जातिव्यवस्था वैदिक नहीं, यह ध्यानमें रखें !

वेदकालमें जातिव्यवस्था नहीं थी । कुंभमेलेमें सभी लोग एक ही घाटपर स्नान करते थे तथा आज भी चलनेवाली यह परंपरा वेदकाल जितनी पुरानी है । – श्री. विजय सोनकर शास्त्री, भूतपूर्व अध्यक्ष, राष्ट्रीय पिछडी तथा दलित जनजाति विकास महामंडल (संदर्भ : हिंदूबोध, जून २००२)

संस्कृत भाषाका अनादर करनेवाले भारतीयोंका घोर अधःपतन !

भारतीयोंका प्राचीन वाङ्मय, अर्थात वेद, उपनिषद, ब्राह्मण ग्रंथ, पुराण; कालिदास तथा भवभूति, आदिके संस्कृत नाटक, काव्य, रामायण, महाभारतादि वाङ्मय एवं कला जाननेकी उत्कट इच्छा तथा लगन जर्मनीमें है; किंतु भारतके नेता, समाजकल्याणकर्ता तथा सुधारक किसीको भी संस्कृतका कुछ भी ज्ञान नहीं है । Sanskrit is dead language अर्थात संस्कृत मृत भाषा है, ऐसा कहकर, वे … Read more

‘इच्छाशक्ति, क्रियाशक्ति और ज्ञानशक्ति तथा राष्ट्र एवं धर्मकी स्थिति’ ।

‘इच्छाशक्तिके कारण ‘कुछ करना चाहिए’ ऐसी इच्छा उत्पन्न होती है । क्रियाशक्तिके कारण प्रत्यक्ष कृति करनेकी प्रेरणा मिलती है । कुछ करनेकी इच्छा उत्पन्न होने और प्रत्यक्ष कृति करनेके लिए ज्ञानशक्तिकी सहायता होनेपर ही योग्य इच्छा उत्पन्न होती है जिसके परिणामस्वरूप योग्य कृति होती है । अन्य पंथियोंको उनकी साधनाके कारण ज्ञानशक्ति सहायता करती है … Read more

मार्गदर्शन लेना हो, तो मनुष्यसे नहीं, ईश्वरसे ही लें !

‘गांधी, नेहरू, इंदिरा गांधी जैसे नेताओंकी मृत्युके पश्चात, उसी प्रकार वाजपेयी जैसे नेताओंके निवृत्त होनेपर अथवा कुछ नेताओंके वयोवृद्ध होनेपर उनके अनुयाइयोंके समक्ष ‘अब मार्गदर्शन किससे लें’, ऐसा बडा प्रश्न उभरता है । कुछ लोग असमंजसमें पड जाते हैं । इसके विपरीत, ईश्वरकी तो कभी भी मृत्यु नहीं होती तथा ईश्वर निवृत्त अथवा वयोवृद्ध नहीं … Read more

राष्ट्रकी स्थिति मरणासन्न रोगीकी भांति होना ।

अनादि कालसे चला आ रहा हिंदु धर्म ऋषि-मुनियोंने बताया, आगे उसे सहस्रों वर्षोंतक ब्राह्मणोंने बनाए रखा । अंग्रेजोंके भारतमें आनेपर उन्होंने ‘फूट डालो और राज करो’ की अपनी नीतिके अनुसार विविध जातियोंमें द्वेष उत्पन्न किया । केवल ब्राह्मणोंके कारण ही हिंदु धर्मका अस्तित्त्व बना हुआ था । इसलिए उनपर टूट पडनेके लिए उन्होंने अन्य जातियोंको … Read more

धर्म ही मोक्ष प्रदान कर सकता है

‘व्यक्ति से परिवार, परिवार से गांव, गांव से राष्ट्र और राष्ट्र से धर्म श्रेष्ठ है । क्योंकि, धर्म ही मोक्ष प्रदान करवा सकता है, अन्य विषय तो माया में उलझाते हैं ! इसलिए, साधना करें !’