हिन्दुनिष्ठों, हिन्दुसंगठन हेतु हानिकारी अहंकारकी व्याधि न होने दें !

वर्तमान समयमें विविध सगठनोंके हिन्दुनिष्ठ एकत्रित आकर धर्मरक्षाका कार्य कर रहे हैं । ऐसे समयमें संगठित सभी हिन्दुनिष्ठोंसे ऐसी अपेक्षा है कि वे एक-दूसरेके विचारोंसे निर्णय लें । कभी कभी कुछ लोग कोई उपक्रम आयोजित करनेवाले संगठनके नियोजनमें अपनी इच्छाके अनुसार परिवर्तन करते हैं एवं इस विषयमें उन्हें सूचित करनेपर भी आयोजकोंकी चिन्ता न करते हुए आग्रहपूर्वक अपना कहना प्रस्तुत करते हैं । ऐसे आचरणको ही अहंभाव कहते हैं । ऐसे अहंभावके कारण ही हिन्दुओंका संगठन नहीं हो पाता । इसलिए स्वयं हिन्दुनिष्ठोंके ऐसे अहंकारकी व्याधि न होने देना ही हितकारी होगा !

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