हिन्दु राष्ट्र की स्थापना हेतु साधना करने का महत्त्व !


१. हिन्दू राष्ट्र की स्थापना करने हेतु आज के अधिकतर धर्मनिरपेक्ष नेता अयोग्य क्यों हैं ?

अ. धर्मनिरपेक्ष नेता स्वयं धर्म को नहीं मानते । इसलिए वे हिन्दू राष्ट्र की विचारधारा को भी नहीं मानेंगे । उनकी दृष्टि में धर्म से अधिक महत्त्वपूर्ण है, अल्पसंख्यक आधारित राजनीति । ऐसे विचारों के लोग हिन्दू राष्ट्र के लिए अपात्र हैं; क्योंकि हिन्दू राष्ट्र की विचारधारा सनातन धर्म पर आधारित है ।

आ. हिन्दू राष्ट्र की स्थापना, अर्थात राष्ट्ररचना, एक शास्त्रीय क्रिया है, जिसमें केवल सत्य के लिए स्थान है । आजकल के अधिकतर नेता असत्य के रूप हैं । इनमें भ्रष्टाचार, स्वार्थ, अनैतिकता, स्वेच्छाचार जैसे दुर्गुण कूट-कूट कर भरे हैं । इसलिए ऐसे नेताआें से राष्ट्ररचना होना सर्वथा असम्भव है ।

इ. नेताआें को असीम सत्ता चाहिए । वृद्ध होने पर भी पद और तिष्ठा की उनकी लालसा समाप्त नहीं होती । इसके विपरीत, राष्ट्ररचना के लिए निःस्वार्थता, सिद्धि की कामना न रहना, त्याग जैसे गुणों की आवश्यकता होती है । ये गुण ईश्‍वर की भक्ति तथा निस्वार्थभाव से राष्ट्र और धर्म का कार्य करनेवाले धर्माचरणी हिन्दुआें में ही होते हैं ।

ई. सत्य के पक्ष में रहनेवाले धर्माचरणी राजनीतिज्ञ भी हिन्दू राष्ट्र की स्थापना में सम्मिलित होंगे । (२३.४.२०१२)

२. धर्माचरणी हिन्दू ही हिन्दू राष्ट्र स्थापित कर सकते हैं !

राष्ट्ररचना करने के इच्छुक नेता और उनके अनुयायियों में नैतिक (आध्यात्मिक) प्रेरणा होना आवश्यक है । धर्माचरणी हिन्दुआें में ही खरी नैतिक प्रेरणा जागृत होती है । इसलिए वे हिन्दू राष्ट्र की स्थापना में प्रत्यक्ष भाग ले सकेंगे । (२४.५.२०१२)

अ. हिन्दुत्वनिष्ठ कार्यकर्ताआें की वर्तमान स्थिति

धर्मरक्षा हेतु संगठित लोग हिन्दुत्वनिष्ठ विचारधारा के हों, तब भी त्येक की वृत्ति एवं सोच भिन्न होती है । हिन्दुत्वनिष्ठ कार्यकर्ताआें में कुछ तो व्यसनी होते हैं और कुछ वाममार्गी । संक्षेप में, जिस प्रकार का आचरण अनेक राजनीतिक दलों के कार्यकर्ता करते हैं, उसी प्रकार का आचरण हिन्दुत्वनिष्ठ संगठनों के कार्यकर्ता करते दिखाई देते हैं । हिन्दुत्वनिष्ठ कार्यकर्ताआें की वर्तमान स्थिति के विषय में विचार करें, तो निम्नांकित बातें ध्यान में आती हैं ।

अ १. धर्म का अध्ययन न होना : यद्यपि सभी लोग हिन्दू धर्म और हिन्दूराष्ट्र के लिए ही कार्य करते हैं, तथापि सनातन धर्म का अध्ययन न होनेके कारण अनेक लोगों को यह पता ही नहीं रहता कि हिन्दू धर्म में ज्ञान का कितना भव्य अक्षय भण्डार है तथा अन्य धर्मों में इसका लाखवां अंश भी नहीं है ।

अ २. साधना न करना : अनेक लोग साधना नहीं करते । इसलिए उन्हें पता नहीं होता कि हिन्दू धर्म व्यक्ति को सर्वोच्च स्तर की अनुभूति दान करता है तथा अन्त में अद्वैततक पहुंचाता है ।

अ ३. हिन्दू धर्म के ति कृतज्ञता न लगना : व्यवहार में यदि कोई हमारी सहायता करता है, तो हमें उसके प्रति कृतज्ञता लगती है । हिन्दू धर्म जन्म- मृत्यु के चक्र से सदा के लिए मुक्ति दिलाता है; परन्तु यह ज्ञात न होने के कारण हिन्दू धर्म में जन्म होने पर भी अनेक लोगों को उसके प्रति कृतज्ञता नहीं लगती ।

अ ४. खरे धर्माभिमान के अभाववश धर्मद्रोही कार्य होना : कुछ लोग केवल मानसिक स्तर पर धर्म के प्रति अभिमान रखते हैं, इसलिए कभी-कभी वे धर्मद्रो ही कार्य भी कर जाते हैं । उदाहरण के लिए, श्रीलंका में तमिल हिन्दुआें पर अत्याचार हुआ । उस समय बंगाल की मुख्यमन्त्री ममता बनर्जी ने केन्द्र के तत्कालीन कांग्रेस शासन की तटस्थ भूमिका का समर्थन किया । उनका विरोध करने के लिए तमिल हिन्दुआें ने बंगाली मूल के महर्षि अरविंद के पुदुचेरी स्थित आश्रम पर आक्रमण किया । सन्त जाति, प्रान्त, भाषा एवं अस्मिता से परे होते हैं । महर्षि अरविन्द ने देश-विदेश में हिन्दू धर्म का सार किया था । उनके प्रति अखिल हिन्दू समाज को कृतज्ञ रहना चाहिए । तमिल वंश के हिन्दुआें की रक्षा हेतु यास करना धर्मकार्य था, परन्तु सन्त के आश्रम पर आक्रमण करना धर्मद्रोह था । साधना करने पर ही सन्तों का महत्त्व ज्ञात होता है ।

अ ५. प्रतिष्ठा के लोभ में धर्मरक्षा के कार्य करना : कुछ लोग पद-प्रतिष्ठा पाने के लिए अथवा राजनीतिक स्वार्थ साधने के लिए धर्मरक्षा का कार्य करते हैं । वास्तव में धर्म को, अर्थात ईश्‍वर को धर्म की रक्षा के लिए किसी की आवश्यकता नहीं होती । धर्मग्लानि होने पर ईश्‍वर स्वयं अवतार लेते हैं अथवा किसी के माध्यम से वह कार्य करते हैं । इसमें अपनी साधना के रूप में हमें सम्मिलित होना चाहिए ।

आ. मानसिक स्तर का धर्माभिमान दर्शानेवाले हिन्दुत्वनिष्ठ, हिन्दू राष्ट्र की स्थापना के लिए अपात्र !

हिन्दुत्वनिष्ठों की वर्तमान स्थिति के विषय में बताने का कारण यह है कि मानसिक स्तर का धर्माभिमान दर्शानेवाले, मानसिक स्तर के हिन्दुत्वनिष्ठ होते हैं । इसीलिए इनके राष्ट्र एवं धर्म सम्बन्धी कार्य में निरंतरता नहीं रहती । राष्ट्र एवं धर्म की हानि के विषय में मन का रोष घटते ही उनका यह तात्कालिक कार्य समाप्त हो जाता है । ऐसे लोगों के बल पर हम भीड तो इकट्ठा कर सकते हैं, पर इससे हिन्दू राष्ट्र की स्थापना नहीं होगी ।

इ. हिन्दुओ, धर्माचरण और साधना कर हिन्दू राष्ट्र की स्थापना के योग्य बनें !

धर्माचरण और साधना करने से हिन्दू धर्म की श्रेष्ठता की अनुभूति होती है । उस समय खरा धर्माभिमान उत्पन्न होता है । तब समाज, राष्ट्र एवं धर्म का वास्तविक हित साधने के लिए प्रयत्न होते हैं । धर्माचरण और साधना करने से व्यक्ति धर्मनिष्ठ बनता है । धर्मनिष्ठ व्यक्ति धर्म का अनादर नहीं करता और दूसरों को ऐसा करने से रोकता है अथवा विरोध करता है । ऐसा व्यक्ति ही, धर्मरक्षा का कार्य कर सकता है । इससे ध्यान में आता है कि हिन्दू राष्ट्र की स्थापना का कार्य धर्माचरणी और साधना करनेवाले हिन्दू ही कर सकते हैं । (३.५.२०१४)

३. साधना क्या है ?

हिन्दू धर्म के अनुसार मनुष्यजन्म ईश्‍वराप्ति से ही सफल होता है । ईश्‍वर की प्राप्तिके लिए प्रतिदिन किए जानेवाले प्रयासों को साधना कहते हैं । कुछ लोग व्यक्तिगत साधना के रूप में पूजा-अर्चना, नामजप, ध्यान- धारणा, योगासन, होम-हवन, तीर्थयात्रा इत्यादि करते हैं । जिन्हें गुरु प्राप्ति हो चुकी है, ऐसे कुछ लोग अपने सद्गुरु के मार्गदर्शन में समष्टि साधना के रूप में सनातन धर्म का चार-सार, समाजसहायता, राष्ट्रजागृति तथा धर्मरक्षा का कार्य करते हैं ! कुछ लोग भारतमाता को देवी मानकर उसका कार्य करने के लिए समर्पित रहते हैं, अर्थात कर्मयोगानुसार साधना करते हैं । (३.५.२०१४)

४. हिन्दू राष्ट्र की स्थापना का कार्य करते समय कौन-सी साधना करनी चाहिए ?

४ अ. हिन्दू राष्ट्र की स्थापना के लिए प्रतिदिन प्रार्थना करना

हिन्दुओ, मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम, छत्रपति शिवाजी महाराज के समान जनता को आदर्श राज्य देनेवाले नेताआें का हिन्दू राष्ट्र स्थापित हो, इसके लिए अपने उपास्य देवतासे तिदिन प्रर्थना करें ! (२५.५.२०१३)

४ अ १. हिन्दू राष्ट्र स्थापना के उपक्रम सफल होने के लिए प्रतिदिन प्रर्थना करना : हिन्दू राष्ट्र की स्थापना के लिए किसी अन्य संगठन का उपक्रम अथवा आंदोलन हो रहा हो, तो उसकी सफलता के लिए उपास्यदेवता से प्रर्थना करें ।

४ अ २. हिन्दू राष्ट्र-सम्बन्धी भाषण का आरम्भ और समापन देवता की प्रार्थना से करना : सनातन संस्था और हिन्दू जनजागृति समिति के वक्ता सदैव भगवान श्रीकृष्ण को वंदन कर, हिन्दू राष्ट्र-सम्बन्धी भाषण आरम्भ करते हैं तथा भाषण के अन्त में भी प्रार्थना करते हैं । ऐसा करने से देवता के आशीर्वाद मिलते हैं । (२३.४.२०१२)

४ आ. संकटकाल में तथा हिन्दू राष्ट्र की स्थापना के लिए अपने उपास्य देवता का अथवा भगवान श्रीकृष्ण का नामजप निरन्तर करें !

धर्मरक्षा का कार्य करते समय अनेक बार हिन्दुत्वनिष्ठों को कठिन परिस्थितियों का सामना करना पडता है । ऐसे समय हमारी स्थिति चक्रव्यूह में फंसे अभिमन्यु समान होती है । उस संकटकाल में हमें ईश्‍वर से सहायता मिले, इसके लिए हमें प्रतिदिन अपने उपास्यदेवता की अथवा धर्मसंस्थापक भगवान श्रीकृष्ण की उपासना करनी चाहिए । उपास्यदेवता से तात्पर्य है वे देवता, जिनकी हम वर्षों से उपासना करते आ रहे हैं और जिनकी हमें अनुभूति होती रहती है । यदि आप किसी देवता की उपासना न करते हों, तो धर्मसंस्थापना के देवता भगवान श्रीकृष्ण की उपासना करें । इनकी उपासना काल के अनुरूप आवश्यक है ।

वर्ष २०२३ तक अर्थात हिन्दू राष्ट्र स्थापित होनेतक हिन्दुत्वनिष्ठ अपने उपास्यदेवता का नामजप अथवा भगवान श्रीकृष्णका जप, ॐ नमो भगवते वासुदेवाय निरन्तर करते रहें । हिन्दू राष्ट्र की स्थापना होने के पश्‍चात हिन्दुत्वनिष्ठों को रामराज्य के अधिपति भु श्रीराम की उपासना करनी है । केवल श्रीराम के आशीर्वाद से हिन्दू राष्ट्र रामराज्य समान हो पाएगा । (१.४.२०१३)

४ इ. हिन्दू राष्ट्र की स्थापना का कार्य करनेवालों के लिए नामजप महत्त्वपूर्ण !

१. नामजप से दैवी शक्तियों की सहायता मिलती है । अर्जुन उत्तम धनुर्धर होने के साथ-साथ श्रीकृष्ण के भक्त भी थे । बाण छोडते समय वे सदैव श्रीकृष्ण का नामजप करते थे । इसलिए उनका बाण अपनेआप लक्ष्यवेधी होता था । श्रीकृष्ण के नामजप से अर्जुन के मन में उत्पन्न लक्ष्यवेध का संकल्प पूरा होता था ।

२. नामजप के साथ किया गया प्रत्येक कर्म अकर्म होता है; इसलिए उस कर्म का पाप-पुण्य नहीं लगता । अतः हिन्दू राष्ट्र की स्थापना का कार्य करते समय नामजप करना कितना आवश्यक है, यह ध्यान में आता है । (३.५.२०१४)

५. हिन्दू राष्ट्र की स्थापना हेतु साधना की आवश्यकता

५ अ. धर्मसंस्थापना का कार्य सफल होने के लिए शारीरिक और मानसिक बल के साथ साधना का बल भी आवश्यक !

साधना के बल और समर्थ रामदासस्वामीजी के मार्गदर्शन से ही छत्रपति शिवाजी महाराज हिन्दवी स्वराज्य स्थापित करने में सफल रहे । स्वाधीनता के पहले अधिकतर क्रान्तिकारियों में प्रखर राष्ट्राभिमान था; परन्तु साधना का बल न होने के कारण उनकी क्रान्ति सफल नहीं हो पाई और उन्हें अकारण अपने प्राण गंवाने पडे ।

राष्ट्रगुरु समर्थ रामदासस्वामी ने दासबोध ग्रन्थ में लिखा है –

प्रत्येक व्यक्ति में अति महत्त्वपूर्ण आन्दोलन करने का सामर्थ्य रहता है; कुछ लोग उस दिशा में प्रयत्न भी करते हैं; परन्तु वह प्रयत्न सफल होने के लिए भगवान का अधिष्ठान अत्यंत आवश्यक है । – दासबोध, दशक २०, समास ४, पद्य २६

५ अ १. ईश्‍वर भक्त की सहायता करते हैं; इसलिए हिन्दू राष्ट्र की स्थापना के लिए साधना करें !

जब दुष्ट भक्तों को बहुत कष्ट देते हैं, तभी ईश्‍वर अवतार लेते हैं । अतः हम यदि साधना कर ईश्‍वर के भक्त बनेंगे, तो ही हमें हिन्दू राष्ट्र की स्थापना के लिए ईश्‍वर से सहायता मिलेगी ।

५ अ २. यह न समझें कि साधना किए बिना ही हिन्दू राष्ट्र आएगा !

जब पराक्रमी पाण्डवों को भी कौरवों के विरुद्ध युद्ध जीतने के लिए भगवान श्रीकृष्ण की सहायता लेनी पडी, तो बिना श्रीकृष्ण तथा बिना साधना के हम हिन्दू राष्ट्र की स्थापना करेंगे, ऐसा कहना हास्यास्पद ही होगा ।

५ अ ३. आतंकवादी धर्माचरणी होने के कारण उन्हें अल्लाह का आशीर्वाद मिलता है !

पांच बार नमाज पढनेवाले, गर्व के साथ इस्लामी वेशभूषा करनेवाले तथा धर्म की आज्ञा मानकर जिहाद करनेवाले आतंकवादी इस्लाम के
अनुसार कठोर आचरण करते हैं । इसलिए उन्हें अल्लाह आशीर्वाद देते हैं । हमारे इतिहास के अनुसार भी देवता साधना करनेवाले को उसकी साधना के फल के रूप में आशीर्वाद देते हैं । इसलिए रावण, हिरण्यकश्यप, भस्मासुर आदि राक्षसों ने भी कठोर तप कर, भगवान से वरदान प्राप्त किए थे ।

इनकी तुलना में हम हिन्दुत्वनिष्ठ भले ही धर्मप्रेमी हों, परंतु धर्माचरण नहीं करते । इसलिए हमें ईश्‍वर का आशीर्वाद नहीं मिलता । जैसे किसी युवती से हम कितना भी प्रम करते हों, उसकी अपेक्षा के अनुसार आचरण करने पर ही हम उसे पा सकते हैं । राष्ट्र और धर्म रक्षा का कार्य केवल शारीरिक, मानसिक और बौद्धिक स्तर पर नहीं हो सकता । इसके लिए धर्मशक्ति का बल अर्थात ईश्‍वर का आशीर्वाद आवश्यक होता है । यह केवल साधना करने से प्राप्त होता है ।

५ अ ४. पाण्डवों की भांति हम भी श्रीकृष्ण के आशीर्वाद से जीतेंगे !

आज भ्रष्टाचारी, आतंकवादी और हिन्दू द्वेषियों की तुलना में धर्मेमियों की संख्या भले ही अत्यल्प हो, परन्तु कौरवों की तुलना में अनेक गुना अल्प होने पर भी जीत जिस कार पाण्डवों की हुई थी । उसी प्रकार, हम भी श्रीकृष्ण के आशीर्वाद से हिन्दू राष्ट्र की स्थापना करने में निश्‍चित सफल होंगे, यह सुनिश्‍चित जानिए !

५ आ. रज-तम प्रधान आतंकवादियों, राष्ट्रद्रोहियों तथा धर्मद्रोहियों को परास्त करने के लिए

हिन्दुत्वनिष्ठों को रज-तम गुणों से नहीं, अपितु साधना कर रज-सत्त्व अथवा सत्त्व-रज गुणों से युक्त होना आवश्यक !

एक हिन्दुत्वनिष्ठ की शंका थी कि आतंकवादियों से लडने के लिए हमें भी रज- तमधान गुणों से युक्त होना पडेगा । यदि हम साधना से सात्त्विक हो गए, तो हिन्दूद्वेषियों का प्रतिकार कैसे कर पाएंगे ? युद्धशास्त्र के अनुसार जिनके पास शत्रु की तुलना में गुण, पराक्रम तथा
शस्त्रसंग्रह अधिक होता है, वे विजयी होते हैं । रज-तम प्रधान हिन्दूद्वेषियों से संघर्ष में जीतने के लिए रज-तम गुण काम नहीं आएंगे । रज-तम गुणों पर विजय पाने के लिए उनसे श्रेष्ठ रज-सत्त्व अथवा सत्त्व-रज गुण की आवश्यकता होती है । हिन्दुत्वनिष्ठों में ये गुण साधना से ही बढेंगे । साधना करने से ही व्यक्ति सात्त्विक बनता है । अतः हिन्दूद्वेषियों पर विजय पाने के लिए हिन्दुत्वनिष्ठों का साधना करना ही क्यों आवश्यक है, यह इससे ध्यान में आएगा । (३.५.२०१४)

५ इ. साधना से उत्पन्न होनेवाले चैतन्य का महत्त्व

१. वाणी में चैतन्य आने से वाणी का अच्छा प्रभाव पडता है ।

२. चैतन्य से शारीरिक क्षमता भी बढती है । (३.५.२०१४)

५ ई. हिन्दू राष्ट्र की स्थापना के कार्य में आनेवाली अनिष्ट शक्तियों की सूक्ष्म स्तरीय बाधाएं दूर करने के लिए साधना ही आवश्यक !

हिन्दू राष्ट्र की स्थापना, ईश्‍वरीय कार्य है । इसलिए अदृश्य अनिष्ट शक्तियां इस कार्य का विरोध करती हैं । परिणाम स्वरूप सिर भारी लगना, बुद्धि को कुछ न सूझना, कार्य में बाधाएं आना, निराशा आना जैसे कष्ट हो सकते हैं । ये कष्ट न्यून हों तथा कार्य करना सरल हो, इसके लिए साधना करना एकमात्र उपाय है । (२३.४.२०१२)

५ उ. हिन्दू-संगठन में बाधक अहंकार दूर करने के लिए साधना उपयोगी !

हिन्दुत्वनिष्ठों का अहंकार उनकी एकता में प्रमुख बाधा होता है । साधना करने से अहंकार घटता है, विनम्रता बढती है तथा दूसरों के साथ मिलकर काम करना सरल होता है । संक्षेप में साधना से ईश्‍वरीय गुण बढते हैं । हिन्दू जनजागृति समिति के कार्यकर्ता और सनातन संस्था के साधक प्रतिदिन साधना करते हैं । इसलिए वे सरलता से दूसरों के साथ मिलजुल कर कार्य करते हैं ।

५ ऊ. साधना करने पर प्रतिकूल परिस्थिति में भी आनन्द में रह पाना !

साधना करने से आत्मबल जागृत होता है तथा व्यक्ति तनावरहित आनन्दमय जीवन जी पाता है । साधना करने से ईश्‍वर हमारी सहायता करते हैं, इसलिए प्रतिकूल परिस्थिति में भी निराशा नहीं आती । साधना करने से कर्मफल की अपेक्षा किए बिना कार्य कर सकते हैं तथा प्रत्येक कर्म से दुख नहीं; आनन्द मिलता है । फल की अपेक्षा किए बिना कर्म करने से वह निष्काम कर्मयोग बनता है, जिससे आध्यात्मिक उन्नति भी होती है ।

५ ऊ १. पुलिस द्वारा झूठे अपराध प्रविष्ट करने से कारावास का दंड भुगतनेवाले सनातन के साधकों का उदाहरण

मडगांव विस्फोट प्रकरण में सनातन के कुछ साधकों को पुलिसने झूठे आरोपों में बन्दी बनाकर कारागार में डाल दिया था । इस ४ वर्ष के कारावास में भी वे साधक स्थिर और प्रसन्न थे । पुलिस अधिकारियों को भी इस बात का आश्‍चर्य हुआ । साधना करने से सनातन के साधकों के मन पर ईश्‍वर की इच्छा यह शब्द अंकित हो जाता है । इसलिए वे प्रत्येक घटना को ईश्‍वर की इच्छा मानते हैं । इस विचार के कारण ही वे इस घटना को साक्षीभाव से (तटस्थता से) देख सके; दुःखी अथवा निराश नहीं हुए । कारागार में भी उन्होंने त्यौहार, उत्सव इत्यादि मनाकर, हिन्दू धर्म का चार- सार किया तथा धर्मपरिवर्तन रोकने जैसे कार्य उत्साह से किए ।

५ ऊ २. पुलिस के दबावतंत्र को सनातन के साधकोंने निडरता से विफल किया

वर्ष २००८ से पुलिस अकारण ही सनातन के अनेक साधकों से निरन्तर पूछताछ कर रही है । अनेक स्थानों पर पुलिस ने साधकों को विविध प्रकार की धमकियां भी दी हैं । पुलिस ने उन्हें अनेक घंटे थाने में बिठाकर, उनपर मानसिक दबाव डालने का भी प्रयास किया । कुछ स्थानों पर तो एक-दो साधक ही होते थे । उन्हें सांत्वना देनेवाला अन्य कोई नहीं होता था । इतनी प्रतिकूल परिस्थिति में भी साधक नहीं डगमगाए अथवा पुलिस की यातना से घबराकर उन्होंने धर्मसार करना नहीं छोडा । नियमित साधना के बल पर तथा नामजप एवं प्रर्थना के आधार पर वे कठिन परिस्थितियों का सामना कर पाए ।

५ ए. ईश्‍वराप्ति के लिए साधना कर, मनुष्य जन्म सार्थक करें !

ईश्‍वर को प्रप्त करना, अर्थात मोक्ष प्रप्त करना मनुष्य जन्म का ध्येय है । इसलिए सभी को साधना कर, यह ध्येय साध्य करना चाहिए । आदि शंकराचार्यजी कहते हैं,

लब्ध्वा कथञ्चित् नरजन्म दुर्लभं ।
तत्रापि पुंस्त्वं श्रुतिपारदर्शनम् ॥
यस्त्वात्ममुक्तौ न यतेत मूढधीः ।
स ह्यात्महा स्वं विनिहन्त्यसद्ग्रहात् ॥ – विवेकचूडामणि, श्‍लोक ४३२

भावार्थ : जो अत्यन्त दुर्लभ मनुष्यजन्म प्राप्त कर, साधना करने की क्षमता (पौरुषत्व) तथा आवश्यक बुद्धि (श्रुतिपारदर्शिता) होने पर भी, मोक्ष पाने के लिए यत्न नहीं करता, वह स्वयं का घात करनेवाला मूर्ख है । ऐसा मनुष्य अज्ञानता के कारण स्वयं अपना नाश आमन्त्रित करता है । हम सबको दुर्लभ मनुष्यजन्म मिला है; इसलिए इसे सार्थक करने के लिए साधना करें !

सनातन संस्था और हिन्दू जनजागृति समिति के कार्यकर्ता साधना करते हैं; इसलिए उन्होंने अपने व्यष्टि-जीवन का उद्देश्य मोक्षाप्ति तथा समष्टि-जीवन का ध्येय हिन्दू राष्ट्र की स्थापना रखा है । धर्मेमी स्वयं साधना करें ! साधना करने से ही हमें राष्ट्र और धर्म का कार्य करने के लिए ईश्‍वर से आशीर्वाद मिलेगा तथा यह कार्य अधिक भावकारी होगा ! राष्ट्रेमी और धर्मप्रेमी लोगों के शरीर में क्षात्रतेज जन्मजात होता है । यह क्षात्रतेज तथा साधना से प्राप्त ब्राह्मतेज एकत्र होने पर, हिन्दू राष्ट्र की स्थापना करना सरल होगा !

६. हिन्दुत्वनिष्ठ संगठन अपने कार्यकर्ताओं से भी साधना करवाएं !

हिन्दू राष्ट्र की स्थापना हो । ऐसी अनेक हिन्दुत्वनिष्ठों की इच्छा होती है । इनमें से कितने हिन्दुत्वनिष्ठों को यह दृढ विश्‍वास है कि हिन्दू राष्ट्र अवश्य स्थापित होगा । इसके विपरीत, सनातन संस्था तथा हिन्दू जनजागृति समिति के साधकों एवं कार्यकर्ताआें को आरम्भ से ही दृढ विश्‍वास है कि हिन्दू राष्ट्र अवश्य स्थापित होगा । इस विश्‍वास का कारण है, उनकी ईश्‍वर तथा गुरु पर दृढ श्रद्धा ! इसलिए वे गत कुछ वर्षों से हिन्दू राष्ट्र की स्थापना के लिए पूरे आत्मविश्‍वास से निरन्तर योजनाबद्ध प्रयास कर रहे हैं । इसमें विशेष बात यह है कि वे कभी तनाव में नहीं रहते, दिन-प्रति-दिन उन्हें इस कार्य में अधिक आनन्द मिल रहा है । यह आनन्द, साधना से उनमें उत्पन्न होनेवाले ब्राह्मतेज का प्रतीक है । आप अपने संगठन के कार्यकर्ताओं को भी साधना करने के लिए प्रवृत्त करें । इसके लिए आप निम्नांकित प्रकारसे प्रयत्न कर सकते हैं –

अ. संगठन के कार्यकर्ताओं को नामजप करने के लिए कहें !

आ. संगठन की बैठकों में जिस प्रकार उपक्रमों का ब्योरा या विवरण लिया जाता है, उसी प्रकार थोडा समय देकर प्रत्येक कार्यकर्ता ने पूरे सप्ताह साधना के रूप में क्या प्रयास किए, इसकी जानकारी लें !

इ. हिन्दू-संगठन के लिए हानिकारक दोषों के परिणाम से कार्यकर्ताओं को अवगत कराएं तथा उन दोषों को दूर करने में उनकी सहायता करें !
साधना करनेवाला व्यक्ति धीरे-धीरे नीतिमान एवं चरित्रवान बनता है । साधना के परिणामस्वरूप कार्यकर्ताआें में व्यसनाधीनता, उद्दण्डता जैसे दोष तथा अहंकार यदि होंगे भी, तो धीरे-धीरे घटते जाएंगे । साधना से उनकी व्यक्तिगत आध्यात्मिक उन्नति भी होगी । कार्यकर्ता यदि साधना करेंगे, तो वे अनुभव कर पाएंगे कि, संगठनका कार्य अधिक गुणात्मक हो रहा है और कार्यकर्ताआें की वृत्ति में भी परिवर्तन आ रहा है ।

संदर्भ : सनातन का ग्रंथ, ‘हिन्दू राष्ट्रकी स्थापनाकी दिशा

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