भारतकी सर्व क्षेत्रोंमें चिंताजनक स्थिति

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कहते है, भारतके सूचना-तंत्रज्ञान क्षेत्रमें क्रांति हुई है !

ग्रामीण क्षेत्रमें केवल ०.६ प्रतिशत धनिक परिवारोंके पास ही संगणक तथा केवल ६ प्रतिशत परिवारोंके पास ही दूरभाष संच हैं । भारतमें अधिकसे अधिक केवल २ प्रतिशत लोग ही सूचना महाजालका (इंटरनेट) उपयोग करते हैं ।

शिक्षा क्षेत्रमें भारतकी भयानक स्थिति

        विश्वकी तुलनामें ५० प्रतिशत निरक्षर लोग भारतमें हैं । अधिकृत संख्याके अनुसार ५०-६० प्रतिशत बच्चे आंठवी कक्षातक आनेसे पहले ही पाठशाला छोड देते हैं । वर्तमान उपलब्धताकी अपेक्षा ४ लक्ष पाठशालाओं एवं १० गुना अधिक शिक्षकोंकी हमें आवश्यकता है । एक सर्वेक्षणसे यह ध्यानमें आया कि, चौथी कक्षाके ५० प्रतिशत बच्चोंको प्रथम कक्षाके सरल गणित भी करना असंभव हुआ । (दसवी कक्षातक परीक्षा लिए बिना ही विद्यार्थियोंको अगली कक्षामें प्रवेश देनेके शासकीय निर्णयके कारण अब केवल चौथी कक्षाके ही नहीं, तो दसवी कक्षाके बच्चोंको भी प्रथम कक्षाके सरल गणित करना असंभव होगा । – संकलनकर्ता) शासनप्राप्त अधिकृत संख्याके अनुसार ७ वर्ष आयुके उपरांतके ६५.४ प्रतिशत लोग साक्षर हैं ।

१५.७ प्रतिशत साक्षर लोग पढ भी न सकना

        उपर्युक्त जानकारीकी सत्यता जांचने हेतु कर्णावती (अहमदाबाद)के ‘इंडियन इस्टिट्यूट ऑफ मॅनेजमेंट’द्वारा राजस्थान, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश एवं बिहारमें सर्वेक्षण किया गया । पहले उन्होंने शासकीय पद्धतिके अनुसार २० सहस्र लोगोंको प्रश्न पूछे । उनमेंसे ६८.७ प्रतिशत लोग साक्षर निकले । तत्पश्चात उन्होंने कडी जांच कर उत्तरोंका परीक्षण किया, तब अत्यंत आश्चर्यजनक चित्र दिखाई दिया । उन साक्षर लोगोंमेंसे केवल २६ प्रतिशत लोग पढ सकते थे, तो २७ प्रतिशत लोग लगभग पढ सकते थे, अर्थात उनमेंसे अनेकोंको अक्षरोंका उच्चार ऊंचे स्वरमें कर वह शब्द पढना पड रहा था । शेष ४७ प्रतिशत लोग पढ ही नहीं पा रहे थे । ये आंकडे पूरे लोकसंख्याके नहीं, अपितु जो साक्षर घोषित किए गए थे केवल उन्हींसे संबंधित थे ।

भारतकी राष्ट्रीय आयमें महत्त्वपूर्ण अंश माने जानेवाले सूचना-तंत्रज्ञान (आय.टी.) क्षेत्रमें समाविष्ट लोगोंका समाजको कुछ भी लाभ न होना

        ‘इकॉनॉमिस्ट इंटेलिजन्स युनिट’ द्वारा ६४ देशोंका अभ्यास किया गया । उसके अनुसार सूचना-तंत्रज्ञान (आय.टी.) क्षेत्रमें क्रांतिकारी (!) भारत देश विश्वमें ‘आय.टी. कांपिटेटिव्हनेस’के अतंर्गत ४६ वे क्रमांकपर है । इन्फोटेक क्षेत्रका भारतकी राष्ट्रीय आयमें केवल ५-६ प्रतिशत भाग है । उसमें देशके केवल ०.२५ प्रतिशत लोग काम करते हैं । उन्हें मिलनेवाला अधिक वेतन, निरंतर हो रही विदेश यात्राएं, महंगे हॉटेलोंमें रहना इत्यादिके कारण गृह, यात्रा तथा मनोरंजन इत्यादि कुछ क्षेत्रोंमें मांगकी वृद्धि होकर चमकाहट आई होगी, अपितु भारतकी सर्वसाधारण जनताको इस क्षेत्रका अल्पसा भी लाभ नहीं हुआ है ।

विज्ञापनोंपर कुल आयकी तुलनामें ७ गुना व्यय करनेवाले भारतमें संशोधनपर केवल ०.३ प्रतिशतही व्यय होता है !

        रिजर्र्व बैंकके सर्वेक्षणके अनुसार इस ‘नॉलेज इकॉनॉमी’में निजी (प्राईवेट) आस्थापनोंने इ.स. २००३-२००४ में कुल आयके केवल ०.३ प्रतिशत ही संशोधनपर व्यय किया । परंतु विज्ञापनोंपर ७ गुना व्यय किया । अपने निर्मितिक्षेत्र एवं निर्यातक्षेत्रमें भी यंत्रसामग्रीकी आयातका अंश अधिक (संशोधनपर होनेवाले व्ययके ६ गुनासे भी अधिक) है । वास्तविक हमारी ‘नॉलेज इकॉनॉमी’में अधिक संशोधन हुआ है, जिसके कारण अनेक यंत्र तथा वस्तुओेंकी निर्मिति हम करने लगे हैं । फलस्वरूप आयातका न्यून होना आवश्यक था । किंतु वैसा नहीं हुआ । इसके विपरित भारतमें संशोधनपर होनेवाले व्ययकी मात्रा संपूर्ण राष्ट्रीय आयकी तुलनामें न्यून होती ही जा रही है । इ.स. १९८७ में अपनी राष्ट्रीय आयमेंसे संशोधनपर केवल ०.९१ प्रतिशत व्यय हुआ, तो वही व्यय इ.स. १९९८ में ०.८१ प्रतिशततक नीचे गिर गया । इसमेंसे भी ८० प्रतिशत भाग सैनिकी अथवा अवकाश संशोधनपर व्यय हुआ । इतना होते हुए भी भारत विदेशसे भारी मात्रामें लष्करी सामग्रीr खरीदता ही है ।

भारतमें संशोधन तथा उसकी श्रेणीका परिमाण दर्शानेवाली समाचारपत्रिकांए केवल ०.३ प्रतिशत

        किसी भी देशमें चल रहे संशोधन एवं उसकी श्रेणीका परिमाण अर्थात ‘सायन्स सायटेशन इंडेक्स’ । इ.स. १९८० में भारतकी ४० वैज्ञानिक समाचारपत्रिकांए इस विषयसूचिमें थी । इ.स. २००४ में यह संख्या केवल १० हुई, अर्थात विश्वकी सूचिकी तुलनामें संपूर्ण समाचार पत्रिकाओंमेंसे केवल ०.३ प्रतिशत समाचारपत्रिका भारतसे प्रकाशित होती है । इ.स. १९८० में इस सूचिमें (इंडेक्समें) भारतके १५ सहस्त्र वैज्ञानिक प्रबंध थे; अपितु दो ही दशकोंमें यह संख्या १२ सहस्त्रपर आई, अर्थात अवनति हो गई । (इसी कालावधिमें चीनके प्रबंधोंकी संख्या १ सहस्त्रसे २२ सहस्त्रोंपर गई) इस संदर्भमें भारत देश १४९ देशोंमें ११९ वे क्रमांकपर है ।

भारतमें १० लक्ष लोगोंके पिछे केवल १२० संशोधक !

        युनायटेड नेशन्सके इ.स. २००५ के ‘ह्यूमन डेव्हलपमेंट रिपोर्ट’के अनुसार प्रति १० लक्ष लोगोंके पिछे अमरीकामें ४ सहस्र ५२६ संशोधक हैं, चीनमें ६३३, तो भारतमें केवल १२०!  इसी समय प्रति १० लक्ष लोगोंके पिछे अमरीकामें जिस समय ३०२ पेटंटस् दी गई, उसी समय चीनमें ५, तो भारतमें ० पेटंटस् प्राप्त हुई थी ! ऐसी हमारी ‘नॉलेज इकॉनॉमी’ है ।

भारी मात्रामें निरक्षरताके होते हुए भारतमें ‘ज्ञान अर्थव्यवस्था’ यह शब्द कहना ही हास्यास्पद

        किसी एक देशमें संपूर्ण साक्षरता हो, वाचनसंस्कृति सामान्य लागोंमें अंकित हुई हो, लोगोंमें अनेक स्तरोंपर, अनेक बातोंमें वाद-संवाद होकर निर्णय होते हो, विज्ञानमें भारी मात्रामें मूलभूत संशोधन हो रहा हो, प्रत्यक्ष निर्मिति एवं अर्थव्यवस्थामें अपने संशोधन, अपनी ओरसे विकसित तंत्रज्ञान तथा अपने ज्ञानका अधिक मात्रामें अंतर्भाव हो एवं शासकीय यंत्रणामें (न्यायालय, भूमि पंजीकरण, भूमिकी जांच एवं आंकणीr, जी.आय.एस्) अर्थात ई-गव्हर्नन्सके अंतर्गत इन्फोटेकका अधिक उचित प्रकारसे उपयोग होता हो, तो किसी भी देशकों ‘नॉलेज इकॉनॉमी’ कहना उचित होगा; परंतु भारी मात्रामें निरक्षरता होते हुए देशमें जहां ८० प्रतिशतसे अधिक लोगोंतक समाचारपत्रिका नहीं पहुंचती है, ऐसे देशमें केवल ०.२५ प्रतिशत लोगोंद्वारा किसी दूसरेके पुराने प्रोग्रॅम्स टेस्ट अथवा मेन्टेन करनेसे अथवा कॉल सेंटरमें बैठकर स्क्रीनकी ओर देखकर अमरीकन अ‍ॅक्सेंटमें उत्तर देनेसे अपने आपको ज्ञान अर्थव्यवस्था कहलवाने जैसी हास्यास्पद बात अन्य कोई नहीं हैं !’

-श्री. अच्युत गोडबोले (प्रज्ञालोक, १८.४.२०११)

स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात

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