अक्षय्य तृतीया एवं उसे मनाने का शास्त्रीय आधार

अक्षय्य तृतीया के दिन ब्रह्मा एवं श्रीविष्णु इन दो देवताओं का सम्मिलित तत्त्व पृथ्वीपर आता है । ऐसे पवित्र दिनपर किए गए पूजा-पाठ, होम-हवन, नामजप, दान, पितृतर्पण इत्यादि का लाभ भी अत्यधिक मिलता है । Read more »

अक्षय तृतीयाके दिनका महत्त्व

अक्षय्य तृतीयाके दिन पितरोंके लिए आमान्न अर्थात दान दिए जानेयोग्य कच्चा अन्न, उदककुंभ; अर्थात जल भरा कलश, खसका पंखा, छाता, पादत्राण एवं जुते-चप्पल, इन वस्तुओंका दान करनेके लिए पुराणोंमें बताया है । Read more »

शांतिविधी

वृद्धावस्थामें इंद्रियां अकार्यक्षम होने लगती हैं, उदा. कम सुनाई देना, कम दिखाई देना इत्यादि । देवताओंकी कृपासे इन व्याधियोंका परिहार हो एवं शेष आयु सुखपूर्वक बीते, इस हेतु शास्त्रके अनुसार ५० वर्षसे १०० वर्षकी आयुतक प्रत्येक ५ वर्षोपरांत शांतिविधि करनी चाहिए |
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विनाशकारी पटाखोंपर प्रतिबंध लगाएं !

अमावास्याका अंधेरा कान फाडनेवाले पटाखोंके कारण दूर नहीं होता; अपितु आंखोंके समक्ष जुगनूके समान चमककर सर्वत्र गहराता हुआ अंधकार होनेका ही भ्रम होता है । Read more »

अतृप्त पूर्वजोंद्वारा होनेवाले कष्टोंके कारण तथा उसपर उपाय

पूर्वज स्वयं अत्यंत कष्ट कर भूमि, घर, संपत्ति आदि अर्जित करते हैं । उनकी मृत्युके पश्चात उनकी वह संपत्ति उनके परिजनोंको मिलती है । परिजन यदि उस संपत्तिका विनियोग उचित ढंगसे न कर, अपव्यय करते हों, तो पूर्वजोंको क्रोध आता है । परिणामस्वरूप वे अपने परिजनोंको कष्ट देते हैं । Read more »

दत्तात्रेयके नामजपद्वारा पूर्वजोंके कष्टोंसे रक्षण कैसे होता है ?

कलियुगमें अधिकांश लोग साधना नहीं करते, अतः वे मायामें फंसे रहते हैं । इसलिए मृत्युके उपरांत ऐसे लोगोंकी लिंगदेह अतृप्त रहती है । ऐसी अतृप्त लिंगदेह मर्त्यलोकमें फंस जाती है । (मर्त्यलोक, भूलोक एवं भुवलोकके बीचमें है ।) मर्त्यलोकमें फंसे पूर्वजोंको दत्तात्रेयके नामजपसे गति मिलती है; वे अपने कर्मानुसार आगेके लोककी ओर अग्रसर होते हैं । अतः स्वाभाविक ही उनसे संभावित कष्ट घट जाते हैं । Read more »