गोरक्षको, यह ध्यान में लें !
‘हमारी गोशाला में ३०० गाए हैं, इस प्रकार संतोष व्यक्त करने की अपेक्षा ‘मैं ३०० गोरक्षकों को सिद्ध करुंगा’, ऐसा विचार एवं उसप्रकार कृत्य करने पर सहस्रों गायों के प्राण बचेंगे।’
‘हमारी गोशाला में ३०० गाए हैं, इस प्रकार संतोष व्यक्त करने की अपेक्षा ‘मैं ३०० गोरक्षकों को सिद्ध करुंगा’, ऐसा विचार एवं उसप्रकार कृत्य करने पर सहस्रों गायों के प्राण बचेंगे।’
‘व्यष्टि साधना के लिए कुलदेवता का(अर्थात कुलदेव एवं कुलदेवी दोनों ही रहने पर कुलदेवी का एवं उन में एक रहने पर देवी अथवा देवता का), वह भी ज्ञात न रहने पर ‘श्री कुलदेवतायै नमः ।’, ऐसा नामजप करें । गुरुमंत्र मिला, तो उसका नामजप करें । समष्टि के लिए अर्थात ‘हिन्दू राष्ट्र’ स्थापित करने हेतु … Read more
‘अधिकांश राष्ट्र एवं धर्मप्रेमी कोई अवसर आने पर ही कार्य करते हैं, उदा. गोरक्षकों को गाय के कत्तलखाने में जाने के संदर्भ में ज्ञात होते ही वे कार्यरत होते हैं । अयोध्या में राममंदिर, गंगाप्रदूषण इत्यादि के संदर्भ में कार्य करनेवाले कभी कभार कार्य करते हैं । यदि ‘हिन्दू राष्ट्र’ स्थापित करने का ध्येय साध्य … Read more
‘कहां पृथ्वी पर राज्य करने का ध्येय रखनेवाले अन्य धर्म, तो कहां ‘प्रत्येक को ईश्वरप्राप्ति हो’, यह ध्येय रखनेवाला हिन्दू धर्म !’
राष्ट्रप्रेमी हिन्दुओ, ‘हिन्दू राष्ट्र’ स्थापित करने के कार्य में हम श्रीराम की वानरसेना के वानरों समान सहभागी हैं’, ऐसा भाव रखें ! यदि ऐसा भाव रखा, तो रामराज्य अर्थात ‘हिन्दू राष्ट्र’ की स्थापना होते ही अपना भी उद्धार होगा, अन्यथा ‘हिन्दू राष्ट्र’ की स्थापना होने पर भी अहंभाव जागृत रहने से अपना उद्धार नहीं होगा … Read more
जिस प्रकार, ‘पेट्रोल अथवा डीजल के बिना गाडी नहीं चलती, उसी प्रकार आध्यात्मिक बल के बिना कोई व्यक्ति अथवा संस्था, ‘हिन्दू राष्ट्र’ की स्थापना नहीं कर सकता ! इसलिए, साधना करें !’
कहां स्वेच्छा से आचरण करने के लिए उत्तेजित कर मानव को अधोगति की ले जानेवाले बुद्धिप्रामाण्यवादी, तो कहां मानव को स्वेच्छा का त्याग करने की सीख देकर ईश्वरप्राप्ति करवानेवाले संत !
‘कुछ हिन्दू लोग संतों के पास जाने के पश्चात अथवा संतोें के मार्गदर्शन के पश्चात उनके प्रति आभार व्यक्त करते हैं । किसी व्यावहारिक कार्य संपन्न होने के पश्चात उसे सहायता करनेवाले के प्रति औपचारिकता के रूप में आभार व्यक्त किए जाते हैं । इसके विरुद्ध जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्त होने के लिए संतों … Read more
‘पश्चात्ताप से स्वयं प्रायश्चित्त लेना यह दंड की अपेक्षा अधिक परिणामकारक होता है । यह समझकर यदि कोई पश्चात्ताप से ‘घरवापसी’ (घर लौट जाना) का कृत्य कर रहा है, तो उसका विरोध क्यों ?’
‘अंधे का, ‘मेरे पीछे आएं,’ ऐसा कहना सुननेवाले जिस प्रकार उनके पीछे खड्डे में गिरते हैं, वही हाल बुद्धिप्रामाण्यवादियों का है । वे दिशाहीनता के कारण स्वयं खड्डे में गिरते हैं एवं उन के पीछे जानेवाले भी खड्डे में गिरते हैं ।’