सारिणी
- विद्यालयमें पढनेवाले धमकीकी भाषा बोलनेवाले असामाजिक मानसिकताके बालक !
- 'थ्री डी'में लिप्त युवा पीढी !
- वेशभूषाके कारण पाश्चिमी सभ्यताके अधीन हुई युवा पीढी !
- माता-पिताद्वारा धर्माचरण न होनेके कारण बिगडे धनवानोंके उद्दंड बालक !
- अनुशासन एवं शारीरिक सामथ्र्य न रहनेवाला; परंतु व्यसनाधीन, मद्यपी एवं वेश्यागमन करनेवाला वर्तमान समयका युवक !
- फैशनके अधीन हुए युवक-युवतियां !
- राष्ट्रप्रतीकोंका अनादर कर (कु) आदर्शको संजोनेवाले युवक !
- देश अराजकताकी देहरी पर खडा है, तब भी अपनी चौखटसे बाहर निकलनेकी सिद्धता न रखनेवाली युवा पीढी !
- स्वतंत्रताके लिए एक पीढी लडती है, दूसरी पीढी भोगती है एवं तीसरी पीढी गंवाती है, यह समाजनियम है !
विद्यालयमें पढनेवाले धमकीकी भाषा बोलनेवाले असामाजिक मानसिकताके बालक !
‘तुम विद्यालयके बाहर मिलो, मैं दिखाता हूं ।’ ‘क्या मेरा नाम बताता है ?’ ‘इस लडकेको कष्ट न दे । वह हमारे गुटका है ।’ ‘मेरे बीचमें मत आ । मेरी पहुंच कहां तक है, तुम्हें ज्ञात नहीं है…' ऐसे वक्तव्य विद्यार्थियोंके मुंहसे सुनकर ऐसा प्रतीत होता है मानो हम किसी 'गैंगस्टर' अथवा ऊधमी संगठनके कार्यालयमें बैठे हो । – (श्री गजानन आशिष, सितंबर २००९)
'थ्री डी'में लिप्त युवा पीढी !
वर्तमानमें भारतीय युवक पश्चिमी सभ्यतावाले लोगोंके समान 'थ्री डी'में अर्थात ड्रग्ज, ड्रिंक एवं डान्समें (नशिली वस्तुएं, मद्य एवं नाच) लिप्त हैं !' – श्री श्री श्री मुक्तानंद स्वामी, करिंजे, जिला दक्षिण कन्नड, कर्नाटक (३०.१.२०१०)
वेशभूषाके कारण पाश्चिमी सभ्यताके अधीन हुई युवा पीढी !
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किसी भी धर्म, जाति एवं सभ्यताके लिए उनकी वेशभूषा अधिक महत्त्वपूर्ण होती है । इससे उनकी मानसिकताका परिचय होता है । वर्तमानमें अपनी युवा पीढी बडी उमंग एवं अकडसे पाश्चिमी सभ्यताकी वेशभूषाका अनुकरण कर रही है; परंतु उसे धारण कर स्त्रियां अपने शीलकी रक्षा नहीं कर सकतीं । टाय, कोट-पैंट, जीन्स तथा मिनी स्कर्ट धारण कर स्वयंको आधुनिक समझनेवाली एवं कुडता-पाजामा, धोती, लेहंगा तथा ओढनी इत्यादि पहननेमें लज्जा प्रतीत करनेवाली युवा पीढी क्या उन्नतिके नामपर अवनतिकी ओर नहीं जा रही ? केवल शोभाचारके लिए (फैशन) अथवा स्वयंको अन्योंसे श्रेष्ठ सिद्ध करने हेतु क्या हमें हमारी सांस्कृतिक परंपराओंको तिलांजली देना चाहिए ? – हिन्दू-जागृति से संस्कृति रक्षा
माता-पिताद्वारा धर्माचरण न होनेके कारण बिगडे धनवानोंके उद्दंड बालक !
धनवानोंकी संतान क्रोधी, संतप्त, उद्दंडएवं हिंसाचारी होती है । इनकी पार्टियोंमें किसी भी क्षण हिंसाचार भडक सकता है । इनकी पार्टियोंमें जाना संकटकी छायामें रहने समान है । हिन्दुस्थानमें बडे नगरोंमें (गांवोंमें भी) बंदूक संस्कृतिने जोर पकडा है । किसी भी क्षण छोटेसे कारणसे आग भडक सकती है ।
धनवानोंके बालक सधनताका बेताल एवं उन्मत्त प्रदर्शन करते हैं । किसी भी चीजको मना करनेपर वे अपमान समझते हैं । उनकी उद्दंड भावना है कि पैसा फैंककर जो चाहे बिना प्रयास मिल सकता है अथवा मिलनाही चाहिए । पंजाब, हरियाणा , उत्तर प्रदेश तथा राजस्थानमें दिनदहाडे हत्याएं होती हैं । लोग निस्संकोच बंदूक लेकर घूमते हैं ।
'फायर हॉल' होटलमेें गोलीबारी हो गई । इसमें दिनदहाडे चाकू-छुरे चलाकर ११ मनुष्योंकी हत्या हुई । दिल्लीमें एक लाखसे अधिक लोग (शस्त्रधारण करनेकी) अनुज्ञाप्त रखते हैं । और भी कुछ लाख लोग सहज अवैध शस्त्र रखते होंगे ! ये धनवान लोग अत्यंत असंयमी एवं जंगली हैं ।
यदि माता-पिताने धर्माचरण किया, तो बच्चे, परिवार, परि़जन तथा आसपास उसका अपेक्षित परिणाम होगा । माता-पिताका संरक्षण मिलनेके कारण बच्चे इसप्रकार जंगली होते हैं । धनवानोंके बच्चे बिगडे हुए होते हैं । इस जंगली संस्कृतिमें निद्रानाश अटल है । बडे नगरके क्लबमें हत्याएं चालू है । मंत्रीमंडलमें चाचा, मामा तथा मित्रके नामपर वे सरलतासे छूट जाते हैं । – गुरुदेव डॉ. काटेस्वामीजी (घनगर्जित, जनवरी २००७)
अनुशासन एवं शारीरिक साम न रहनेवाला;
परंतु व्यसनाधीन, मद्यपी एवं वेश्यागमन करनेवाला वर्तमान समयका युवक !
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'अनुशासन एवं व्यायाम ये दोनों ही युवा पीढीमें नहीं रहे हैं । नई पीढी आलसी एवं शारीरिक दृष्टिसे दुर्बल होगई है । सेनामें जाना तो दूर ; परंतु सेनामें जानेहेतु आवश्यक शारीरिक सामथ्र्य एवं क्षमता भी युवकोंमें नहीं रही । अनेक युवक व्यसनाधीन हो गए हैं । बीडी, सिगरेट, तमाखू, गुटखा, मद्यके साथ साथ वेश्यागमन भी कर रहे हैं । एडस् तथा गुप्तरोगोंने युवक-युवतियोंको घेर लिया है । अनेक लोगोंके पास भ्रष्टाचारके कारण प्रचंड पैसा आ गया है । अंतमें वे एवं उनके बच्चे इस धनका उपयोग कहां करते हैं ? यही विषय महत्त्वपूर्ण है । मद्य, सिगरेट, मटका तथा जुआ जैसे अनेक प्रकारके व्यसनोंमें ही यह धन व्यय होता है । – श्री. अनिल कांबले (मासिक 'लोकजागर', अमरनाथ यात्रा विशेषांक २००८)
फैशनके अधीन हुए युवक-युवतियां !
'युवकोंमें व्यायाम एवं खेलोंकी चाह नहीं रही । युवतियोंमें सौंदर्य एवं लोकप्रिय पश्चिमी पद्धतिके वस्त्र एवं केशरचनाकी (फैशनकी) चाह उत्पन्न हो गई है । वर्तमान समयके मम्मी-डैडी क्या कर रहे हैं ?' – लोकजागर
'आज देशकी स्थिति दयनीय है। देशको 'लिप्स्टिक' लगानेवाली महिलाओंकी नहीं, अपितु जिजामातासमान माताओंकी आवश्यकता है ।’ – प्रा. राजेंद्र ठाकुर, उत्तुर, कोल्हापुर (१४.३.२०११)
राष्ट्रप्रतीकोंका अनादर कर (कु) आदर्शको संजोनेवाले युवक !
'छत्रपति शिवाजी महाराजके गढ तथा किले अपने राष्ट्रीय तीर्थस्थल हैं । वर्तमान समयके युवक इन तीर्थस्थलोंकी मिट्टी माथेको लगानेके स्थानपर वहांकी दीवारपर अपना नाम लिखकर उनका अनादर करते हैं ! भारतके युवकोंको चाहिए कि वे अपने समक्ष हिन्दुआेंके तेजका, क्रांतिकारियोंके शौर्य एवं धैर्यका आदर्श रखें; परंतु चलचित्रके अभिनेता-अभिनेत्रियां उनके आदर्श हैं, यह इस देशका दुर्भाग्य है !' – डॉ. सच्चिदानंद शेवडे, सुप्रसिद्ध व्याख्याकार एवं साहिात्यिक, डोंबिवली, ठाणे. (१२.७.२०१०))
देश अराजकताकी देहरी पर खडा है, तब भी
अपनी चौखटसे बाहर निकलनेकी सिद्धता न रखनेवाली युवा पीढी !
'जिस देश स्वतंत्र करने हेतु एक संंपूर्ण पीढीने रक्तको पानीसमान बहाया, वही देश आज अराजकताकी देहरीपर खडा है । ऐसी स्थितिमें अगली पीढी इस विषयमें अत्यधिक उदासीन दिखाई देती है । 'मैं तथा मेरा परिवार, मेरी नौकरी, मेरा व्यवसाय' इस चौखटके बाहर निकलकर कुछ करनेके लिए कोई उत्सुक नहीं दिखाई देता । हम सबको इस बातका विस्मरण हो गया है कि इस देशके नागरिकके नाते मेरे कुछ कर्तव्य हैं' । राजनेता देशको लूट रहे हैं । ऐसी स्थितिमें चाय पीते समय उनको अपशब्द कहनेके अतिरिक्त जनता कुछ भी नहीं करती ।' – श्री. अमर जोशी, साधक-पुरोहित पाठशाला, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा.
स्वतंत्रताके लिए एक पीढी लडती है, दूसरी पीढी भोगती है
एवं तीसरी पीढी गंवाती है, यह समाजनियम है !
'भारत स्वतंत्र हो गया, तब भी वह शाश्वत नहीं है एक पीढी लडती है, दूसरी पीढी भोगती है एवं तीसरी पीढी गंवाती है, यह क्रम खंडित न होते हुए चालू है । सभी राजकुल एवं समाजका इतिहास इन तीन वाक्योंमें भरा है ।' – श्री. अरविंद विट्ठल कुलकर्णी.
स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात