गोरक्षको, यह ध्यान में लें !
‘हमारी गोशाला में ३०० गाए हैं, इस प्रकार संतोष व्यक्त करने की अपेक्षा ‘मैं ३०० गोरक्षकों को सिद्ध करुंगा’, ऐसा विचार एवं उसप्रकार कृत्य करने पर सहस्रों गायों के प्राण बचेंगे।’
‘हमारी गोशाला में ३०० गाए हैं, इस प्रकार संतोष व्यक्त करने की अपेक्षा ‘मैं ३०० गोरक्षकों को सिद्ध करुंगा’, ऐसा विचार एवं उसप्रकार कृत्य करने पर सहस्रों गायों के प्राण बचेंगे।’
‘कहां पृथ्वी पर राज्य करने का ध्येय रखनेवाले अन्य धर्म, तो कहां ‘प्रत्येक को ईश्वरप्राप्ति हो’, यह ध्येय रखनेवाला हिन्दू धर्म !’
राष्ट्रप्रेमी हिन्दुओ, ‘हिन्दू राष्ट्र’ स्थापित करने के कार्य में हम श्रीराम की वानरसेना के वानरों समान सहभागी हैं’, ऐसा भाव रखें ! यदि ऐसा भाव रखा, तो रामराज्य अर्थात ‘हिन्दू राष्ट्र’ की स्थापना होते ही अपना भी उद्धार होगा, अन्यथा ‘हिन्दू राष्ट्र’ की स्थापना होने पर भी अहंभाव जागृत रहने से अपना उद्धार नहीं होगा … Read more
‘पश्चात्ताप से स्वयं प्रायश्चित्त लेना यह दंड की अपेक्षा अधिक परिणामकारक होता है । यह समझकर यदि कोई पश्चात्ताप से ‘घरवापसी’ (घर लौट जाना) का कृत्य कर रहा है, तो उसका विरोध क्यों ?’
भारत के पास हिन्दू धर्म एवं धर्मपरंपरा के अतिरिक्त अभिमान प्रतीत होने समान क्या है ? बुद्धिप्रामाण्यवादी, साम्यवादी तथा जात्यंध आदि लोगों द्वारा बुद्धिभ्रम करने से हिन्दू धर्म दुर्लक्षित किया गया । इसीलिए हिन्दुओं की स्थिति अत्यंत दयनीय हो गई है ।’
महाभारत युद्धके समय कौरव एवं पांडव सूर्योदय से सूर्यास्ततक के कालमें युद्ध करते थे । वे रात्रिकी बेलामें एक दूसरे के पडावमें जाकर निडर हो एक दूसरेसे संपर्क करते थे । ऐसा उदाहरण किसी अन्य देश एवं धर्ममें नहीं दिखाई देगा । इतना ही नहीं, अपितु कोई ऐसी कल्पना भी नहीं कर सकता ।
वेदकालमें जातिव्यवस्था नहीं थी । कुंभमेलेमें सभी लोग एक ही घाटपर स्नान करते थे तथा आज भी चलनेवाली यह परंपरा वेदकाल जितनी पुरानी है । – श्री. विजय सोनकर शास्त्री, भूतपूर्व अध्यक्ष, राष्ट्रीय पिछडी तथा दलित जनजाति विकास महामंडल (संदर्भ : हिंदूबोध, जून २००२)
भारतीयोंका प्राचीन वाङ्मय, अर्थात वेद, उपनिषद, ब्राह्मण ग्रंथ, पुराण; कालिदास तथा भवभूति, आदिके संस्कृत नाटक, काव्य, रामायण, महाभारतादि वाङ्मय एवं कला जाननेकी उत्कट इच्छा तथा लगन जर्मनीमें है; किंतु भारतके नेता, समाजकल्याणकर्ता तथा सुधारक किसीको भी संस्कृतका कुछ भी ज्ञान नहीं है । Sanskrit is dead language अर्थात संस्कृत मृत भाषा है, ऐसा कहकर, वे … Read more
‘इच्छाशक्तिके कारण ‘कुछ करना चाहिए’ ऐसी इच्छा उत्पन्न होती है । क्रियाशक्तिके कारण प्रत्यक्ष कृति करनेकी प्रेरणा मिलती है । कुछ करनेकी इच्छा उत्पन्न होने और प्रत्यक्ष कृति करनेके लिए ज्ञानशक्तिकी सहायता होनेपर ही योग्य इच्छा उत्पन्न होती है जिसके परिणामस्वरूप योग्य कृति होती है । अन्य पंथियोंको उनकी साधनाके कारण ज्ञानशक्ति सहायता करती है … Read more
अनादि कालसे चला आ रहा हिंदु धर्म ऋषि-मुनियोंने बताया, आगे उसे सहस्रों वर्षोंतक ब्राह्मणोंने बनाए रखा । अंग्रेजोंके भारतमें आनेपर उन्होंने ‘फूट डालो और राज करो’ की अपनी नीतिके अनुसार विविध जातियोंमें द्वेष उत्पन्न किया । केवल ब्राह्मणोंके कारण ही हिंदु धर्मका अस्तित्त्व बना हुआ था । इसलिए उनपर टूट पडनेके लिए उन्होंने अन्य जातियोंको … Read more