वन्दे मातरम् इस गीत की लोकप्रियता तथा देशभक्ति किसी के कितने भी विरोध के पश्चात अल्प नहीं होगी ! –

भाद्रपद कृष्ण पक्ष पंचमी, कलियुग वर्ष ५११६

१. अंग्रेजों के पाशवी शृंखला से भारतमाता को मुक्त करने के लिए अपने सीने पर वन्देमातरम का पदक लगाकर बारीसाला के मोर्चा में सम्मिलित होनेवाले कांग्रेस के सैकडो कार्यकर्ता !

१४ अप्रैल १९०६, वह कितना भयावह एवं अत्याचारी दिन..! उस दिन अंग्रेजों की पाशवी शृंखला से भारतमाता को मुक्त करने के लिए कलकत्ता के (कोलकाता के) तत्कालीन कांग्रेस के ज्येष्ठ तथा श्रेष्ठ नेता सुरेन्द्रनाथ बनर्जी, अमृत बजार के समान विख्यात समाचारपत्रिका के सम्पादक मोतीलाल घोष तथा अरविन्द घोष के नेतृत्व में कांग्रेस के सैकडो कार्यकर्ता अपने सीने पर वन्दे मातरम् का बिल्ला लगाकर बारीसाला, जो अभी बांग्लादेश में है, वहां मोरचा हेतु एकत्रित हुए थे ।

 

२. सीने में साहस लेकर, आंखों में स्वतंत्र भारत के सुजलाम् सुफलाम् होने के सपने देखते हुए ‘वन्दे मातरम्’ इस अम्बर को ललकारने वाली एक ही ध्वनि की रचना करनेवाले सुरेन्द्रनाथजी !

आजूबाजू में घोडेपर सवार होकर अंग्रेजों के तलुवे चाटने वाले आरक्षक अपने अंग्रेज स्वामी की आज्ञा की प्रतीक्षा कर रहे थे । आंखोंमें स्वतंत्र भारत के सुजलाम् सुफलाम् होने के सपने देखते हुए सीने में साहस लेकर सुरेन्द्रनाथजी ने आकाश भेदने/चीरने वाली एक ही ध्वनिकी रचना की, `वंदे मातरम्’ । यह ध्वनि गोली के समान सैकडो कांग्रेस कार्यकर्ताओं के कानों में गूंजते ही उनके मुंह से तोपगोले के समान वन्दे मातरम् शब्द बाहर निकलकर मोर्चा का आरम्भ होते ही अंग्रेजों के आरक्षक मोर्चापर टूट पडे ।

वन्दे मातरम् का जादू इतना फैल चुका था कि ६ अगस्त १९०६ को अरविन्द घोष ने कोलकाता में अंग्रेजों की पर्वा न कर वन्दे मातरम् नाम का एक अंग्रेजी दैनिक आरम्भ किया, तो भगिनी निवेदिता ने `निवेदिता’, लडकियोंकी इस पाठशाला में प्रतिदिन प्रातःकाल की प्रार्थना में वन्दे मातरम् गीत को प्राधान्यक्रम दिया । १९०६ से १९११ तक अर्थात बंगाल के विभाजन तक इस गीत के सन्दर्भ में हिन्दू-मुसलमान समाजमें किसी भी प्रकार का विवाद नहीं था । एक मुख से, एक दिल से दोनों समाज ने अंग्रेजों का तीव्र प्रतिकार कर विभाजन निरस्त किया । तत्पश्चात ही कुछ धर्मपागल एवं स्वार्थी राजनेताओं के कारण धीरे-धीरे इस गीत का विरोध प्रदर्शित किया जाने लगा ।

 

३. वन्दे मातरम् के जय घोष में प्राणों की आहुति देनेवाले क्रान्तिवीर

३ अ. अल्पवयीन शिरीष बाल

महाराष्ट्र के नन्दुरबार में यह अल्पवयीन शिरीष बाल १९४२ में अपने साथियों के साथ म. गांधी के आदेशका पालन करने हेतु महात्मा गांधी की जय, वन्दे मातरम्, इस प्रकार अंग्रेजों का हृदय विदीर्ण करने वाली घोषणाएं देते हुए यह छोटी सी सेना पदक्रमण कर रही थी । सेना नन्दुरबार के चौक पर आई । पहले से ही सिद्ध अंग्रेज आरक्षकों ने मोर्चा का नेतृत्व करनेवाले शिरीष बाल को धमकाया, खबरदार, यदि आगे आएगा, तो गोली मारेंगे । उनकी इस धमकी की पर्वा न कर शिरीष बाल आगे बढा । उन पाशवी जंगलियों ने बन्दूक से गोली मारी, गोली का निशाना अचूक लगा, किन्तु अन्तिम क्षणतक वह वन्दे मातरम् का जयघोष करता ही रहा ।

३ आ. बाबू गेनू

उससे पूर्व मुम्बई का निर्धन कामगार बाबू गेनू ने परदेसी  वस्त्रों के मालवाहन के नीचे आकर इसी प्रकार की घोषणा देते हुए अपना जीवन अर्पण किया था । मंतरे हुए उन दिनों में इस प्रकार सैकडो देशभक्तों ने वन्दे मातरम् कहते हुए प्राण न्योछावर किए तथा देश को स्वतंत्र किया ।

 

४. वन्दे मातरम् इस गीतका आदर करनेवाले मुसलमान नेता !

आनन्दमठ उपन्यास के इस गीत से १८८२ में देश में राष्ट्रभाqक्त की एक तूफानी लहर दौडकर आई तथा सहस्रों राष्ट्रभक्त हुतात्मा हुए; इसीलिए १९४७ को स्वतंत्रता प्राप्त हुई । आन्दोलन के विरुद्ध अधिवेशनका प्रारम्भ वन्दे मातरम् गीत द्वारा ही किया गया था । उस समय मोहम्मद अली, शौकत अली, जाफर अली के समान प्रसिद्ध मुसलमान नेता इस गीत का आदर करने हेतु नम्रतापूर्वक खडे रहते थे । बै. जीना भी प्रारम्भमें इस गीत का इसी प्रकार आदर करते थे; किन्तु तत्पश्चात उनमें बदलाव आ गया ।

 

५. वन्देमातरम् गीत के संदर्भ में गांधी के विचार

१९०५ में वन्दे मातरम् गीतके विषयमें म. गांधी लिखते हैं, `आज लक्षावधि लोग एकत्रित आकर वन्दे मातरम् गाते हैं । मेरे विचारानुसार इस गीत ने राष्ट्रीय गीत का स्थान प्राप्त किया है । यह गीत मुझे पवित्र एवं भावनात्मक प्रतीत होता है । १९३६ में म. गांधी पुनः इस गीत के संदर्भ में लिखते हैं, बंगाल के विभाजन के समय हिन्दू-मुसलमान इन दोनों समाज की यह शाqक्तशाली एवं साम्राज्यविरोधी घोषणा थी ।

 

६. शास्त्रीय संगीत के सम्राट के रूप में विख्यात पं.विष्णु दिगम्बर पलुसकर पर वन्दे मातरम् यह गीत गाने से लिए प्रतिबंध लगाने वाले कांग्रेस अध्यक्ष मौलाना मोहम्मद अली !

ऐसे इस अमर एवं श्रेष्ठ गीतको १९२३ में काकीनाडा में आयोजित कांग्रेस अधिवेशन में उस समय के संगीत सम्राट विख्यात पं. विष्णु दिगम्बर पलुसकर वन्दे मातरम् गीत गा रहे थे, उस समय तत्कालीन कांग्रेस के अध्यक्ष मौलाना मोहम्मद अली ने उन्हें रोकने का प्रयास किया । उनके इस प्रयास की ओर अनदेखा कर उन्होंने अपना गीत आरंभ रखा तथा पूरा होनेके पश्चात ही रोका । साथ ही गीत के पश्चात `वन्दे मातरम्’ यह घोषणा भी दी ।

जिस गीतका इस देश की स्वतंत्रता प्राप्ति के कार्य में बहूमुल्य हिस्सा है, उस गीत के संदर्भ में कुछ धर्मांध मुसलमानों को अस्वीकृति क्यों होनी चाहिए ? वे क्यों सकुचित वृत्ति से विचार करते हैं ?

 

७. वन्दे मातरम् के विरोध में कुछ धर्मांध मुसलमानों द्वारा किए गए प्रतिकार में अपना स्वार्थ साधनेवाले कांग्रेस मन्त्री अर्जुनसिंह !

सरंजामी एवं स्वतन्त्रता लडाई से दूर रहने वाले केन्द्रीय मन्त्री अर्जुनसिंह वन्दे मातरम् के विरोध में कुछ धर्मांध मुसलमानों द्वारा किए गए प्रतिकार में अपना स्वार्थ साधने का कार्य करते हैं । इसके समान धक्कादायक बात और कौन सी होगी ?

 

८. विश्वके दूसरे क्रमांक का लोकप्रिय राष्ट्रगीत !

राष्ट्रगीत वन्दे मातरम् को १३३ वर्ष पूर्ण हो चुके हैं । ऐसा होते हुए भी, यह विश्व के दूसरे क्रमांक का लोकप्रिय गीत है । बीबीसी द्वारा हाल ही में लोकप्रिय गीतों के संदर्भ में १५५ देशों के सूचनाजालपर एक सर्वेक्षण किया गया । उसमें प्रथम क्रमांक पर आयरलैण्ड के `ए नेशन्स वन्स अगेन’, इस गीतको घोषित किया गया । `वन्दे मातरम्’, इस गीत के रचनाकार स्व. बंकिमचन्द्र चटोपाध्याय ने १०० वर्ष पूर्व ही भविष्यवाणी की थी कि प्रत्येक भारतवासी वेद मन्त्रों के अनुसार यह गीत गाएगा । इस गीत की लोकप्रियता तथा देशभक्ति किसी के कितने भी विरोध के पश्चात कभी अल्प नहीं होगी । बंकिमचन्द्रकी भविष्यवाणी यथार्थ सिद्ध हुई है ।

– प्रा. नानासाहेब साळुंखे (सन्दर्भ : मासिक विवेक, ८.१०.२००६)

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