हनुमान जयंती

 

सारिणी


१. हनुमानजीकी जानकारीका महत्त्व

         अधिकतर लोगोंको देवताओंके विषयमें जो जानकारी होती है वह बचपनमें पढी अथवा सुनी हुई कहानीके आधारपर होती है । उन्हें यदि शास्त्रीय परिभाषामें अधिक जानकारी मिले, तो देवताके प्रति उनका विश्वास बढकर उनमें श्रद्धा निर्माण होने लगती है । किसी भी देवताके विशेष गुण जानते हुए यदि हम उनकी उपासना करें, तो उपासना अधिक श्रद्धा एवं भावसे होती है । आध्यात्मिक उन्नति अर्थात ईश्वरसे एकरूप होनेके लिए ‘पिंडसे ब्रह्मांडतक’ की यात्रा करनी पडती है । इसका अर्थ यह कि, जो तत्त्व ‘ब्रह्मांड’ में अर्थात शिवमें हैं, उनका ‘पिंड’ में अर्थात जीवमें होना आवश्यक है । तब ही जीव शिवसे एकरूप हो सकता है । हनुमानजीसे एकरूप होनेके लिए उनके भक्तके लिए आवश्यक है कि वे हनुमानजीकी सर्व विशेषताएं आत्मसात करे ।

२. हनुमान जयंती

         हनुमानजीका जन्म त्रेतायुगमें चैत्र पूर्णिमाकी पावन तिथिपर हुआ । तबसे हनुमान जयंतीका उत्सव मनाया जाता है । इस दिन हनुमानजीका तारक एवं मारक तत्त्व अत्यधिक मात्रामें अर्थात अन्य दिनोंकी तुलनामें १ सहस्र गुना अधिक कार्यरत होता है । इससे वातावरणकी सात्त्विकता बढती है एवं रज-तम कणोंका विघटन होता है । विघटनका अर्थ है, रज-तमकी मात्रा अल्प होना । इस दिन हनुमानजीकी उपासना करनेवाले भक्तोंको हनुमानजीके तत्त्वका अधिक लाभ होता है ।

३. हनुमानजीके कुछ नाम एवं उनका अर्थ

         हनुमानजीको मारुति, बजरंगबली इत्यादि नामोंसे भी जानते हैं ।  मरुत शब्दसे ही मारुति शब्दकी उत्पत्ति हुई है । महाभारतमें हनुमानजीका उल्लेख मारुतात्मजके नामसे किया गया है । हनुमानजीका अन्य एक नाम है, बजरंगबली । बजरंगबली यह शब्द व्रजांगबलीके अपभ्रंशसे बना है । जिनमें वङ्कासमान कठोर अस्त्रका सामना करनेकी शक्ति है, वे हैं व्रजांगबली है । जिस प्रकार लक्ष्मणसे लखन, कृष्णसे किशन ऐसे सरल नाम लोगोंने अपभ्रंश कर उपयोगमें लाए, उसी प्रकार व्रजांगबलीका अपभ्रंश बजरंगबली हो गया ।

४. हनुमानजीकी विशेषताएं

         अनेक संतोंने समाजमें हनुमानजीकी उपासनाको प्रचलित किया है । ऐसे हनुमानजीके संदर्भमें समर्थ रामदासस्वामी कहते हैं, ‘हनुमानजी हमारे देवता हैं ।’ हनुमानजी शक्ति, युक्ति एवं भक्तिका प्रतीक हैं । इसलिए समर्थ रामदासस्वामीने हनुमानजीकी उपासनाकी प्रथा आरंभ की । महाराष्ट्रमें उनके द्वारा स्थापित ग्यारह मारुति प्रसिद्ध हैं । साथही संत तुलसीदासने उत्तर भारतमें मारुतिके अनेक मंदिर स्थापित किए तथा उनकी उपासना दृढ की । दक्षिण भारतमें मध्वाचार्यको मारुतिका अवतार माना जाता है । इनके साथही अन्य कई संतोंने अपनी विविध रचनाओंद्वारा समाजके समक्ष मारुतिका आदर्श रखा है ।

४ अ.  शक्तिमानता

         हनुमानजी सर्वशक्तिमान देवता हैं । जन्म लेते ही हनुमानजीने सूर्यको निगलनेके लिए उडान भरी । इससे यह स्पष्ट होता है कि, वायुपुत्र अर्थात वायुतत्त्वसे उत्पन्न हनुमानजी, सूर्यपर अर्थात तेजतत्त्वपर विजय प्राप्त करनेमें सक्षम थे । पृथ्वी, आप, तेज, वायु एवं आकाश तत्त्वोंमेंसे तेजतत्त्वकी तुलनामें वायुतत्त्व अधिक सूक्ष्म है अर्थात अधिक शक्तिमान है । सर्व देवताओंमें केवल हनुमानजीको ही अनिष्ट शक्तियां कष्ट नहीं दे सकतीं । लंकामें लाखों राक्षस थे, तब भी वे हनुमानजीका कुछ नहीं बिगाड पाएं । इससे हम हनुमानजीकी शक्तिका अनुमान लगा सकते हैं ।

४ आ. भूतोंके स्वामी

         हनुमानजी भूतोंके स्वामी माने जाते हैं । किसीको भूतबाधा हो, तो उस व्यक्तिको हनुमानजीके मंदिर ले जाते हैं । साथही हनुमानजीसे संबंधित स्तोत्र जैसे हनुमत्कवच, भीमरूपीस्तोत्र अथवा हनुमानचालीसाका पाठ करनेके लिए कहते हैं ।

४ इ. भक्ति

         साधनामें जिज्ञासु, मुमुक्षु, साधक, शिष्य एवं भक्त ऐसे उन्नतिके चरण होते हैं । इसमें भक्त यह अंतिम चरण है । भक्त अर्थात वह जो भगवानसे विभक्त नहीं है । हनुमानजी भगवान श्रीरामसे पूर्णतया एकरूप हैं । जब भी नवविधा भक्तिमेंसे दास्यभक्तिका सर्वोत्कृष्ट उदाहरण देना होता है, तब हनुमानजीका उदाहरण दिया जाता है । वे अपने प्रभु रामके लिए प्राण अर्पण करनेके लिए सदैव तत्पर रहते हैं । प्रभु श्रीरामकी सेवाकी तुलनामें उन्हें सब कुछ कौडीके मोल लगता है । हनुमान सेवक एवं सैनिकका एक सुंदर सम्मिश्रण हैं ! स्वयं सर्वशक्तिमान होते हुए भी वे, अपने-आपको श्रीरामजीका दास कहलवाते थे । उनकी भावना थी कि उनकी शक्ति भी श्रीरामजीकी ही शक्ति है । मान अर्थात शक्ति एवं भक्तिका संगम ।

४ ई.  मनोविज्ञानमें निपुण एवं राजनीतिमें कुशल

         अनेक प्रसंगोंमें सुग्रीव इत्यादि वानर ही नहीं, वरन् राम भी हनुमानजी से परामर्श करते थे । लंकामें प्रथम ही भेंटमें हनुमानजीने सीताके मनमें अपने प्रति विश्वास निर्माण किया । इन प्रसंगोंसे हनुमानजीकी बुद्धिमानता एवं मनोविज्ञानमें निपुणता स्पष्ट होती है । लंकादहन कर हनुमानजीने रावणकी प्रजामें रावणके सामथ्र्यके प्रति अविश्वास उत्पन्न किया । इस बातसे उनकी राजनीति-कुशलता स्पष्ट होती है ।

४  उ.  जितेंद्रिय

         सीताको ढूंढने जब हनुमानजी रावणके अंतःपुरमें गए, तो उस समयकी उनकी मनःस्थिति थी, उनके उच्च चरित्रका सूचक है । इस संदर्भमें वे स्वयं कहते हैं,  ‘सर्व रावणपत्नियोंको निःशंक लेटे हुए मैंने देखा; परंतु उन्हें देखनेसे मेरे मनमें विकार उत्पन्न नहीं हुआ ।’ -वाल्मीकिरामायण, सुंदरकांड ११.४२-४३

         इंद्रियजीत होनेके कारण हनुमानजी रावणपुत्र इंद्रजीतको भी पराजित कर सके । तभीसे इंद्रियोंपर विजय पाने हेतु हनुमानजीकी उपासना बतायी गई ।

५. भक्तोंकी इच्छा पूर्ण करनेवाले

         हनुमानजीको इच्छा पूर्ण करनेवाले देवता मानते हैं, इसलिए व्रत रखनेवाले अनेक स्त्री-पुरुष हनुमानजीकी मूर्तिकी श्रद्धापूर्वक निर्धारित परिक्रमा करते हैं । कई लोगोंको आश्चर्य होता है कि, जब किसी कन्याका विवाह निश्चित न हो रहा हो, तो उसे ब्रह्मचारी हनुमानजीकी उपासना करनेके लिए कहा जाता है । वास्तवमें अत्युच्च स्तरके देवताओंमें ‘ब्रह्मचारी’ या ‘विवाहित’ जैसा कोई भेद नहीं होता । ऐसा अंतर मानव-निर्मित है । मनोविज्ञानके आधारपर कुछ लोगोंकी यह गलतधारणा होती है कि, सुंदर, बलवान पुरुषसे विवाहकी कामनासे कन्याएं हनुमानजीकी उपासना करती हैं । परंतु वास्तविक कारण कुछ इस प्रकार है । लगभग ३० प्रतिशत व्यक्तियोंका विवाह भूतबाधा, जादू-टोना इत्यादि अनिष्ट शक्तियोंके प्रभावके कारण नहीं हो पाता । हनुमानजीकी उपासना करनेसे ये कष्ट दूर हो जाते हैं एवं उनका विवाह संभव हो जाता है ।

६. हनुमान जयंती कैसे मनाई जाती है ?

          हनुमान जयंतीका उत्सव संपूर्ण भारतमें विविध स्थानोंपर धूमधामसे मनाया जाता है । इस दिन प्रात: ४ बजेसेही भक्तजन स्नानसंध्या कर हनुमानजीके देवालयोंमें दर्शनके लिए आने लगते हैं । प्रात: ५ बजेसे देवालयोंमें पूजाविधि आरंभ होती हैं । हनुमानजीकी मूर्तिको पंचामृत स्नान करवाकर उनका विधिवत पूजन किया जाता है ।  सुबह ६ बजेतक अर्थात हनुमान जन्मके समयतक हनुमानजन्मकी कथा, भजन, कीर्तन आदिका आयोजन किया जाता है । हनुमानजीकी मूर्तिको हिंडोलेमें रख हिंडोलागीत गाया जाता है ।  हनुमानजीकी मूर्ति हाथमें लेकर देवालयकी परिक्रमा करते हैं ।  हनुमान जयंतीके उपलक्ष्यमें कुछ जगह यज्ञका आयोजन भी करते हैं ।  तत्पश्चात हनुमानजीकी आरती उतारी जाती है ।  आरतीके उपरांत कुछ स्थानोंपर सौंठ अर्थात सूखे अदरकका चूर्ण एवं पीसी हुई चीनी तथा सूखे नारियलका चूरा मिलाकर उस मिश्रणको या कुछ स्थानोंपर छुहारा, बादाम, काजू, सूखा अंगूर एवं मिश्री, इस पंचखाद्यको प्रसादके रूपमें बांटते हैं । कुछ स्थानोंपर पोहे तथा चनेकी भीगी हुई दालमें दही, शक्कर, मिर्चीके टुकडे, निम्बका अचार मिलाकर गोपालकाला बनाकर प्रसादके रूपमें बाटते है ।  कुछ जगह महाप्रसादका आयोजन किया जाता है ।

हनुमान जयंती दृश्यपट देखें

 

७. हनुमान जयंतीके दिन हनुमानजीके नामका जप करनेका महत्त्व

         हनुमान जयंतीके दिन हनुमानजीका तत्त्व अन्य दिनोंकी तुलनामें अत्यधिक मात्रामें १ सहस्र गुना रहता अधिक कार्यरत रहता है । इस कारण हनुमानजीकी चैतन्यदायी तत्त्वतरंगें पृथ्वीपर अधिक मात्रामें आकृष्ट होती हैं । इन तरंगोंका जीवको व्यावहारिक एवं आध्यात्मिक, दोनों स्तरोंपर लाभ होता है । इन कार्यरत तत्त्वतरगोंका संपूर्ण लाभ पानेके लिए इस दिन ‘श्री हनुमते नमः ।’ नामजप अधिकाधिक करना चाहिए । इस नामजपको कैसे करें,यह समझनेके लिए आइए एक ध्वनिमुद्रिका अर्थात (audio) सुनते हैं…

८. हनुमान जयंतीके दिन की जानेवाली प्रार्थना

हे हनुमानजी, मैं अभी आपका नामजप आरंभ कर रहा हूं । आपको जैसे अपेक्षित है, वैसा भावपूर्ण नामजप आप ही मुझसे करवा लें । आपके चैतन्यको ग्रहण करनेकी मुझे क्षमता प्रदान करें । इस चैतन्यसे मेरे सर्व ओर सुरक्षाकवच निर्माण हो तथा आप ही मुझे सत्कार्यके लिए शक्ति प्रदान करें, यही आपके चरणोंमें प्रार्थना है !

(संदर्भ – सनातनका ग्रंथ – श्री हनुमान)

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