रायपुर ( छत्तीसगढ़ ) : छत्तीसगढ़ के सुकमा में माओवादी हमले में शहीद जवानों की वर्दी कचरे के ढ़ेर में फेंके जाने के बाद एक और खुलासा हुआ है। बताया जा रहा है कि माओवादी हमले में घायल सीआरपीएफ के एक कॉन्सटेबल के शरीर से सात घंटे तक खून बहने के बाद उसकी मौत हुई थी।
हमले के बाद घायल जवान नौ किलोमीटर की दूरी घिसटते हुए चल कर तय करने के बाद आधार शिविर पहुंचा, जहां पहुंचने के बाद उसकी मौत हो गई। इस घटना के बाद नक्सली हमले रोकने और नक्सल विरोधी अभियान में घायलों को बचाने के दावे पर सवाल उठने लगे हैं।
आपको बता दें छत्तीसगढ के सुकमा जिले में सीआरपीएफ जवानों के गश्ती दल पर सोमवार को नक्सलियों द्वारा घात लगाकर किए गए हमले में १३ सीआरपीएफ कर्मियों की मौत हो गई थी। २६ वर्षीय कॉन्सटेबल दीपक कुमार की उस रात मौत के बाद मरने वालों की संख्या बढ़कर १४ हो गई।
नक्सलियों के इस खौफनाक हमले के तीन दिन बीत जाने के बाद इस बात का खुलासा हुआ है कि जम्मू कश्मीर के सांबा के रहने वाले दीपक कुमार गंभीर रूप से घायल हुए थे, लेकिन उचित इलाज नहीं मिलने के कारण उनकी मौत हो गई।
सूत्रों ने बताया कि कॉन्सटेबल दीपक कुमार को बेहतर इलाज की जरूरत थी और चिंतागुफा शिविर के चिकित्सक कुछ घंटे तक ही उनकी मदद कर सके। उनके साथियों ने उन्हें मरते देखा।’ कुमार की रात ११ बजे के करीब मृत्यु हो गई।
इससे पहले इस नक्सली हमले में शहीद जवानों की वर्दी कचरें में फेंकने का मामला सामने आया था। जिसके बाद इस मामले पर संज्ञान लेते हुए केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने कहा था कि जवानों की वर्दी के बारे में सूचना मिली है और इस बारे में उन्होंने छत्तीसगढ़ के सीएम से बात की है। राजनाथ से आश्वासन दिया कि जो भी इसके लिए दोषी होगा, उस पर कार्रवाई की जाएगी।
स्त्रोत : दैनिक जागरण