आइएसआइएस द्वारा सेक्स-गुलाम बनाई गई यजिदी महिला ने बताया, ‘मुझे ७ बार खरीदा-बेचा गया’

आइएसआइएस के कब्जे से बाहर निकली यजिदी महिला नादिया मुराद…

बगदाद : उत्तरी इराक में कुर्दिश सीमा के पास एक छोटा सा गांव है, लालिश। यह गांव इतना पवित्र माना जाता है कि यहां कोई चप्पल तक नहीं पहनता, लोग घर-बाहर हर जगह नंगे पांव ही चलते हैं। इराक में रहने वाले अल्पसंख्यक यजिद समुदाय के लिए इस गांव की बहुत अहमियत है। गांव के बीचोबीच एक गुफा के पास छोटा सा बेहद पवित्र माना जाने वाला तालाब है। यजिदी समुदाय में चाहे बच्चे का जन्म हो, या फिर शादी या किसी की मौत, जबतक लालिश की मिट्टी के साथ इस तालाब के पानी को मिलाकर रस्म नहीं निभाई जाती तबतक कोई काम पूरा नहीं होता। कई पीढ़ियों से यह सिलसिला बदस्तूर चला आ रहा था, परंतु अब इस गांव में एक अजीब किस्म का मार्मिक सन्नाटा पसरा रहता है। इस्लामिक स्टेट (आइएसआइएस) के चंगुल से बचकर आईं डरी-सहमी और कांपती लड़कियों, युवतियों और महिलाओं यहां दिख जाती हैं। ‘द गार्डियन’ अखबार ने यजिदी महिलाओं पर एक विस्तृत रिपोर्ट छापी है। ये सभी यहां आकर प्रार्थना करती हैं और पवित्र जल से खुद को धोकर खुद के ‘दोबारा’ पवित्र होने की आशा करती हैं। माना जाता है कि यहां आकर अपना सिर और चेहरा धोने के बाद वे दोबारा अपने धर्म में शामिल हो गई हैं।

औरतों-बच्चियों का बाजार सजता था, गुलाम बनाने के लिए लगती थी बोलियां

२८ साल की नूर भी इसी उद्देश से यहां पहुंची हैं। उनके पति अभी तक लापता हैं। नूर कहती हैं कि उन्हें ७ बार खरीदा और बेचा गया। इतनी यातनाएं सहने के बाद भी नूर का मानना है कि, उनके साथ हुए सलूक से बदतर बर्ताव कई अन्य महिलाओं के साथ हुआ। जब आइएसआइएस ने नूर को पकड़ा था, उस समय उनकी दोनों बेटियों की उम्र क्रमश: ३ और ४ साल की थी। नूर खुद गर्भवती भी थीं। १५ महीने तक नूर और उनकी २ छोटी बच्चियों को आइएसआइएस ने गुलाम बनाकर रखा। आइएसआइएस का मानना है कि, गैर-मुस्लिम महिलाओं के साथ बलात्कार करना असल में अपने ‘खुदा’ की इबादत का एक तरीका है। आइएसआइएस ने अपने कब्जे वाले क्षेत्र में कई ऐसे बाजार बनाए, जहां छोटी-छोटी बच्चियों और महिलाओं की नीलामी होती थी। यहां तक कि, आइएसआइएस ने ऑनलाइन भी महिलाओं को बेचना शुरू किया।

आइएस का मानना है कि गैर-मुस्लिम औरतों से बलात्कार ‘इबादत’ का तरीका

नूर बताती हैं, ‘बहुत बार मन में विचार आता है कि मर जाऊं, खुद को समाप्त कर लूं। परंतु अपने बच्चों की खातिर मुझे जीना पड़ा।’ आइएसआइएस अपने क्रूर तरीकों के लिए कुख्यात है, परंतु यजिदी समूह के साथ इनका रवैया बदतर था। आइएसआइएस यजिद समुदाय को ‘शैतान का उपासक’ बताता है। जीने के अपने अलग तौर-तरीकों और खान-पान की अलग आदतों के कारण भी यजिदी कट्टरपंथियों के निशाने पर रहते हैं। बड़ी संख्या में यजिद पुरुषों और उम्रदराज महिलाओं को मौत के घाट उतारा गया, वहीं महिलाओं और बच्चियों को गुलाम बनाकर उन्हें केवल संभोग के उपयोग में लाई जाने वाली ‘चीज’ बना दिया गया। एक ही महिला को कई-कई बार बेचा गया। यजिदी आबादी को मध्यकालीन बर्बरता के वीभत्स अनुभवों से गुजरना पड़ा।

हजारों यजिदों को मार डाला, हजारों औरतों को गुलाम बनाया

लालिश में पहली बार आने वाला कोई शख्स शायद इस रस्म को किसी भी अन्य धार्मिक रीति-रिवाज जैसा ही समझेगा, परंतु असल में आइएसआइएस के हाथ अमानवीय और बर्बर क्रूरताओं का शिकार हुए इस समुदाय के लिए उन सारी दर्दनाक व अपमानजनक यादों से मुक्ति पाने का यह एक तरीका है। यजिदी समुदाय शुरूआत से ही इस्लामिक कट्टरपंथियों के निशाने पर रहा है। २०१४ से लेकर अबतक आइएसआइएस ने इस समुदाय पर ऐसे-ऐसे अत्याचार किए कि आम इंसान उसकी कल्पना तक नहीं कर सकता है। सीरिया की सीमा के पास, मोसुल के बहुत नजदीक यजिदी लोगों का गढ़ ‘सिनजर’ बसा था। उस समय सिनजर में लगभग ४ लाख यजिदी रहते थे। मोसुल पर आइएसआइएस का कब्जा होने के बाद रातोरात यजिदी लोगों की जिंदगी नारकीय हो गई। इस बात को ३ साल बीत चुके हैं और मोसुल में आइएसआइएस का अस्तित्व अपने अंत पर पहुंच चुका है। हजारों की संख्या में यजिदी आज भी लापता हैं। माना जा रहा है कि, हजारों को आइएसआइएस ने नृशंस तरीके से मार डाला। ये अत्याचार कितने भयावह थे और किस स्तर तक हुए, इसकी तहें धीरे-धीरे खुलेंगी। मोसुल में आइएसआइएस का नामोनिशां पूरी तरह समाप्त होने की कगार पर है। एकबार जब यह युद्ध पूरी तरह समाप्त हो जाएगा, तब जाकर आइएसआइएस की अमानवीयता के सारे पहलू खुलकर सामने आएंगे।

स्त्रोत : नवभारत टाइम्स

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