भगवान द्वारा परिपूर्ण हिन्दू धर्म में जन्म देने के कारण कृतज्ञता बढती गई ।

हिन्दू धर्म का जितना भी अभ्यास किया, उतनी मात्रा में भगवान द्वारा ऐसे परिपूर्ण हिन्दू धर्म में जन्म देने के कारण कृतज्ञता बढती गई ।

हिन्दू राष्ट्र की स्थापना

श्रीराम एवं श्रीकृष्ण ने सनातन धर्म राज्य स्थापित किया । वह अवतारी कार्य था । अब ‘हिन्दू राष्ट्र’ की (सनातन धर्म राज्य की) स्थापना होगी । वह कालमहिमा के अनुसार होगी । अत: किसी के लिए उसका श्रेय लेना असंभव होगा ।

संत सदैव आनंदी होते हैं !

अपने बच्चे का आगे क्या होगा ?, ऐसी चिंता उसके मां-बाप को होती है । इसके विपरीत राष्ट्र के सभी अपने बच्चे ही हैं, ऐसे व्यापक भाव के कारण संत सदैव आनंदी होते हैं ।

गुरु-शिष्य संबंध !

विश्व में केवल एक ही ऐसा संबंध है, जिसमें कलह नहीं होता, वह है गुरु-शिष्य संबंध !

कहां बालवाडी समान रहनेवाला एवं संशोधन करनेवाला पाश्‍चात्त्यों का विज्ञान, तो कहां लाखों वर्ष पूर्व का परिपूर्णता प्राप्त हिन्दू धर्म का विज्ञान !

यहां दिए गए खगोलशास्त्र के एक उदाहरण से यह सूत्र ध्यान में आएगा । आकाश के ग्रहों के विषय में विज्ञान जो शोध करता है, वह केवल भौतिक दृष्टि से है । इसके विपरीत हिन्दू धर्म विज्ञान ग्रहों की भौतिक जानकारी के साथ ग्रहों का परिणाम क्या होता है ? कब होता है ? तथा … Read more

स्वेच्छा, परेच्छा एवं ईश्‍वरेच्छा !

अपनी इच्छा से जो करता है, वह उचित अथवा अनुचित हमें समझ में नहीं आता । इसलिए स्वेच्छा नहीं, अपितु साधना में आगे बढे लोगों के मार्गदर्शनानुसार अर्थात परेच्छा से सब कुछ करना चाहिए । इसमें से आगे ‘ईश्‍वरेच्छा क्या है, यह समझ में आता है एवं प्रत्येक कदम ईश्‍वरप्राप्ति की ओर आगे बढता है … Read more

मोक्षप्राप्ति की चाह होना एवं धर्मकार्य करने हेतु पुनर्जन्म मिलने की इच्छा होना !

साधना करनेवाले लोग ऐसी इच्छा रखते हैं कि, अगला जन्म नहीं होना चाहिए जबकि राष्ट्र एवं धर्मप्रेमी पुनर्जन्मप्राप्ति की कामना करते हैं । यदि इसे स्वेच्छा कहें, तो अगला जन्म न हो ऐसी कामना भी स्वेच्छा ही सिद्ध होती है !

‘उपयोग करें एवं फेंक दें’ इस तत्त्व को बूढे मां-बाप के संदर्भ में प्रयुक्त करनेवाली युवा पीढी !

उपयोग करें एवं फेंक दें (use and throw) पाश्‍चात्त्यों की ऐसी जो आधुनिक संस्कृति है, उसे अब अनेक युवकों ने भी आत्मसात कर लिया है । इसलिए जिन मां-बाप ने जन्म दिया, जन्म से लेकर स्वावलंबी होने तक सभी प्रकार से चिंता की, उदा. बीमारी में सभी सेवा की, शिक्षा दी, उनके विषय में कृतज्ञ … Read more