कांग्रेस दल में गांधी का महत्त्व था। हिन्दू-मुसलमान हिंसा के समय उन्होंने भी मुसलमानोंका साथ दिया। जिस प्रकार बांग्लादेश के नौखाली क्षेत्र में हुई हिंसा में अधिक मात्रा में हिन्दुओंकी हत्या हुई, उस समय भी गांधीजी ने धर्मांधोको विरोध करने के लिए अस्वीकृती प्रदर्शित की। इस प्रकार प्रत्येक समय कट्टरपंथीयोंका साथ देकर भारतीय हिन्दुओंको दुर्बल बनाया। स्वतंत्रता प्राप्ती के पश्चात् पाकिस्तान पृथक हुआ। उस समय भी ईश्वर की कृपा से भारत के सर्व धर्मांधोको पाकिस्तान में भेजने की संधी प्राप्त हुई थी, अपितु भारत को निधर्मी राष्ट्र घोषित कर उन्हें भारत में ही निवास करवाया !
१. दैनिक सनातन प्रभात के समाचारोंद्वारा आपत्काल का आरंभ स्पष्ट हुआ !
१. अ. ‘उमर – १ क्षेपणास्त्र की निर्मिति करने का पाक के तहरीक-ए-तालिबान संगठन का दावा’ इस शीर्षक में प्रकाशित हुए समाचार में (दैनिक सनातन प्रभात, २४.४.१५, पन्ना ३) यह प्रस्तुत किया गया है कि, पाकिस्तान के खैबर पख्तुन ख्वा इस क्षेत्र के तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) इस आतंकवादी संगठन ने उमर-१ इस क्षेपणास्त्र का परीक्षण सफलता से किया है। यह क्षेपणास्त्र अणुबम्ब का सहज वहन कर सकता है। पाकिस्तान की सेना के साथ निरंतर लडनेवाले इस संगठन ने इस संदर्भ में एक चलत्चित्र (वीडीओ) प्रकाशित किया है। इस संगठन के प्रवक्ता ने यह बताया है कि, आत्मघातकी बम, वाहन, अॅन्टीजॅमर उपकरणं निर्माण करने के लिए हम सक्षम हैं। यदि अल्ला की कृपा रही, तो सर्व शत्रु दूम दबाकर भागते हुए दिखाई देंगे।
आ. ‘पूरे विश्व में दार-उल्-इस्लाम का राज्य स्थापन करने की आयएस्आयएस् की प्रतिज्ञा’ इस शीर्षक ने नीचे (दैनिक सनातन प्रभात, २४.४.१५, पन्ना ८) समाचार प्रकाशित किया गया है। वह इस प्रकार है – बगदाद के आयएस्आयएस् इस संगठन ने यह प्रतिज्ञा की है कि, आगामी ५ वर्ष में पूरे विश्व में दार-उल्-इस्लाम (इस्लाम का राज्य) स्थापन करेंगे। साथ ही इस विषय का रेखाचित्र भी उन्हें घोषित किया है। उस के लिए उन्होंने अबू-बकर-अल-बगदादी की खलिफा पद पर नियुक्ति भी की है। वर्तमान के इराक तथा लेवांत की अपेक्षा उसे इस्लाम राष्ट्र यह नाम दिया गया है। स्पेन देश को इस्लाम राष्ट्र का हिस्सा दर्शाया गया है।
इस इस्लामी राष्ट्र के नुसार पूरे विश्व के कट्टरपंथियोंको खलिफा बगदादी का आदेश बंधनकारक रहेगा। उनके आदेशानुसार शीघ्र ही सर्व देशों में इस्लामी शासन की स्थापना होगी तथा प्रत्येक देश के मुसलमानोंको जिहाद के लिए सिद्ध होने का आवाहन भी किया गया है।
१ इ. अफगान तालिबान तथा आणि आयएस्आयएस् एक-दूसरे के विरोध में जिहाद की घोषणा करेंगे ! इस शीर्षक के नीचे प्रकाशित किए गए समाचार में (दैनिक सनातन प्रभात, २५.४.१५, पन्ना ३) यह प्रस्तुत किया गया है। वह इस प्रकार है – आयएस्आयएस् का प्रमुख अबु बकर अल-बगदादी ने अफगाण तालिबान का प्रमुख मुल्ला मोहम्मद उमर को मूर्ख तथा अनपढ संबोधित कर इन दोंनो धर्मांध आतंकवादी संगठनोंने एकदूसरे के विरोध में जिहाद घोषित किया है। अफगाणिस्तान के दक्षिण हेलमंड राज्य के पुलिस प्रमुख नबी जान मुल्लाहखील को प्राप्त कागदपत्र के अनुसार अफगाण तालिबान तथा आयएस्आयएस् इन आतंकवादी संगठनोंने एकदूसरे के विरोध में जिहाद घोषित करने का समाचार प्रकाशित किया है।
२. उपर्युक्त सद्यस्थिती अर्थात् संभाव्य आपत्काल का आरंभ
२ अ. अमरिका के अफगाणिस्तान के साथ होनेवाले संबंध तथा भविष्य में तालिबानियोंका अफगाणिस्तान में अस्तित्व : अमरिका ने अफगाणिस्तान में अपना वर्चस्व निर्माण होने के लिए रशिया के विरोध में लादेन को सिद्ध किया था। भविष्य में उसी लादेन ने लष्कर-ए-तोयबा इस संगठन की निर्मिती कर अफगाणिस्तान पर नियंत्रण पाया। इतना ही नहीं, तो उसने ११.९.२००१ को अमरिका के वल्र्ड ट्रेड सेंटर पर हवाई आक्रमण किया। उस समय लगभग २ सहस्त्र ७५३ लोगोंकी मृत्यु हुई थी। इस घटना से संतप्त होकर अमरिका ने लादेन के विरुद्ध अफगाणिस्तान पर हवाई आक्रमण करने के लिए आरंभ किया। अतः लादेन तथा उसके सहकारी भाग गए। अमरिका ने अफगाणिस्तान पर स्वामित्व प्राप्त कर वहां नियुक्त किए प्रमुख के लिए अपनी सेना का प्रबंध कर लादेन को ढूंढने का अभियान आरंभ रखा। अंत में पाकिस्तान में स्थित लादेन को ढूंढकर उसकी हत्या की तथा समुद्र में ही उसे दफना दिया। अब यह बताना असंभव है कि, अमरिका ने अधिकांश सेना अफगाणिस्तान से हटाई है, अतः पूरे अफगाणिस्तान तालिबानियोंके अधिकार में कब जाएगा।
२ आ. अमरिका ने पाक को तालिबानियोंके विरुद्ध लडने के लिए सहायता की; किंतु पाक ने उसी सहायता का उपयोग भारत के विरुद्ध लडने के लिए किया : अमरिका तालिबान के समान आतंकवादी संगठनोंका निःपात करने के लिए प्रारंभ से ही अस्त्रशस्त्रोंकी पूर्ति कर रही है; किंतु पाकिस्तान उसका उपयोग भारत विरुद्ध लडने के लिए (१९६५, १९७२ तथा १९९९ की कारगील लडाई), साथ ही दहशत निर्माण करने हेतु कर रही है। ऐसा होते हुए भी अमरिका उन्हें अस्त्रशस्त्रोंकी पूर्ति कर रही है। इसका अर्थ यही है कि, इस के द्वारा वह भारत पर भी अपना अंकुश रखने का कार्य कर रही है। अमरिकाद्वारा उसे अधिक सहायता प्राप्त होती है; इसलिए वह आतंकवादियोंके साथ लडाई करने का बहाना कर रही है।
२ इ. इराक में अमरिका का हस्तक्षेप तथा वहां के आयएस्आयएस् इस आतंकवादी संगठन का बढता हुआ वर्चस्व : अमरिका ने प्रारंभ में (विश्व स्तर पर तेल का व्यापार कर अपना प्रभुत्व प्रस्थापित करने के लिए) इराक के सद्दाम की सहायता की थी। तत्पश्चात् उसी ने जब अपना अस्तित्व स्थापन करने का प्रयास किया, तो अमरिका ने सद्दाम हुसेन पर दहशत प्रस्थापित करने के लिए उस पर आक्रमण कर उसे बंदी बनाया। वहां सेना का प्रबंध कर सद्दाम को न्यायदानद्वारा फांसी का दंड किया। उस समय से वहां अनागोंदी कारभार आरंभ हुआ। अमरिका ने वहां नियुक्त की गई सेना भी हटाई है; इसलिए वहां के अनागोंदी कार्य का अपलाभ उठाते हुए आयएस्आयएस् इस आतंकवादी संगठन ने इराक का अधिकांश हिस्सा अपने अधिकार में लिया है। वहां से वह पूरे विश्व पर नियंत्रण पाने की इच्छा से कार्य कर रहा है। इस में पूरे विश्व के मुसलमान युवा-युवतियां सम्मिलित हो रहे हैं।
२ ई. अमरिका तथा युएन्ओ के शांति के कारण ही आयएस्आयएस् यह संगठन विश्वपर सत्ता प्रस्थापित करने का प्रयास कर रही है : दार-उल-इस्लाम स्थापन करने हेतु आयएस्आयएस् की प्रतिज्ञा (आगामी ५ वर्ष में पूरे विश्व में इस्लाम का राज्य स्थापन करेंगे) इस में उल्लेखानुसार उनकी कहां तक सिद्धता हुई है, इस बात की कल्पना आती है। अतिरेकी कार्रवाई कर वे विश्व में दहशत मचा रहे हैं; किंतु इतना होते हुए भी अमरिका तथा युएन्ओ ने लादेन के अथवा सद्दाम हुसेन के समय जिस प्रकार की तत्परता से कार्रवाई की, उसी प्रकार से करते हुए दिखाई नहीं देते। अन्य राष्ट्रं भी उनके आंतकवाद पर नियंत्रण प्राप्त करने के लिए कुछ कार्रवाई करते हुए दिखाई नहीं देते। अतः वे विश्वपर सत्ता प्रस्थापित करने का प्रयास कर रहे हैं। अन्य मुसलमान राष्ट्रं भी इस दुष्ट प्रवृत्ति का विरोध नहीं करते।
२ उ. विश्व में धर्मांधोने आरंभ किए आतंकवाद के कुछ उदाहरण
१. बीच में अंग्लैंड में भी मुसलमानोंने उनकी धर्मांधता का प्रदर्शन किया था।
२. चीन में धर्मांधोद्वारा किया गया प्रतिकार चीन शासन ने विफल बनाया।
३. म्यानमार देश में भी कट्टरपंथियोंने प्रतिकार करने के पश्चात् वहां के बौद्ध लोगोंने उन्हें अच्छी तरह से प्रतिरोध प्रदर्शित करने के कारण उनकी विघातक आतंकवादी आक्रमक शक्ति दुर्बल बनी। अतः ऐसी आक्रमक दृष्टि के धर्मांधोंने स्थलांतर किया। अहिंसावादी बौद्धोंने आक्रमक जिहादीयोंको भारत में वापस भेज दिया। इससे यह स्पष्ट होता है कि, जिहादीयोंकी हिंसक आक्रमक आतंकवादी वृत्ती कितनी भयावह थी ! अतः अहिंसावादी बौद्धोंको हिंसक वृत्ती धारण करना बाध्य हुआ; इसी लिए हिंसक आतंकवादी जिहादीयोंको पराजित करने के लिए प्रत्येक सात्त्विक व्यक्ति को शस्त्र हाथ में लेना बाध्य हुआ है। स्वतंत्रता वीर सावरकर ने यह कहा था कि, रणाविण स्वतंत्रता किसी को भी प्राप्त नहीं होगी।
२ ऊ. कलियुग के आरंभ के लिए कारणीभूत धर्मांध तथा ईसाईयोंके धर्मप्रसार में हिंसाचार तथा यमयातना एवं दुष्ट प्रवृत्ती के कट्टरपंथियोंका भारत पर होनेवाला परिणाम : अन्य धर्मियोंको काफिर मानकर उनकी हत्या करना, यही जिहादीयोंका ध्येय है। जिस समय अहिंसा के अतिरेक के कारण भारतियोंकी स्थिती विना शस्त्र हुई, उस समय इन दुष्ट जिहादीयोंने भारत पर आक्रमण करना आरंभ किया। उन्होंने भारत के मंदिरं, नालंदा के समान भव्य विद्यापीठोंको नष्ट किया। हिन्दुओंकी हत्या की तथा अधिकांश हिन्दुओंका धर्मपरिवर्तन किया। मनचाहे अत्याचार किए। अतः उनके राज्य में रजपूत स्त्रियोंने जोहार स्वीकार किया। छत्रपति शिवाजी महाराज ने उस समय हिन्दू पदपातशाही निर्माण की, इस लिए हिन्दुओंको आधार प्राप्त हुआ। अंग्रेजोंके राज्य में हिन्दुओंपर अनन्वित अत्याचार किए गए।
धर्मांधोके मतोंके लिए कांग्रेस ने उनकी चापलूसी की; किंतु वहीं अब बहुसंख्यंक हुए हैं। उनकी दुष्ट प्रवृत्ती के कारण राष्ट्र के लिए वे धोखादायक प्रतीत हो रहे हैं; क्योंकि वे आज भी पाकिस्तान के झंडे लहराना, उनकी घोषणाएं देना, पुलिस पर पथराव करना, उद्दंडता से व्यवहार करना, हिंसा करना इस प्रकार की विघातक कृतियां कर रहे हैं; किंतु उन पर किसी भी प्रकार की न्यायालयीन कार्यवाही नहीं होती, इसीलिए वे ऐसा व्यवहार करने का दुस्साहस कर रहे हैं। विभाजन के समय भी पाकिस्तान से हिन्दुस्थान में आते समय लक्षावधी हिन्दुओंकी रेल में ही हत्या की गई; किंतु तत्कालीन पंतप्रधान नेहरू अथवा गांधी ने इस संदर्भ में किसी भी प्रकार की निश्चित कृती नहीं की। तत्पश्चात् भी पाकिस्तान ने भारत पर अनेक बार आक्रमणं किए। उस समय भी हम ने विजय प्राप्त करने के पश्चात् भी जीता हुआ हिस्सा उन्हें लौटाया है। कश्मीर प्रश्न युएन्ओ के हाथ में देने के कारण आज भी वह एक सिरदर्द बना है। वही लाचारी आज भी आरंभ है। बांग्लादेश के ४ करोड हिन्दू भारत में आए; किंतु कश्मीर के ४ लक्ष परागंदा हिन्दुओंको आज भी कश्मीर में स्थान प्राप्त नहीं हुआ है।
– प.पू. परशराम पांडे, सनातन आश्रम, देवद, पनवेल (२८.४.२०१५)
स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात