया गया है कि किसी भी धातू का विघटन करने पर अर्थात प्लॅटिनमसमान सब से महंगी धातू का भी विघटन करने पर अंत में, सूक्ष्म कण से धन एवं ऋण प्रभारित कण अर्थात न्यूट्रॉन एवं प्रोटॉन शेष रहते हैं एवं उस से अमोघ शक्ति प्रसारित होती है । इसका अर्थ यह कि प्रत्येक पदार्थ का अंत चैतन्य में ही होता है । इसलिए यद्यपि बैल, कछुआ, सांप तथा वृक्ष पृथक-पृथक स्वरूप में दिखाई देते हैं, परंतु वे सभी चैतन्य के आधार पर चलते रहते हैं । इसलिए ध्यान में लें कि इन सभी की पूजा उस चैतन्य की पूजा है ।

अन्य पंथों में सहजीवन के लिए पूरक निर्जिवों के विषय में तो दूर; परंतु सजीव मानव के प्रति भी कृतज्ञता नहीं व्यक्त की जाती । उसे स्वधर्म में लाने हेतु रक्तपात अथवा धोखाधडी आदि मार्गों को अपनाया जाता है । इस से ध्यान में आता है कि हिन्दू धर्म की अपेक्षा अन्य पंथ ही किस प्रकार असभ्य एवं पिछडे हैं ।

– प.पू. पांडे महाराज, सनातन आश्रम, देवद, पनवेल.