रक्षाबंधन

सारणी


१. श्रावण मासमें नागपंचमीके उपरांत आनेवाला त्यौहार, रक्षाबंधन

रक्षाबंधन अर्थात राखीका त्यौहार । यह भाई-बहनका त्यौहार है । यह त्यौहार श्रावण पूर्णिमाके दिन मनाया जाता है । पाताल के बलिराजा के हाथपर राखी बांधकर, लक्ष्मी ने उन्हें अपना भाई बनाया एवं नारायण को मुक्त करवाया । वह दिन था श्रावण पूर्णिमा । भविष्यपुराण में बताए अनुसार रक्षाबंधन मूलतः राजाओं के लिए था । इतिहासकाल से राखीकी एक नई पद्धति आरंभ हुई । यह राखी बहन द्वारा भाई के हाथपर बांधी जानी चाहिए एवं उसके पीछे यह भूमिका होती है कि ‘भाई का उत्कर्ष हो और भाई बहन का संरक्षण करे ।

२. रक्षाबंधन : अर्थ एवं कारण

१. ‘बहनकी जीवनभर रक्षा करूंगा’, यह वचन देकर भाई-बहनसे धागा बंधवाता है एवं उसे वचनबद्ध करनेके लिए बहन धागा बांधती है । ‘बहन एवं भाई इस संबंधमें बंधे रहें’, इसलिए यह दिन इतिहासकालसे प्रचलित है ।

२. राखी बहन एवं भाईके पवित्र बंधनका प्रतीक है ।

३. जैसे बहनकी रक्षाके लिए भाई धागा बंधवाकर वचनबद्ध होता है, उसी प्रकार बहन भी भाईकी रक्षाके लिए, ईश्वरके चरणोंमें विनती करती है ।

४. इस दिन श्री गणेश एवं श्री सरस्वतीदेवीका तत्त्व पृथ्वीतलपर अधिक मात्रामें आता है, जिसका लाभ दोनोंको भी होता है ।

५. बहनका भक्तिभाव, उसकी ईश्वरके प्रति तीव्र उत्कंठा एवं उसपर जितनी गुरुकृपा अधिक, उतना उसके भाईके लिए अर्ततासे की गई पुकारका परिणाम होता है और भाईकी आध्यात्मिक प्रगति होती है ।

३. बहन एवं भाईके बीच लेन-देन

बहन एवं भाई दोनोंमें साधारणत: ३० प्रतिशत लेन-देन रहता है । राखी पूर्णिमा जैसे त्यौहारोंके माध्यमसे उनमें लेन-देन घटता है, अर्थात् वे स्थूल स्तरपर एक-दूसरेसे बंधते हैं; परंतु सूक्ष्म-स्तरपर एकदूसरेका लेन-देन चुकाते हैं । अत: दोनोंको ही इस अवसरका लाभ उठाना चाहिए ।

४. रक्षाबंधनका आधारभूत शास्त्र

श्रावण पूर्णिमाके दिन ब्रह्मांडमें वेगवान यमतरंगें कार्यरत होती हैं । इन वेगवान तरंगोंके आपसमें घर्षण होनेके कारण तेजकणोंका एकत्रीकरण होकर वायुमंडलमें इन तेजकणोंका प्रक्षेपण होता है । वायुमंडलमें भूमिके निकट भूमि कण होते हैं । तेजकणोंका भूमिकणोंसे संयोग होनेके कारण उन्हें जडत्व प्राप्त होता है एवं वे भूमिपर आच्छादन बनाते हैं, भूमिपर बने इस आच्छादनको ही रक्षा कहते हैं । पातालके बलि राजा इस रक्षासे प्रक्षेपित रज-तम तरंगोंका उपयोग अनिष्ट शक्तियोंके पोषण हेतु करते हैं । इसलिए भूमिका आवाहन कर उसकी सहायतासे बलि राजाके इस कृत्यपर बंधन लानेके प्रतीकस्वरूप स्त्री पुरुषको राखी बांधती है अर्थात रक्षारूपी कणोंको नियंत्रित कर वायुमंडलकी रक्षाका आवाहन करती है । श्रावण पूर्णिमाके दिन पातालके राजा बलिको देवी लक्ष्मीने राखी बांधकर नारायणको; अर्थात प्रभु को मुक्त करवाया ।

रक्षा बांधतेसमय की जानेवाली यह प्रार्थना हम समझ लेते हैं,

‘येन बद्धो बलि राजा दानवेन्द्रो महाबलः।
तेन त्वामपि बध्नामि रक्षे मा चल मा चल ।।

इसका अर्थ है, महाबली एवं दानवेंद्र बलि राजा जिससे बद्ध हुआ, उस रक्षासे मैं तुम्हें भी बांधती हूं । हे, राखी, तुम अडिग रहना । भविष्यपुराणमें बताए अनुसार रक्षाबंधन मूलतः राजाओंके लिए होता था । अब यह त्यौहार सभी लोग मनाते हैं । रक्षाबंधनके दिन बहन भाईको राखी बांधती है ।

५. रक्षाबंधनके दिन किए जानेवाले धार्मिक कृत्य

यह कृत्य समझनेके लिए अब देखते हैं, एक दृश्यपट

५ अ. राखी बांधने हेतु भाईके बैठनेके लिए पीढा रखिए ।

५ आ. इस पीढेके सर्व ओर रंगोली बनाइए ।

५ इ. अब भाई एवं बहन दोनों एकदूसरे की रक्षाके लिए देवताओंसे प्रार्थना करें ।

५ ई. बहन भाईको कुमकुमका तिलक करे ।

५ उ. बहन भाईकी दाई कलाईपर राखी बांधे ।

५ ऊ. राखी बांधनेके उपरांत बहन भाईका औक्षण करे |

५ ए. इसमें प्रथम सोनेकी अंगूठी एवं सुपारीसे अर्धगोलाकार पद्धतिसे औक्षण करे एवं उसके उपरांत घीके निरांजनसे भाईकी अर्धगोलाकार पद्धतिसे ३ बार आरती उतारे ।

५ ऐ. आरती उतारनेके उपरांत भाई अपनी बहनको उपहारस्वरूप कुछ वस्तु दे ।

५ ओ. बहन उपहार स्वीकार कर अपने भाईका सम्मान करे ।

६. राखी

प्राचीन कालमें अक्षत अर्थात चावलके कुछ दाने श्वेत वस्त्रमें लपेटकर रेशमी धागेसे राखीके रूपमें बांधे जाते थे । वर्तमान स्थितिमें हाटमें अर्थात मार्केटमें रक्षाबंधनके लिए विभिन्न प्रकारकी राखियां मिलती हैं ।

७. राखी कैसी होनी चाहिए ?

राखी जो सात्त्विक हो एवं जिसमें ईश्वरीय तत्त्व आकृष्ट करनेकी क्षमता हो एेसी राखी होनी चाहिए । सात्त्विक राखीके कारण सत्त्वगुणमें भी वृद्धि होती है । सनातन संस्थाकी सूक्ष्म-चित्रकर्ती साधिका कु. प्रियांका लोटलीकरजी ने सनातनद्वारा बनाई गई राखी के वैशिष्ट्य नीचे दिए सूक्ष्मचित्र के माध्यम से बताएं हैं ।

८. सनातनद्वारा बनाई सात्त्विक राखी दर्शानेवाला सूक्ष्म-चित्र

८ अ. राखीमें विद्यमान गुरु-शिष्य चिह्नवाले स्थानपर परमेश्वरीय तत्त्व आकृष्ट होते हैं ।

८ आ. राखीमें निर्गुण तत्त्वात्मक वलय जागृत होते हैं ।

८ इ. साथही चैतन्यके प्रवाह आकृष्ट होते हैं

८ ई. तथा राखीमें चैतन्यके वलय घनीभूत होते हैं ।

८ उ. इन वलयोंद्वारा वातावरणमें चैतन्यके प्रवाहका प्रक्षेपण होता है ।

८ ऊ. वातावरणमें चैतन्यके कणोंका भी प्रक्षेपण होता है ।

८ ए. राखीके धागेसे चैतन्यकी तरंगें प्रवाहित होती हैं । इस कारण राखी बांधनेपर भाईको चैतन्यकी प्राप्ति होती है ।

८ ऐ. भाईको राखी बांधते समय, ‘भाईमें विद्यमान ईश्वरको राखी बांध रही हूं’, बहनका ऐसा भाव होनेसे राखीमें भावके वलय घनीभूत होते हैं।

अभी हमने कु. प्रियांकाजीके बनाए सूक्ष्मचित्रों द्वारा, सनातनद्वारा बनाई राखी के बारे में समझ लिया । सनातन संस्थाद्वारा बनाई गई राखीमें गुरुनिष्ठा, प्रेमभाव, सात्त्विकता एवं चैतन्यका समावेश है । बहन भाईको सात्त्विक राखी ही बांधे, तथा भाई भी बहनको सात्त्विक उपहार दे ।

९. रक्षाबंधनके दिन भाईके द्वारा करने योग्य प्रार्थना

रक्षा-बंधनके दिन प्रत्येक भाई ईश्वरसे प्रार्थना करे, ‘मेरी बहनकी रक्षाके साथ-साथ मुझसे समाज, राष्ट्र एवं धर्मकी रक्षाके लिए प्रयत्न हों’ ।

१०. भाईको राखी बांधते समय बहन द्रौपदी समान भाव रखे

कृष्णकी उंगलीसे बहनेवाले रक्तप्रवाहको रोकनेके लिए द्रौपदीने अपनी साडीका आंचल फाडकर उनकी उंगलीपर बांधा था । बहन अपने भाईके कष्टको कदापि सहन नहीं कर सकती है । उसपर आए संकट दूर करनेके लिए वह कुछ भी कर सकती है । राखी पूर्णिमाके दिन प्रत्येक बहन अपने भाईको राखी बांधते समय यही भाव रखें ।

११. राखी बांधते समय बहनकी मनोधारणा कैसी हो ?

भाईको राखी बांधते समय, ‘भाईमें विद्यमान ईश्वरको राखी बांध रही हूं’, ऐसी धारणाके कारण राखीमें भक्तिभावका वलय बन जाता है । रक्षा-बंधनके दिन प्रत्येक भाई ईश्वरसे प्रार्थना करे कि, ‘मेरी बहनकी रक्षाके साथ-साथ मुझसे समाज, राष्ट्र एवं धर्मकी रक्षाके लिए प्रयत्न हों’ ।

१२. रक्षाबंधनके आध्यात्मिक लाभ

१. तेजतत्त्व बढता है : राखी बांधते समय भाईकी आरती उतारनेपर निरांजनकी (दीपककी) ज्योतिसे तेजतत्त्वकी तरंगें भाईकी ओर प्रक्षेपित होती हैं । ये तरंगें भाईमें विद्यमान तेजतत्त्व बढानेमें सहायक होती हैं ।

२. भाईको शक्तितत्त्वका लाभ होता है : रक्षाबंधनके दिन राखी बांधनेवाली स्त्रीमें विद्यमान शक्तितत्त्व जागृत होता है। भाईको राखीके माध्यमसे इस शक्तितत्त्वका लाभ होता है ।

३. भाई-बहनका आपसी लेन-देन घटता है :
बहन और भाईका एक-दूसरेके साथ, साधारणत: ३० प्रतिशत लेन-देन रहता है, जो राखी पूर्णिमा जैसे त्यौहारोंके माध्यमसे घटता है । अर्थात् वे स्थूल रूपसे एक-दूसरसे बंधे हुए हों; परंतु सूक्ष्मरूपसे आपसी लेन-देनको समाप्त कर एक-दूसरेसे मुक्त होते हैं ।

(संदर्भ : अधिक जानकारीके लिए पढिए, सनातनका ग्रंथ ‘त्यौहार, धार्मिक उत्सव एवं व्रत’)

१३. रक्षाबंधनके दिन अपेक्षा- विरहित राखी बांधनेका महत्त्व

रक्षाबंधनके दिन यदि बहन भाईसे किसी वस्तुकी अपेक्षा रखती है, तो उस दिन मिलनेवाले आध्यात्मिक लाभसे वंचित रहती है । यह दिन आध्यात्मिक दृष्टिसे लेन-देन घटानेके लिए होता है । अपेक्षा रखकर वस्तुकी प्राप्ति करनेसे लेन-देन ३ गुना बढता है ।

१. अपेक्षाके कारण वह वातावरणमें विद्यमान प्रेमभाव एवं आनंदकी तरंगोंका लाभ नहीं प्राप्त कर सकती है ।

२. आध्यात्मिक दृष्टिसे १२ प्रतिशत हानि होती है । इसलिए प्रत्येक बहन अपने भाईको निःस्वार्थ रूपसे राखी बांधकर उसका आशीर्वाद ले । इससे लेन-देन घट जाता है ।

१४. रक्षाबंधनके दिन उपहार देनेका महत्त्व

रक्षाबंधनके दिन प्रत्येक भाई अपनी बहनको उपहार देता है । उसका स्थूल एवं सूक्ष्म कारण आगे दिए अनुसार है ।
१. स्थूल वस्तुके कारण दूसरेका सतत् स्मरण रहता है ।
२. लेन-देन एक प्रतिशत कम होता है ।
३. भाईके प्रति बहनके स्नेहका मोल भाई नहीं लगा सकता; परंतु स्थूल माध्यमद्वारा कुछ प्रेम देकर उसे चुकानेका प्रयत्न कर सकता है ।
४. उपहार देते समय भाईके मनमें ईश्वरके प्रति यदी भाव है, तो बहनपर उसका प्रभाव पडता है । इसलिए भाईसे बहन उपहार न मांगे । वह स्वेच्छासे दे, तो स्वीकार ले; अन्यथा न लेना अधिक श्रेयस्कर होगा ।

१५. भाईद्वारा सात्त्विक उपहार देनेका महत्त्व

१. सात्त्विक वस्तुओंका उस व्यक्तिपर व्यावहारिक परिणाम नहीं होता है ।
२. सात्त्विक वस्तु देनेवाले एवं लेनेवाले दोनोंको ही लाभ होता है ।
३. सात्त्विक कृतिद्वारा लेन-देन घटकर नया लेन-देन निर्माण नहीं होता है । इसलिए बंधुओ, सात्त्विक उपहार देकर बहनोंके कर्मबंधनसे मुक्त हो जाइए ।

१६. देवताओंका अपमान रोकिए !

आजकल राखीपर ‘ॐ’ अथवा देवी-देवताओंके चित्र रहते हैं । राखीका उपयोग हो जानेपर राखी इधर-उधर पडी रहती है । इससे आस्थाकेंद्रका अपमान होता है और पाप लगता है । इसे रोकनेके लिए पानीमें राखीका विसर्जन करें !
( संदर्भ : सनातन संस्था निर्मित ग्रंथ ‘त्योहार, धार्मिक उत्सव एवं व्रत’)

१७. हिंदुत्ववादियों को रक्षाबंधन के निमित्त
रक्षा-सूत्री (राखी) बांधकर उनसे धर्मकार्य में सहभागी होने का आश्वासन लें !

‘सनातन संस्था एवं हिंदु जनजागृति समितिकी ओरसे रक्षाबंधनके निमित्त शासकीय अधिकारी, हिंदुत्ववादी अधिवक्ता, अन्य हिंदुत्ववादी, विज्ञापनदाता, सनातन प्रभातके पाठक इत्यादिको राखी बांधनेका नियोजन करें । रक्षाबंधनके दिन बहनों ने भाइयों से मायाकी वस्तुओंकी अपेक्षा मनमें न रखते हुए उनसे अधिकाधिक आध्यात्मिक लाभ किस प्रकार प्राप्त हो, इसके लिए प्रार्थना करनी चाहिए । उसके लिए ऊपर बताए गए सभीको राखी बांधकर उन्हें धर्मकार्यके लिए सहभागी करना है । उन्हें राखी बांधते समय आस्थापूर्वक प्रार्थना करें कि जब भी कार्य में कोई संकट आया, तो हम आपसे सहयोग मांगने आएंगे, तब आप हमारी सहायता कीजिएगा । साथमें ऐसा भी बताएं कि ‘हम सभी संगठित होकर धर्मकार्यमें वृद्धि करेंगे और अधर्मके विरुद्ध लडेंगे, तो हम सभीको ईश्वरका आशीर्वाद भी मिलेगा ।’ – श्री. शंकर नरूटे, बेलगांव, कर्नाटक.

( संदर्भ : सनातन संस्था निर्मित ग्रंथ ‘त्योहार, धार्मिक उत्सव एवं व्रत’)

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