हमें तिथि के अनुसार जन्मदिन क्यों मनाना चाहिए ?

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१. तिथि के अनुसार जन्मदिन मनाने का आध्यात्मिक अर्थ

        ‘जन्मदिन मनाना, अर्थात आगामी वर्ष में पदार्पण करते हुए पिछले एक वर्ष में ईश्वरद्वारा साधना हेतु दिए गए अवसर के लिए कृतज्ञता व्यक्त कर, भविष्य में भी ऐसी ही कृपादृष्टि बनाए रखने हेतु ईश्वर से प्रार्थना ।’ – पूजनीया (श्रीमती) अंजली गाडगीळ

        जन्मदिन अर्थात जीव की आध्यात्मिक उन्नति के मूल्यांकन का दिन : ‘जन्मदिन अर्थात जीव की आध्यात्मिक दृष्टि से उन्नति । जीव पर किए गए संस्कार उसकी सूक्ष्मदेह पर अंकित हुए हैं अथवा नहीं’, इसका ब्यौरा लेने का दिन अर्थात जन्मदिन । आध्यात्मिक उन्नति होने पर ही वह वास्तविक जन्मदिन सिद्ध होता है । – कु. मधुरा भोसले

        जन्मदिन अर्थात चैतन्य ग्रहण करने की क्षमता को वृद्धिंगत करने का दिन : ‘जन्मदिन अर्थात देवताओं के आवाहनात्मक आशीर्वाद से प्राप्त तरंगोंद्वारा जीव की चैतन्य ग्रहण करने की क्षमता में वृद्धि करना । इस चैतन्यात्मक प्रक्रिया से सात्त्विक बने बाह्य वायुमंडल हेतु पूरक बनकर जीव आंतरिक स्थिरता प्राप्त करता है ।’- पूजनीया (श्रीमती) अंजली गाडगीळ

वीडियो : हिन्दू पद्धति अनुसार जन्मदिन कैसा मनाएं ?

२. हिन्दू पंचांग के अनुसार जन्मदिन का इतिहास एवं महत्त्व

२ अ. सत्ययुग के जीवों का जन्मदिन

        सत्ययुग में जीव का प्रथम जन्मदिन मनाते समय उन्नत पुरुषोंद्वारा अव्यक्त संकल्प और जीव के लिए आवश्यक कुंडलिनी चक्र पर अक्षत डालकर, चक्र को स्पर्श कर अथवा दृष्टिक्षेप से कुंडलिनी की आगामी यात्रा का प्रारंभ किया जाना : ‘कोई भी जीव जन्म लेते समय पूर्व जन्म का आध्यात्मिक स्तर साथ लेकर आता है । उसके अनुसार उसकी कुंडलिनी का आवश्यक चक्र जागृत होता है अथवा उस चक्रतक पहुंचकर उसकी कुंडलिनी की यात्रा रुक जाती है । सत्य, त्रेता एवं द्वापर युग में जीव के प्रथम जन्मदिन पर आध्यात्मिक दृष्टि से उन्नत पुरुष आशीर्वाद देने आते थे अथवा उनके आशीर्वाद प्राप्त करने हेतु उस जीव को उन्नत पुरुषों के पास ले जाते थे । उन्नत पुरुष उस जीव की दीप-आरती कर, उसके लिए अव्यक्त संकल्प कर, उसके शरीर के विविध अवयवों पर अक्षत डालकर उस स्थान का चक्र जागृत करते थे । अपने हाथ की उंगलियों में अक्षत लेकर, जिस चक्रतक जीव की उन्नति हो गई हो, उसके अगले चक्र को उंगलियों से स्पर्श करते थे । इससे जीव की कुंडलिनी की आगामी यात्रा आरंभ होती थी । ७५³ प्रतिशत से अधिक आध्यात्मिक स्तर के उन्नत ³ को किसी भी जीव की ओर देखकर ज्ञात होता था कि उसकी आध्यात्मिक उन्नति किस चक्रतक हुई है । इसलिए उनकेद्वारा उस चक्र पर दृष्टिक्षेप से ही उस जीव की उन्नति होती थी । – कु. मधुरा भोसले

२ आ. त्रेता एवं द्वापरयुग के जीवों का जन्मदिवस

        जीव के पूर्ण वर्ष की आध्यात्मिक उन्नति का ब्यौरा लेकर उन्नत पुरुषों का उसे आशीर्वाद देना : ‘सत्ययुग में जीव का आध्यात्मिक स्तर साधारणतः ६० प्रतिशत होता था । जीव को ज्ञात होता था कि उसकी कुंडलिनी की यात्रा कहांतक हो चुकी है । त्रेतायुग में भी कुछ जीवों को यह जानकारी रहती थी; परंतु द्वापर युग में अनेक जीवों को अपनी आध्यात्मिक प्रगति के ज्ञान का विस्मरण हो गया । त्रेता एवं द्वापर युग में जीव के जन्मदिन पर अनेक उन्नत पुरुष आकर उसकी शीघ्र आध्यात्मिक उन्नति हेतु उसे आशीर्वाद देते थे अथवा आशीर्वाद प्राप्त करने हेतु जीव उन्नत पुरुषों के पास जाता था । आशीर्वाद प्राप्त करने के पश्चात जीव अपनी आध्यात्मिक उन्नति के लिए अधिक गंभीरता से प्रयत्न करता था । अगले वर्ष के जन्मदिन पर जीव पुनः उन्नत पुरुषों से आशीर्वाद प्राप्त करने जाता था । तब वे उसके पूर्ण वर्ष की आध्यात्मिक उन्नति की समीक्षा कर उसे आशीर्वाद देते थे, अर्थात जीव की आध्यात्मिक उन्नति में वृद्धि होने पर ही उन्नत पुरुष उसे आशीर्वाद देते थे । इस आशीर्वाद के कारण ही उसकी आध्यात्मिक उन्नति हो रही है, इस बात का भान जीव को रहता था । इसलिए उसमें अहं होने की आशंका घटती थी ।’ – कु. मधुरा भोसले

३. तिथि के अनुसार जन्मदिन मनाने का महत्त्व

        यद्यपि ज्योतिषशास्त्रानुसार जन्मदिन की तिथि के ‘घाततिथि’ होती है । तथापि उस तिथि पर लाभ अधिक होने से जन्मदिन तिथि के अनुसार मनाना उचित होता है ।

        प्रश्न : हम जन्मदिन-समारोह तिथि के अनुसार मनाने के लिए कहते हैं । ज्योतिषशास्त्र में बताया गया है कि ‘जिस दिन हमारा जन्म होता है, वह ‘घाततिथि’ होती है; इसलिए उस तिथि पर कोई भी शुभकर्म नहीं करना चाहिए । फिर उस दिन निश्चितरूप से क्या करना चाहिए ?

        उत्तर : ‘घाततिथि’का गर्भितार्थ भिन्न है । अमुक तिथि पर जन्म लेनेवाले जीव के स्पंदन उस तिथि के स्पंदन के समान होते हैं । इसलिए काला जादू करनेवाले मांत्रिक उस तिथि पर उस जीव की प्रतिकृति पर विधि कर उस जीव को ७० प्रतिशततक कष्ट दे सकते हैं । इसलिए उस तिथि को ‘घाततिथि’ अर्थात ‘वह तिथि जो सर्वाधिक कष्ट दे सकती है’ कहते हैं ।

        कलियुग में अर्थ का अनर्थ होने का यह एक उत्तम उदाहरण है । उस दिन घात होने की आशंका, अर्थात शुभकर्म बाधित होने की आशंका के कारण इस प्रकार का अर्थ निकाला गया कि ‘उस जीव से संबंधित कोई भी शुभकर्म न करें’ । इसलिए उपरोक्त अनुसार अनुचित रूढि की निर्मिति हो गई है । इस दिन शुभकर्म कर, अर्थात जन्मदिन मनाते समय आरती कर, कुलदेवता से की गई प्रार्थना से चैतन्य की फलप्राप्ति होती है और जीव को उस स्तर पर दिए गए कष्ट का प्रतिकार करने का बल प्राप्त होता है । इसलिए ऐसा संकेत नहीं है, ‘इस दिन कोई भी शुभकर्म न करें’ । यह एकअभ्यासहीन वक्तव्य है ।’ – पूजनीया (श्रीमती) अंजली गाडगीळ

        शुभकामनाओं एवं आशीर्वाद का सर्वाधिक फलित होना : ‘जिस तिथि पर हमारा जन्म होता है, उस तिथि के स्पंदन हमारे स्पंदनों से सर्वाधिक मेल खाते हैं । इसलिए उस तिथि पर परिजनों एवं हितचिंतकोंद्वारा हमें दी गई शुभकामनाएं एवं आशीर्वाद सर्वाधिक फलित होते हैं ।

        जीवन में बाधाओं के विरुद्ध संघर्ष करने की क्षमता प्राप्त होना : जन्मदिन पर (तिथि पर) ब्रह्मांड में कार्यरत तरंगें जीव की प्रकृति एवं प्रवृत्ति के लिए पोषक होती हैं तथा उस तिथि पर की गई सात्त्विक एवं चैतन्यात्मक कृतियां जीव के अंतर्मन पर गहरा संस्कार अंकित करने में सहायक होती हैं । इस कारण जीव के आगामी जीवनक्रम को आध्यात्मिक बल प्राप्त होता है और जीवन में आनेवाली बाधाओं के विरुद्ध संघर्ष करने की क्षमता उसे प्राप्त होती है ।’ – पूजनीया (श्रीमती) अंजली गाडगीळ

        दिनांक की अपेक्षा तिथि के अनुसार जन्मदिन मनाने के लाभ

दिनांकके अनुसार जन्मदिन मनाना तिथिके अनुसार जन्मदिन मनाना
१. संबंधित देह केवल स्थूलदेह स्थूलदेह ५ प्रतिशत एवं
सूक्ष्म-देह ९५ प्रतिशत
२. देहपर संभावित परिणाम जन्मदिन मनानेकी कृति केवल स्थूलदेहसे संबंधित होती है, इसलिए जीवको सात्त्विक तरंगोंका नगण्य लाभ मिलता है । अतः जीवपर बना रज-तमका आवरण न्यून होनेकी संभावना अल्प होती है । सूक्ष्म-देहकी सात्त्विकता बढती है ।
३. नाडीपर संभावित परिणाम औक्षण करनेपर भी जीवके सूक्ष्म-देहकी सात्त्विकता पर्याप्त मात्रामें न बढनेके कारण मुख्यतः सूर्यनाडी और कभी-कभी चंद्रनाडी जागृत होती है; परंतु जीवको आध्यात्मिक दृष्टिसे उसका लाभ नहीं मिलता । तिथि प्रारंभ होते ही प्रत्येक क्षण जीवको उसकी सूक्ष्मदेहके स्पंदनोंसे समदर्शी एवं देहशुद्धिके लिए आवश्यक सात्त्विक स्पंदन प्राप्त होते हैं । अतः औक्षण करनेपर जीवकी सुषुम्नानाडी जागृत होती है । जीवका स्तर ६०³ से अधिक हो, तो उसकी सुषुम्नानाडी दिनभर जागृत रहती है ।
४. जीवकी वृत्ति पर संभावित
परिणाम
जीवकी सात्त्विकता न बढनेके कारण उसमें बहिर्मुख वृत्ति बढती है । जीवकी सात्त्विकता बढनेसे
उसमें अंतर्मुखता बढती है ।

– कु. मधुरा भोसले

४. हिन्दू पंचांग के अनुसार जन्मदिन मनाने की पद्धति

जन्मदिन मनाने की दो पद्धतियां निम्नानुसार हैं ।

        वीडियो : हिन्दू पंचांग तथा हिन्दू संस्कृति के अनुसार जन्मदिन मनाने की पद्धति

४ अ. हिन्दू पंचांग के अनुसार जन्मदिन मनाना – पद्धति १

        अ. ‘प्रथम वर्ष में प्रतिमास एवं उसके पश्चात प्रतिवर्ष जन्मतिथि पर जन्मदिन मनाते समय सर्वप्रथम अभ्यंगस्नान कर कुमकुम तिलक लगाना चाहिए ।

        आ. ‘आयुरभिवृद्ध्यर्थं वर्ष (अथवा मास) वृद्धिकर्म करिष्ये ।’ ऐसा संकल्प कर एक पीढे अथवा चौकी पर कुलदेवता, जन्मनक्षत्र, माता-पिता, प्रजापति, सूर्य, गणेश, मार्कण्डेय, व्यास, परशुराम, राम, अश्वत्थामा, कृपाचार्य, बलि, प्रल्हाद, हनुमान, विभीषण एवं षष्ठीदेवता, प्रत्येक देवता के नाम से एक-एक मुट्ठी चावल के सत्रह पुंज बनाएं’ एवं उन देवताओं का आवाहन कर उनकी षोडशोपचार पूजा करें । षष्ठीदेवता को दही-चावल का भोग लगाएं एवं इसके पश्चात वह चावल गाय अथवा अन्य प्राणी को खिलाएं । अन्य देवताओं के लिए पेडे अथवा मिश्री का भोग लगाकर, वह प्रसाद के रूप में वितरित करें ।

        इ. प्रार्थना कर मुट्ठीभर तिल, गुड की डली एवं आधी प्याली दूध से बनाया गया मिश्रण प्राशन करें ।

        ई. परिजनों एवं मित्रों को भोजन करवाएं, उसी के साथ अधिकाधिक दान धर्म एवं अन्नदान करें ।

        उ. प्रतिगृह अर्थात दूसरों से धन अथवा अन्य भेंट न लें ।

४ आ. हिन्दू पंचांग के अनुसार जन्मदिन मनाना – पद्धति २

        हिन्दू पंचांग के अनुसार जन्मदिन मनाने की कृति आगे दी गई है ।

        अ. अभ्यंगस्नान करना : जन्मदिन पर अभ्यंगस्नान वस्त्र पहने हुए ही करें । (जन्मदिन पर स्नान अर्थात स्नान के माध्यम से भूतकाल का विस्मरण कर सतत वर्तमान काल का भान रख पाने हेतु ईश्वर से प्रार्थना का प्रतीक ।) स्नान करते समय ऐसा भाव रखें कि ‘स्नान का जल निर्मल एवं शुद्ध गंगा के रूप में हमारे शरीर पर प्रवाहित हो रहा है और उससे हमारे देह एवं अंतःकरण की शुद्धि हो रही है ऐसा भाव रखें ।

        आ. स्नान के पश्चात नए वस्त्र परिधान करें ।

        इ. माता-पिता एवं अन्य ज्येष्ठ व्यक्तियों को प्रणाम करें ।

        ई. कुलदेवता का अभिषेक करें अथवा उनकी भावपूर्ण पूजा करें ।

        उ. आरती उतारना : जिसका जन्मदिन है, उसकी आरती उतारें । आरती करवानेवाला एवं करनेवाला, दोनों में यह भाव रहे कि ‘एक दूसरे के माध्यम से प्रत्यक्ष ईश्वर ही यह कृतिस्वरूप कार्यद्वारा हमें आशीर्वाद दे रहे हैं’ । आरती के पश्चात कुलदेवता अथवा उपास्यदेवता का स्मरण कर, जिसका जन्मदिन है, उसके सिर पर तीन बार अक्षत डालें ।

        ऊ. जिसका जन्मदिन है, उसे कुछ भेंटवस्तु देनी चाहिए । छोटे बालक को कर्र्त्तव्यबुद्धि से उसे प्रोत्साहित करने के लिए भेंट दें, बडों को भेंट देनेमें कर्त्तापन न रखें । अपेक्षारहित दान करने से हम कुछ कालोपरांत उसके बारे में भूल भी जाते हैं । जन्मदिन पर दान इसी प्रकार का होना चाहिए । दान के विषय में कर्त्तापन अथवा अपेक्षा रखने से लेन-देन उत्पन्न होता है । दान अथवा भेंट स्वीकारनेवाला व्यक्ति यदि ऐसा भाव रखे कि ‘यह ईश्वरकृपा से मिला प्रसाद है’, तो लेन-देन उत्पन्न नहीं होता ।

        ए. जन्मदिन पर जिन वस्त्रों को धारण कर स्नान किया जाता है, उन वस्त्रों का स्वयं उपयोग न कर अपेक्षारहित किसी को दान देना चाहिए । दान सदैव ‘सत्पात्रे दानम्’ हो, इस हेतु भिखारी इत्यादि को देने की अपेक्षा ईश्वर के उपासक अथवा राष्ट्र एवं धर्महित के लिए कार्य करनेवालों को देना पुण्यदायी होता है ।

संदर्भ : सनातन का ग्रंथ, ‘पारिवारिक धार्मिक व सामाजिक कृतियोंका आधारभूत अध्यात्मशास्त्र