इस आतंकवाद का रंग कौनसा है ?

शहरी नक्सली फादर स्टैन स्वामी की मृत्यु एवं उस परिप्रेक्ष्य में उठे प्रश्‍नों के संदर्भ में विश्‍लेषण करनेवाला चिंतनात्मक लेख !

फादर स्टैन स्वामी की मृत्यु के उपरांत का शोक, रोना और आक्रोश सुनकर मन दहल गया । आजकल चलितभाष पर ऐसे समाचार तुरंत प्रसारित होते हैं । मैने जब यह समाचार सुना, तभी मैं सुन्न हुआ । वह इसलिए नहीं कि वह व्यक्ति चल बसा; क्योंकि कारागार में कई कैदी दयनीय स्थिति में मर जाते हैं और बीमारी भोगते हैं । स्टैन स्वामी को तो उसके अधिकारवाला ईसाई चिकित्सालय मिला था । प्रश्‍न यह था कि अब इसका लाभ कौन और कैसे उठाएगा ? हमारे यहां एक कहावत है कि ‘बुढिया मरने का दुख नहीं; परंतु काल उन्मत्त हो जाता है’ उद्दंडता का आरोप स्वीकार कर कहना हो, तो दुख इस प्रकार का अर्थात बुढिया के मरने का नहीं था, अपितु क्या इससे नक्सलवाद और बढेगा ?, इसका था और हुआ भी वैसा ही है ।

द प्रिंट, क्विंट एवं इंडियन एक्स्प्रेस के सभी जालस्थलों से लेकर सभी ने आक्रोश किया, कर रहे हैं और आगे भी करेंगे । यह सरकारी हत्या है; यह बोलकर किराए का रोना निकाला जा रहा है और होगा भी । प्रश्‍न यह है कि इस शीर्ष को पहुंचे ध्वनिप्रदूषण में अनेक प्रश्‍न मूलतः अनुत्तरित रखे जा रहे हैं । हमारे द्वारा उन प्रश्‍नों के भूल जाने से पूर्व और गतानुगतिकों की पंक्ति में एक अंधविश्‍वासी के रूप में भर्ती होने से पूर्व उन्हें रखा जाए, इसलिए इस लेख का प्रयोजन !

जेजुइट पंथ की दीक्षा

फादर स्टैन स्वामी तमिलनाडू में कहीं पर जन्मा हुआ व्यक्ति ! उसका जन्म ईसाई परिवार हुआ अथवा नहीं, इसकी कहीं जानकारी नहीं मिलती । २०वें वर्ष की आयु में जेजुइट पंथ की दीक्षा लेकर वे क्रियाशील बने । इस पंथ की दीक्षा क्या होती है, यह हमें ज्ञात नहीं है । हम श्रद्धालु और सर्वधर्मसमभाव माननेवाले; परंतु इस धर्म की दीक्षा लेते समय लेनी आवश्यक प्रतिज्ञा को संगणकीय जाल पर खोजिए । शांत चित्त से उसे संपूर्ण पढिए । उसे पढने पर उसकी गंभीरता ध्यान में आएगी । आस्ट्रेलिया के राष्ट्रीय ग्रंथालय के जालस्थल पर यह प्रतिज्ञा उपलब्ध है । (https://nla.gov.au/nla.obj-2478231803/view?partId=nla.obj-2478232434#page/n0/mode/1up) सुविधा के लिए कुछ पंक्तियों का अनुवाद आगे दिया गया है । अधिक जानकारी हेतु मूल प्रतिज्ञा पढें ।

१. चर्च के हित के लिए स्वयं का धर्म एवं पंथ को पाखंड समझकर उसे धिक्कार देना : कोई भी पाखंडी राजा, राजकुमार अथवा राज्य, प्रोटेस्टेंट अथवा उदारमतवादी; साथ ही उनके द्वारा बनाए गए कानूनों के प्रति मेरी निष्ठा को मैं इससे आगे त्याग रहा हूं । इसके साथ मैं यह घोषणा करता हूं कि इसके आगे मैं इंग्लैंड एवं स्कॉटलैंड के चर्च, साथ ही कैलवेनिस्ट (जॉन कैल्विन द्वारा तैयार की गई प्रोटेस्टेंट पंथ की एक विचारधारा) हुगुएनॉट (फ्रेंच प्रोटेस्टेंट) का भी मैं धिक्कार करूंगा । मैं यह प्रतिज्ञा लेता हूं कि मदर चर्च के हित में होने से मैं मेरे धर्म एवं पंथ को पाखंड समझकर उनका धिक्कार करूंगा । इसके साथ ही चर्च के सभी प्रतिनिधियों एवं समुपदेशकों के संदर्भ में मैं प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से मैं शब्द, लेखन अथवा अन्य किसी भी संदर्भ में किसी भी स्थिति में गोपनीयता बनाए रखूंगा ।

२. आज्ञा मिलने पर पाखंडी लोगों के साथ क्रूर एवं निर्दयी लोगों के विरुद्ध कडे कदम उठाने के लिए भी तैयार होना : इसके आगे मैं प्रतिज्ञा लेते हुए यह घोषणा करता हूं कि जब-जब मुझे अवसर मिलेगा, तब-तब मैं गुप्तरूप से अथवा खुलेआम पाखंडी लोग, प्रोटेस्टेंट, उदारमतवादी आदि के विरोध में मुझे जो भी आज्ञा मिलेगी, उसके अनुसार उनके विरुद्ध निर्दयता के साथ युद्ध करूंगा और उनके जडों को उखाड फेकूंगा । मैं पृथ्वी से उनका निर्मूलन करूंगा । मैं इसमें लिंग, आयु अथवा लोगों की व्यथाओं की विचार में न लेकर किसी को क्षमा नहीं करूंगा । मैं ऐसे दुष्ट लोगों को जलाऊंगा, उन्हें उबलते पानी में फेकूंगा, उनकी खाल उधेड दूंगा, उनका गला दबाऊंगा अथवा उन्हें भूमि में जीवित ही दफना दूंगा । पाखंडियों का समुदाय संपूर्णरूप से नष्ट हो; इसके लिए मैं उनकी महिलाओं के पेट एवं गर्भाशय बाहर निकालूंगा । उनके शिशुओं को दीवार पर पटककर उनके प्राण हरण करूंगा । यदि इसे खुलेआम करना संभव नहीं होगा, तो मैं इसे गोपनीय पद्धति से करूंगा । पोपका संदेशवाहक जैसा बताएगा, उसके अनुसार मैं करूंगा । इसके लिए मैं मेरा जीवन, मेरी आत्मा और आधिभौतिक शक्तियों को समर्पित कर रहा हूं तथा मैं मुझे मिले खंजर से मैं मेरा रक्त निकालकर उसे लिखूंगा । यदि मैं इसमें चूक गया अथवा मेरे निश्‍चय में मैं न्यून पडा, तो मेरे भाई पोप की सेना मेरे हाथ-पैर तोड दे, मेरा गला और कान काटें, मेरा पेट फाड दें, मुझे जला दे अथवा इस पृथ्वी पर मुझे जिस प्रकार से मारना संभव हो, उस प्रकार से मारे । नरक में मेरी आत्मा को राक्षसों द्वारा सदैव पीडा मिलती रहे ।

१. इक्का, दुक्का और तिक्का !

१ अ. हिंसा एवं असुरी बल का उपयोग कर धर्मांतरण करानेवाला फ्रान्सिस जेवियर ! : भारत में जेजुएट शब्द को बोलते ही दो नाम सामने आते हैं । पहला है फ्रान्सिस जेवियर ! उसने गोवा में हिन्दुओं के धर्मांतरण के लिए हिंसा और असुरी बल का प्रयोग कर देखा । उसने हिन्दुओं का कैसे और कितना छल किया और उसके प्रति के भय के चलते कितने हिन्दू परिवार मारे मारे फिरते रहे, कितने मंदिर गिराए गए; इसकी करुण कहानियां आपने इससे पहले पढी ही होंगी !

१ आ. जेजुएट पंथ के रॉबर्ट दे नोबिली द्वारा धोखे से हिन्दुओं का धर्मांतरण किया जाना और उसके द्वारा ईसाई पंथ हिन्दू धर्म का ही एक उपपंथ है, ऐसा भ्रम फैलाया जाना : इसके उपरांत का; परंतु इतिहास में लगभग तुरंत ही आनेवाले काल का नाम है रॉबर्ट दे नोबिली का ! बल और हिंसा के मार्ग से हिन्दू धर्मांतरित नहीं होते, यह ध्यान में आने पर उन्हें धोखे से धर्मांतरित करने का प्रयास करनेवाला रॉबर्ट दे नोबिली भी जेजुएट ही था । वह स्वयं को रोम से आया हुआ ब्राह्मण कहलवाता था । उसका यह कहना था कि रोम के ब्राह्मण ब्रह्माजी के वंशज हैं । वह लोगों को ऐसा बताकर हिन्दुओं की मंदिरों की भांति ही मंदिर बनाकर उसमें येशू की मूर्तियां रखकर आरतियों और भजनों की तर्ज पर येशू की आरतियां एवं भजनों की रचना करता था । इस प्रकार से ईसाई पंथ हिन्दू धर्म का ही एक उपपंथ है, यह दिखाकर हिन्दुओं का धर्मांतरण करनेवाला रॉबर्ट नोबिली तो फ्रान्सिस जेवियर का ही दूसरा रूप नहीं था, तो और क्या था ?

१ इ. फादर स्टैन स्वामी को प्रधानमंत्री की हत्या का षड्यंत्र रचने के आरोप में गिरफ्तार कर भी चर्च द्वारा कोई भी भूमिका घोषित न करना संदेहजनक ! : फादर स्टैन स्वामी पर विचार करते समय हमें इस परंपरार को नहीं भूल सकते । मूलतः किसी फादर को देश के प्रधानमंत्री की हत्या का षड्यंत्र रचने के आरोप में गिरफ्तार किया जाना, तो चर्च के लिए लज्जाप्रद है; परंतु स्टैन स्वामी की गिरफ्तारी के उपरांत चर्च ने अपनी कोई भी ठोस भूमिका घोषित नहीं की । चर्च ने स्टैन स्वामी का समर्थन भी नहीं किया अथवा स्टैन स्वामी के दोषी होने की भी भूमिका नहीं ली । केवल उसकी आयु और बीमारियों की चर्चा होती रही ।

२. स्टैन स्वामी की गिरफ्तारी के संदर्भ में ‘तेरी भी चूप, मेरी भी चूप’ की भूमिका ली जाना, तो दूसरी ओर हिन्दुत्वनिष्ठों के प्रति किसी के मन में दयाभाव जागृत न होकर उनके विरुद्ध दबाव की भूमिका अपनाई जाना, तो दोहरी नीति दर्शानेवाली घटनाएं ! : हिन्दुत्वनिष्ठों के संदर्भ में यदि ऐसी कुछ घटना हुई, तो उनके विरुद्ध भूमिका लेने हेतु दबाव बनाया जाता है, उदा.

२ अ. गोधरा में कारसेवकों को जिंदा जलाए जाने के उपरांत जो प्रतिक्रियाएं उभरकर आईं, उस संदर्भ में अटलजी (अटलबिहारी वाजपेयी) ने नरेंद्र मोदी का समर्थन करने के स्थान पर उन्हें टोंका था ।

२. पब में हुई हानि के प्रकरण में केवल श्रीराम सेना के प्रमुख प्रमोद मुतालिक को ही उत्तरदायी बताया जाना : ‘कर्नाटक के मंगलुरू के एक पब में श्रीराम सेना के कुछ कार्यकर्ता घुसे और उन्होंने पब में नाचनेवाली लडकियों को बाहर निकालकर वहां तोडफोड की थी, यह उनपर आरोप था । तब स्वयं को महिलाओं के तारणहार कहलानेवाले कुछ मामुली लोगों ने ने यह कृत्य श्रीराम सेना ने ही किया है, ऐसा दृढतापूर्वक बताकर श्रीराम सेना के प्रमुख श्री. प्रमोद मुतालिक को गुलाबी रंग के अंतर्वस्त्र भेजने का मूर्खतापूर्ण अभियान चलया था । आज हिन्दुत्व के पक्ष में बोलनेवाले अर्णब गोस्वामी ने उस समय न्यायालय में अभियोग आरंभ होने से पूर्व ही जैसा मुंह में आएगा, वैसे बोले थे । श्री. प्रमोद मुतालिक ने भी तब यह खुली भूमिका लेते हुए कहा था, ‘‘मैं और मेरे कार्यकर्ता यदि इसमें दोषी हों और यह न्यायालय में प्रमाणित हुआ, तो मुझे फांसी पर लटकाईए !’’ वास्तव में इसी आक्रोशी समाज ने उससे पूर्व ही उन्हें यह दंड दिया था ।

२ इ. चर्च का भोलापन क्यों ? : फादर स्टैन स्वामी प्रकरण में चर्च द्वारा ऐसी कोई भी भूमिका लिया जाना दिखाई नहीं देता । ‘हमारे पादरी को यदि ऐसे अपराध के प्रकरण में गिरफ्तार किया जा रहा हो और उसने यह अपराध किया हो, तो उसे दंडित किया जाना चाहिए’, यह भूमिका ही दिखाई नहीं पडती । केरल की जिस नन से समाज के सामने चर्च में हो रही यौनशोषण की घटनाओं को समाज के सामने उजागर किया, उस नन को चर्च से निकाल देनेवाला चर्च यहां भोला बनकर शांत क्यों है ? क्या पोप इस संदर्भ में कुछ बोलनेवाले हैं ? वास्तव में उन्हें एक जेजुइट फादर की गिरफ्तारी के उपरांत तुरंत अपनी भूमिका स्पष्ट करनी चाहिए थी ।

३. पहले ‘हरे’, उसके पश्‍चात ‘भगवा’ और अब इस आतंकवाद का रंग कौनसा है ?

वास्तव में देखा जाए, तो फादर स्टैन स्वामी की गिरफ्तारी के उपरांत चर्च की ओर से इस प्रकार का कोई वक्तव्य दिया हुआ सामने नहीं आया । कैथॉलिक कॉन्फरन्स ऑफ इंडिया’ संस्था की ओर आर्च बिशप मचाडो द्वारा प्रकाशित प्रेसनोट में केवल ‘ऐसे कैसे उन्हें गिरफ्तार किया ? इससे उन्हें कष्ट पहुंचेगा’ बस इतने तक ही सूत्र रखा गया है । उनकी मृत्यु के उपरांत भी उनकी प्रतिक्रिया गोलमटोल ही है । यह प्रतिक्रिया ‘प्रत्येक व्यक्ति कानूनन दोषी प्रमाणित होनेतक निर्दोष ही होता है । हम स्टैन की निर्दोषता प्रमाणित होने की प्रतीक्षा में थे ।’ इतनेतक ही सीमित है । ऐसा कहना क्या चर्च स्टैन स्वामी का समर्थन कर रहा है, यह अर्थ निकाला जाए ? यदि ऐसा है, तो आतंकवाद का रंग पहले हरा था, उसके पश्‍चात उसे भगवा रंग देने का प्रयास किया गया । अब इसे कौनसा रंग देना चाहिए ? इसका उत्तर चर्च देगा क्या ?

४. सरकारी हत्या; परंतु किस सरकार के द्वारा ?

पहले महाराष्ट्र का अन्वेषण विभाग और उसके उपरांत राष्ट्रीय अन्वेषण विभाग ने स्टैन स्वामी की जांच की । उन्होंने उसके घर से आपत्तिजनक सामग्री जब्त की और उसके उपरांत आवश्यकता थी, इसलिए उन्हें गिरफ्तार किया । समाचारों से यह भी दिखाई देता है कि अक्टूबर २०२० में झारखंड राज्य से गिरफ्तार करने के उपरांत उन्हें अपनी हिरासत में अधिक समयतक न रखकर शीघ्र ही न्यायालयीन हिरासत में भेजा । गिरफ्तारी के उपरांत के समयतक अर्थात २९ मई २०२१ तक वे राज्य शासन के नियंत्रणवाले कारागार में थे । उसके उपरांत उन्हें एक ईसाई चिकित्सालय में भर्ती किया गया । वहां से लेकर मृत्युतक वे इसी चिकित्सालय में भर्ती थे । वे जमानत पर नहीं छूटे थे । इसलिए वहां पर नियुक्त पुलिसकर्मी न राष्ट्रीय अन्वेषण विभाग के थे, न भाजपा के और न ही संघ के ! वे तो स्थानीय अथवा कारागार में नियुक्त पुलिसकर्मी थे । ऐसी स्थिति में कैदी से मिलने पर प्रतिबंध होता है; क्योंकि ऐसा व्यक्ति भले ही चिकित्सालय में ही भर्ती क्यों न हो; परंतु वह एक कैदी ही होता है । वह उसका दंड भुगत रहा होता है ।

५. क्या वहां वास्तव में पुलिसकर्मियों की नियुक्ति थी ? तो दगा कहां हुआ ?

जेवियर डायस स्टैन स्वामी का एक पादरी मित्र था, जो ट्विटर पर बहुत ही सक्रिय और केंद्र सरकार की तीखी आलोचना करनेवाला ! उसके खाते से २० मई २०२१ को रात २.१० बजे एक ट्वीट किया गया था । उनमें से एक छायाचित्र में (संभवतः) श्रीमान डायस स्टैन स्वामी की बाजू में खडे हैं ।

स्टैन स्वामी चिकित्सालय में पलंग पर सोए हुए हैं और श्रीमान डायस उनकी बाजू में खडे हैं । तो यह छायाचित्र किसने खींचा होगा ? संभवतः पुलिसकर्मी ने ? वास्तव में उसे (पुलिसकर्मी को) किसी को पास में घूमने नहीं देना चाहिए था । तो क्या ऐसा करना (छायाचित्र खींचना) चलता था ? (https://scroll.in/latest/996170/activist-stan-swamy-tests-positive-for-coronavirus-after-being-moved

Leave a Comment

Notice : The source URLs cited in the news/article might be only valid on the date the news/article was published. Most of them may become invalid from a day to a few months later. When a URL fails to work, you may go to the top level of the sources website and search for the news/article.

Disclaimer : The news/article published are collected from various sources and responsibility of news/article lies solely on the source itself. Hindu Janajagruti Samiti (HJS) or its website is not in anyway connected nor it is responsible for the news/article content presented here. ​Opinions expressed in this article are the authors personal opinions. Information, facts or opinions shared by the Author do not reflect the views of HJS and HJS is not responsible or liable for the same. The Author is responsible for accuracy, completeness, suitability and validity of any information in this article. ​