इतिहास को कला स्वरूप में प्रस्तुतिकरण का प्रयास करेंगे, तो वह एक विकृति बन जाती है !

इतिहास तो इतिहास ही होता है । इस इतिहास का प्रस्तुतिकरण ‘जैसे का वैसा’ अर्थात जैसा घटित हुआ हो, वैसे ही करना अनिवार्य होता है । यदि इतिहास को बदलने का प्रयास किया जाए, तो वह एक विकृति बन जाती है ।

१. इतिहास जनसंस्कृति की वास्तविकता होने से उसको यदि कला के नाम पर परिवर्तित कर दिया जाए, तो वह काल को स्वीकार नहीं होगा !

इतिहास प्रत्यक्ष वास्तविकता होती है । इतिहास जनसंस्कृति की वास्तविक जीवनगाथा है । यदि कला के नाम पर उसे तोडा-मरोडा गया, तो वह काल को स्वीकार नहीं होता । इसका कारण यह है कि काल ही इतिहास का प्रत्यक्ष साक्षी है । कला के नाम पर आप यदि इतिहास का बवंडर बनाने का प्रयत्न करेंगे, तो आपको निश्‍चितरूप से समाज के विरोध का सामना करना पडेगा ।

२. मनमाने ढंग से इतिहास का चित्रीकरण अर्थात समाजमन पर आघात अथवा देश की राष्ट्रीयता को क्षति !

कुछ लोगों ने चलचित्र को मोहक ढंग से कलास्वरूप में प्रस्तुत कर, इतिहास का विकृतिकरण मान्य नहीं किया । यदि आप इतिहास को एक ओर रखने का प्रयास करते हैं, तो समाजमन को उद्बोधक सिद्ध होनेवाली वास्तविकता एक भयानक विकृति बनकर समाजमन पर अंकित होती है । इतिहास का मनमाने ढंग से चित्रीकरण एक न एक दिन समाजमनपर अवश्य आघात करती है । उसके कारण देश की राष्ट्रीयता को भी क्षति पहुंचती है । वास्तव में यह एक अपराध ही है ।

३. इतिहास को अतीत के समष्टि प्रारब्धभोग होते हैं, तो कला के लिए सदैव वर्तमान ही होता है; इसलिए इन दोनों की तुलना न करें !

इतिहास कभी कला नहीं बन सकता । इतिहास को अतीत के कर्मभोग लागू होते हैं, साथ ही अतीत का समष्टि प्रारब्ध भी होता है; परंतु कला के लिए सदैव वर्तमान होता है । जो ईश्‍वरप्राप्ति की दिशा में ले जाती है, वही वास्तविक कला होती है । कला को इतिहास बनाने का प्रयास न करें अथवा इतिहास को भी कला न बनाएं । इन दोनों की तुलना संभव ही नहीं ।

४. इतिहास के अतीत को आप यदि कला के नाम पर समाजमन का भविष्य बनाने की दृष्टि से प्रयत्न करेंगे, तोे वह कैसे संभव होगा ?

समाजमन जिसका अनुभव ले चुका होता है, वह है इतिहास । जबकि कला, समाजमन को अनुभव करने के लिए होती है । इसलिए आप इतिहास के अतीत को कला के नाम पर समाजमन का भविष्य बनाने का प्रयास करेंगे, तो वह कैसे संभव होगा ? कला को सौंदर्य के नामपर अलग-अलग दृष्टि से देखा जा सकता है; परंतु इतिहास का उसके संपूर्ण वास्तव के साथ ही स्वीकारना पडता है, यह वास्तविकता भूला देंगे तो कैसे चलेगा ?

५. इतिहास से मनमानी करोगे, तो वह काल के साथ खिलवाड करने समान होगा और काल इसका दंड अवश्य देगा ! इसलिए सावधान हो जाएं !

इतिहास का प्रस्तुतिकरण जैसे घटित हुआ हो, ठीक वैसे ही होना चाहिए । उसको कला का मोहक रूप देकर, इतिहास के साथ मनमानी करेंगे तो वह काल के साथ खिलवाड होगा । ऐसा दु:साहस न करें । काल को यह कदापि स्वीकार नहीं होगा । हममें काल के विरोध का सामना करने की शक्ति नहीं है । काल द्वारा दिया जानेवाला दंड भयानक होता है । अत: सावधान हो जाएं !

– (पू.) श्रीमती अंजली गाडगीळ, गोवा