माघ शुक्ल पक्ष षष्ठी, कलियुग वर्ष ५११६
‘कुछ’लोगों ने तीन-चार महीनों में जिस ‘हिंदुत्व’ की चर्चा चला रखी है, वह मेरी पहचान नहीं है। मैं उस हिंदुत्व को नहीं जानता। गोडसे पूजा मेरी समझ से बाहर है। मुझे हिंदू होने का गर्व है, लेकिन मैं भोंदू सेक्युलर नहीं हूं। दिव्य मराठी से बातचीत करते हुए प्रसिद्ध उद्योगपति राहुल बजाज ने हिंदुत्व से जुड़े कई मुद्दों पर सिलसिलेवार बात की।
भाजपा के सत्ता में आने और नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद से संघ और भाजपा से जुड़े ‘अन्य संगठनों’ में हिंदुत्व की व्याख्या की होड़ सी मची है। मैं प्रवीण तोगड़िया से मिल चुका हूं। अशोक सिंघल मेरे मित्र हैं। लेकिन इस मंडली की हिंदुत्व को लेकर भूमिका मुझे हमेशा ही अतिरंजित ही लगी है। मैं कट्टर हिंदुत्व का समर्थक नहीं हूं, लेकिन भोंदू सेक्युलर भी नहीं हूं।
कांग्रेस और समाजवादियों ने मुस्लिम और ईसाई वोटों पर नजरें जमा रखी हैं। इन्होंन हमेशा तुष्टिकरण की राजनीति की है। इससे देश का बड़ा नुकसान हुआ है। अल्पसंख्यक मुस्लिम, क्रिश्चियनों के लिए बहुसंख्यक हिंदुओं को तकलीफ क्यों दी जा रही है, यही मेरी समझ में नहीं रहा? अनेक मुस्लिम मेरे बहुत अच्छे मित्र हैं, किंतु ‘सर्वधर्म समभाव’ का अर्थ सभी का भला करना होता है, हिंदुत्व के खिलाफ बोलना नहीं।
‘मेक इन इंडिया’ की जरूरत
बीते २० साल में चीनी वस्तुओं ने बाजार भर दिए हैं। हमारे गणेशजी की मूर्ति तक ‘मेड इन चायना’ होती है। यह सब देखकर शर्म आती है। इस बीच मोदी की ‘मेक इन इंडिया’ की घोषणा स्वागत योग्य है। उच्च दर्जे की देसी वस्तुएं हमारे उद्योगों से निकलेंगी तो ही दोनों में स्पर्धा होगी, होनी भी चाहिए। स्पर्धा करने से पहले देसी और बहुराष्ट्रीय उद्योगों को कॉमन प्लेटफार्म पर लाना होगा। भारतीय वस्तुओं का निर्यात बढ़ेगा तो स्थानीय उत्पादकों का दर्जा भी बढ़ेगा। रोजगार के अवसर बढ़ेंगे। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि कोई वस्तु आयात करने के लिए लगने वाली विदेशी मुद्रा हमें अत्यधिक निर्यात से ही मिलेगी।
मोदी अब तक राइट
संघपरिवार, भाजपा से अनेक लोग बेलगाम बोलते हैं। उधर, मोदी पीएम हैं, लेकिन नाप-तौलकर बोलते हैं, मर्यादा में रहकर। पीएम बनने के बाद उन्होंने ऐसी कोई गलती नहीं की है। ही कोई चुभने वाला या तीखा बयान दिया है।
स्त्रोत : दैनिक भास्कर