अक्षय तृतीयाके दिनका महत्त्व

सारणी


१. तिल-तर्पण करनेसे क्या परिणाम होता है

        पितरोंको तिल प्रिय होते हैं, तथा तिलका उपयोग करनेसे पितरोंके लिए की जा रही विधिमें असुर विघ्न नहीं डालते । इसके साथही तिलमें सात्त्विकता ग्रहण करनेकी एवं रज-तम नष्ट करनेकी क्षमता अधिक मात्रामें होती है । तिल-तर्पण करते समय, ताम्रपात्रमें पूर्वजोंको आवाहन करनेके उपरांत यजमानके भावके अनुसार, उनके लिंगदेह ताम्रपात्रमें आते हैं । इन लिंगदेहोंके सर्व ओर काला आवरण बना रहता है । तिल तर्पण करनेके उपरांत इन लिंगदेहोंको सात्त्विकता प्राप्त होती है । इन लिंगदेहोंमेंसे जो तृप्त होता है, उसके सर्व ओर बना काला आवरण अल्प होने लगता है, तथा चैतन्यका कवच निर्माण होने लगता है । साथही उसे आगेके लोकमें जाने हेतु उर्जा एवं प्राणशक्ति प्राप्त होती है । इसके कारण यह लिंगदेह जडत्व त्यागकर हलका बनता है एवं उसे गति प्राप्त होती है । तिल तर्पणके कृत्यसे पूर्वजदोष अथवा पितृदोष ५ से १० प्रतिशत अल्प होते है । अक्षय तृतीयाके दिन देवता एवं पूर्वजोंके लिए किए गए तिल-तर्पणसे यजमानका देवऋण तथा पितरऋण कुछ मात्रामें अल्प होनेमें सहायता मिलती है ।

२. अक्षय तृतीयाके दिन दान देनेका महत्त्व

        अक्षय तृतीयाके दिन दिए गए दानका कभी क्षय नहीं होता । अक्षय तृतीयाके दिन पितरोंके लिए आमान्न अर्थात दान दिए जानेयोग्य कच्चा अन्न, उदककुंभ; अर्थात जल भरा कलश, खसका पंखा, छाता, पादत्राण एवं जुते-चप्पल, इन वस्तुओंका दान करनेके लिए पुराणोंमें बताया है ।

३. अक्षय तृतीयाके दिन देवताओं एवं पितरोंके लिए ब्राह्मणोंको उदककुंभका दान देनेका उद्देश्य

        उदककुंभको ‘सर्वसमावेशक स्तरका निर्गुण पात्र’ ऐसे संबोधित किया जाता है । पितरोंको उदककुंभ दान करनेसे वे हमारी वासनाएं नष्ट करते हैं, जबकि देवताओंका कृपाशिर्वाद हमारे कर्मोंके कारण उत्पन्न पाप नष्ट करता है । इसलिए दानके रूपमें हमारे कर्मोंके कारण निर्माण होनेवाली सूक्ष्म वासनाएं देवताओंके चरणोंमें अर्पण की जाती हैं । इस प्रकार उदककुंभका दान देनेका अर्थ है, कुंभमें भरे जलको पवित्र मानकर अपनी सर्व प्रकारकी देह एवं कर्मसे जुडी वासनाएं उसमें विसर्जित करना । इस प्रकार अपना देह आसक्ति रहित कर्मसे शुद्ध करनेके उपरांत ब्राह्मणको देवता एवं पितरस्वरूप मानकर उदककुंभके माध्यमसे अपनी सभी वासनाएं उनके चरणोंमें अर्पित करना ।

४. उदककुंभ दान देनेकी विधि

        देवताओंके लिए रखे कलशमें श्रीविष्णुकी ‘वसंत-माधव’के नामसे स्थापना की जाती है एवं उसका पूजन किया जाता है, तथापि पितरोंके लिए रखे कलशमें सभी पितरोंका आवाहन कर उनका पूजन किया जाता है ।

५. पूजाविधिके लिए सामग्रीकी रचना एवं प्रत्यक्ष पूजाविधि

        दो पीढे रखें । एक देवताओंके लिए एवं दूसरा पितरोंके लिए ।  उनपर यथाशक्ती चावलकी राशिके दो ताम्रपात्र रखे । उसपर कलश रखें । कलशमें जल भरें । कलशके पास नारियल रखे । पानके पत्तोंकी जोडी रखें । उसपर सुपारी एवं दक्षिणा रखें । नैवेद्य निवेदित करने हेतु फल भी रखें । देवताओंके लिए रखे कलशमें जौं, श्वेत तिल एवं सुपारी डालें । पितरोंके लिए रखे कलशमें काले तिलके साथ सुपारी डालें । कलशपूजन आरंभ करनेसे पहले आचमन, प्राणायाम एवं देशकाल कथन कर संकल्प करें । कलशको नया वस्त्र लगाये । कलशमें वसंत-माधवका आवाहन कर उनका पूजन करें । इसी प्रकार पितरोंके लिए रखे कलशका भी पूजन करे । कलशपूजनके उपरांत ब्राह्मणपूजन करें एवं देवताओंके लिए पूजन किया कलश ब्राह्मणको दान दें । सबके मंगलकी कामना हेतु प्रार्थना करें । इसी प्रकार पितरोंके लिए रखा कलश भी ब्राह्मणोंको दान दे । पितरोंकी संतुष्टिके लिए एवं उन्हें गति मिलने हेतु देवतासे प्रार्थना करें ।

६. अक्षय तृतीयाके दिन उदक कुंभ दान एवं तिल-तर्पण के साथही कुछ अन्य कृत्य

        शुभ अवसरपर बीज बोएं जाते है । इस दिन मृत्तिका पूजन, वृक्षारोपण किया जाता है । साथही इस दिनसे कुछ जगह प्याऊ खोले जाते हैं ।

संदर्भ : सनातनका ग्रंथ-त्यौहार, धार्मिक उत्सव एवं व्रत

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