माघ शुक्ल पक्ष नवमी, कलियुग वर्ष ५११६
‘देश को परायों की दासता से मुक्त करने हेतु अनेक देशभक्त एवं क्रांतिकारियोंने स्वतंत्रता की वेदी पर अपने प्राणों की आहुति चढाई। उन्हें पराये सत्ताधीशोंने हिम (बर्फ) की सिल्ली (सतह) पर नंगा सुलाकर चाबुक लगाना, अंदमान के कारागृह में तेल निकालने के कष्ट देना, इनके समान अमानवीय पीडा पहुंचाई । यह सब सहकर भी निश्चल रहनेवाले उन वीरों की महान स्वतंत्रताभक्ति एवं त्याग के समक्ष हम नतमस्तक हैं तथा हमें उनके प्रति अभिमान भी है।
इन सभी स्वतंत्रतावीरोंके आंदोलन को धर्म का अधिष्ठान एवं साधना की पुष्टि न होने के कारण किसी एक वीर के प्रयास १०० प्रतिशत सफल नहीं हुए, इस सत्य को हमें स्वीकारना होगा।
अधिकांश क्रांतिवीर छल अथवा रक्तपात से पकडे गए । तत्पश्चात उन्हें अनन्वित कष्ट सहने पडे अथवा उनकी हत्या कर दी गई। यदि उन्हें साधना की पुष्टि होती, तो ईश्वर का आशीर्वाद प्राप्त होकर कदाचित उन्हें ऐसी स्थिति का सामना नहीं करना पडता !
छत्रपति शिवाजी महाराज के आंदोलन को धर्म का अधिष्ठान था । वे कुलदेवता के निस्सीम उपासक थे । साथ ही उन्हें अपने गुरु एवं संतों की कृपा का भी साथ था। महाराज को भी कठिन प्रसंगोंका सामना करना पडा; किंतु प्रत्येक प्रसंग में वे ईश्वर की कृपा के कारण मुक्त हुए । अफजलखान के आक्रमण के समय समर्थ रामदासस्वामी ने उन्हें पत्र द्वारा मार्गदर्शन किया था।
आगरा में जब वे औरंगजेब की मृत्यु के चंगुल में फंसे थे, तब उन्हें शंभूदेव ने दृष्टांत देकर युक्ति बताई थी। इस प्रकार उन्होंने प्रत्येक आपत्ति का सामना किया; क्योंकि उन्हें देवता एवं गुरु की कृपा का संरक्षक-कवच प्राप्त था। उनके कार्य को देवता एवं गुरु के आशीर्वाद प्राप्त होने के कारण ही उनके लिए हिन्दवी स्वराज्य संस्थापित करना संभव हुआ।
छत्रपति शिवाजी महाराज के इतिहास से हमें भी प्रेरणा एवं आदर्श ग्रहण करना चाहिए। देश की स्वतंत्रता की लडाई के लिए प्रयास करनेवाले अनेक वीरों ने छत्रपति शिवाजी महाराज के क्षात्रतेज के गुण को अपनाया; किंतु ब्राह्मतेज को नहीं अपनाया। अब हमें यह चूक नहीं करनी है। ब्राह्मतेज, यह गुण अपनाने के लिए संतों के मार्गदर्शनानुसार साधना करना, यही समय की नितांत आवश्यकता/मांग है !
स्वा. सावरकर ने बताया था कि ‘‘हमें वीरगति प्राप्त नहीं करनी है, अपितु विजयी वीर बनना है।’’ छत्रपति शिवाजी महाराज के अनुसार ही ब्राह्मतेज एवं क्षात्रतेज अपनाकर हिन्दू राष्ट्र-स्थापना हेतु लडकर विजयी वीर बनेंगे !’ – (पू.) श्री. संदीप आळशी (२२.६.२०१४)
स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात