अपनी इच्छा से जो करता है, वह उचित अथवा अनुचित हमें समझ में नहीं आता । इसलिए स्वेच्छा नहीं, अपितु साधना में आगे बढे लोगों के मार्गदर्शनानुसार अर्थात परेच्छा से सब कुछ करना चाहिए । इसमें से आगे ‘ईश्वरेच्छा क्या है, यह समझ में आता है एवं प्रत्येक कदम ईश्वरप्राप्ति की ओर आगे बढता है ।