श्री दत्तजयंती

१. श्री दत्तजयंती

       मार्गशीर्ष पूर्णिमाके दिन मृग नक्षत्रपर सायंकाल भगवान दत्तात्रेयका जन्म हुआ, इसलिए इस दिन भगवान दत्तात्रेयका जन्मोत्सव सर्व दत्तक्षेत्रोंमें मनाया जाता है ।

दत्तजयंती दृश्यपट

२. दत्तजयंतीका महत्त्व

      दत्तजयंतीपर दत्ततत्त्व पृथ्वीपर सदाकी तुलनामें १००० गुना कार्यरत रहता है । इस दिन दत्तकी भक्तिभावसे नामजपादि उपासना करनेपर दत्ततत्त्वका अधिकाधिक लाभ मिलनेमें सहायता होती है ।

३. भगवान दत्तात्रेयके जन्मका इतिहास

पुराणोंमें ऐसा वर्णन मिलता है कि दत्तका जन्म वर्तमान मन्वंतरके आरंभमें प्रथम पर्यायके त्रेतायुगमें हुआ ।

अ. पुराणोंके अनुसार

अत्रि ऋषिकी पत्नी अनसूया महापतिव्रता थी, जिसके कारण ब्रह्मा, विष्णु एवं महेशने निश्चय किया कि उनकी पतिव्रताकी परीक्षा लेंगे । एक बार अत्रि ऋषि अनुष्ठानके लिए बाहर गए हुए थे, तब अतिथिके वेशमें त्रिमूर्ति (ब्रह्मा, विष्णु एवं महेश) पधारे एवं उन्होंने अनसूयासे भोजन मांगा । अनसूयाने कहा, ‘ऋषि अनुष्ठानके लिए बाहर गए हैं, उनके आनेतक आप प्रतीक्षा करें ।’ त्रिमूर्ति अनसूयासे बोले, ‘‘ऋषिको आनेमें समय लगेगा, हमें बहुत भूख लगी है । तुरंत भोजन दो, अन्यथा हम कहीं और चले जाएंगे । हमने सुना है कि आप आश्रममें पधारे अथितियोंको इच्छाभोजन देते हैं, इसलिए हम इच्छाभोजन करने आए हैं ।’’ अनसूयाने उनका स्वागत किया और बैठनेकी विनती की । वे भोजन करने बैठे । जब अनसूया भोजन परोसने लगी तब वे बोले, ‘‘हमारी इच्छा है कि तुम निर्वस्त्र होकर हमें परोसो ।’’ इसपर उसने सोचा, ‘अथितिको विमुख भेजना अनुचित होगा । मेरा मन निर्मल है । मेरे पतिका तपफल मुझे तारेगा ।’ ऐसा विचार कर उसने अतिथियोंसे कहा, ‘‘अच्छा ! आप भोजन करने बैठें ।’’ तत्पश्चात् रसोईघरमें जाकर पतिका ध्यान कर उसने मनमें भाव रखा, ‘अतिथि मेरे शिशु हैं’ । आकर देखती हैं, तो वहां अतिथियोंके स्थानपर रोते-बिलखते तीन बालक थे ! उन्हें गोदमें लेकर उसने स्तनपान कराया एवं बालकोंका रोना रुक गया ।

इतनेमें अत्रिऋषि आए । उसने उन्हें पूरा वृत्तांत सुनाया । उसने कहा, ‘‘स्वामिन् देवेन दत्तम् ।’’ अर्थात – ‘हे स्वामी,  भगवानद्वारा प्रदत्त (बालक) ।’ इस आधारपर अत्रि ऋषिने उन बालकोंका नामकरण ‘दत्त’ किया । अंतर्ज्ञानसे ऋषिने बालकोंका वास्तविक रूप पहचान लिया और उन्हें नमस्कार किया । बालक पालनेमें रहे एवं ब्रह्मा, विष्णु, महेश उनके सामने आकर खडे हो गए और प्रसन्न होकर उन्हें वर मांगनेके लिए कहा । अत्रि एवं अनसूयाने वर मांगा, ‘ये बालक हमारे घरपर रहें ।’ वह वर देकर देवता अपने लोक चले गए । आगे ब्रह्मदेवतासे चंद्र, श्रीविष्णुसे दत्त एवं शंकरसे दुर्वास हुए । तीनोंमेंसे चंद्र एवं दुर्वास तप करनेकी आज्ञा लेकर क्रमशः चंद्रलोक एवं तीर्थक्षेत्र चले गए । तीसरे, दत्त विष्णुकार्यके लिए भूतलपर रहे । यही है गुरुका मूल पीठ ।

४. जन्मोत्सव मनाना

      दत्तजयंती मनाने संबंधी शास्त्रोक्त विशिष्ट विधि नहीं पाई जाती । इस उत्सवसे सात दिन पूर्व गुरुचरित्रका पारायण करनेका विधान है । इसीको गुरुचरित्रसप्ताह कहते हैं । भजन, पूजन एवं विशेषतः कीर्तन इत्यादि भक्तिके प्रकार प्रचलित हैं । महाराष्ट्रमें उदुंबर (गूलर), नरसोबाकी वाडी, गाणगापुर इत्यादि दत्तक्षेत्रोंमें इस उत्सवका विशेष महत्त्व है । तमिलनाडुमें भी दत्तजयंतीकी प्रथा है । कुछ ब्राह्मण परिवारोंमें इस उत्सवके निमित्त दत्तनवरात्रिका पालन किया जाता है एवं उसका प्रारंभ मार्गशीर्ष शुक्ल अष्टमीसे होता है ।

५. दत्तयाग

इसमें पवमान पंचसूक्तके पुरश्चरण (जप) एवं उसके दशांशसे अथवा तृतीयांशसे घृत (घी) एवं तिलसे हवन करते हैं । कुछ स्थानोंपर पंचसूक्तके स्थानपर दत्तगायत्रीका जप एवं हवन करते हैं । दत्तयागके लिए किए जानेवाले जपकी संख्या निश्चित नहीं है । स्थानीय पुरोहितोंके परामर्श अनुसार जप एवं हवन किया जाता है ।

६. भगवान दत्तात्रेयकी उपासनाके अंतर्गत कुछ नित्यके कृत्योंके विषयमें ईश्वरसे प्राप्त ज्ञान

      प्रत्येक देवताका विशिष्ठ उपासनाशास्त्र है । इसका अर्थ है कि प्रत्येक देवताकी उपासनाके अंतर्गत प्रत्येक कृत्य विशिष्ट प्रकारसे करनेका शास्त्राधार है । ऐसे कृत्यके कारण ही उस देवताके तत्त्वका अधिकाधिक लाभ होनेमें सहायता होती है । दत्त उपासनाके अंतर्गत नित्यके कुछ कृत्य निश्चितरूपसे किस प्रकार करने चाहिए, इस संदर्भमें सनातनके साधकोंको ईश्वरसे प्राप्त ज्ञान यहां प्रस्तुत सारणीमें दिया है । ये और ऐसे विविध कृत्योंका शास्त्राधार सनातन-निर्मित ग्रंथमाला ‘धर्मशास्त्र ऐसे क्यों कहता है ?’ में दिया है ।

उपासनाका कृत्य कृत्यविषयक ईश्वरद्वारा प्राप्त ज्ञान
१. दत्तपूजनसे पूर्व उपासक स्वयंको कौनसा तिलक कैसे लगाए ? श्रीविष्णुसमान खडी दो रेखाओंका तिलक लगाए ।
२. दत्तको चंदन किस उंगलीसे लगाएं ? अनामिकासे
३. पुष्प चढाना

अ. कौनसे पुष्प चढाएं ?

आ. संख्या कितनी हो ?

इ. पुष्प चढानेकी पद्धति क्या हो ?

ई. पुष्प कौनसे आकारमें चढाएं ?

 

जाही एवं रजनीगंधा

सात अथवा सात गुना

पुष्पोंका डंठल देवताकी ओर कर चढाएं ।

चतुष्कोणी आकारमें

४. उदबत्तीसे आरती उतारना

अ. तारक उपासनाके लिए किस सुगंधकी उदबत्ती ?

आ. मारक उपासनाके लिए किस सुगंधकी उदबत्ती ?

इ. संख्या कितनी हो ?

ई. उतारनेकी पद्धति क्या हो ?

 

चंदन, केवडा, चमेली, जाही एवं अंबर

हीना

दो

दाएं हाथकी तर्जनी एवं अंगूठेके बीच पकडकर घडीकी सुइयोंकी दिशामें तीन-बार पूर्ण गोलाकार घुमाकर उतारें ।

५. इतर (इत्र) किस सुगंधकी अर्पण करें ? खस
६. दत्तकी न्यूनतम कितनी परिक्रमाएं करें ? सात

(संदर्भ – सनातनका ग्रंथ – भगवान दत्तात्रेय : खंड १)

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