कोजागरी पूर्णिमा

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आश्विन पूर्णिमा अर्थात कोजागरी पूर्णिमा । इसकाे पूर्णिमा शरद एवं नवान्न पूर्णिमा भी कहते है । श्रीमद्भागवतमें उल्लेख है कि इस दिन भगवान श्रीकृष्णने व्रजमंडलमें रासोत्सव मनाया । कोजागरी (शरद पूर्णिमा / आश्विन पूर्णिमा) पूर्णिमापर एवं कार्तिक अमावस्यापर भी लक्ष्मीपूजन करते हैं । इसमें गुह्य यह है कि पूर्णिमा एवं अमावस्या, दोनों ही शुभ हैं ।

कोजागरी पूर्णिमा का महत्त्व

अ. पूरे वर्षमें केवल इसी दिन चंद्र पृथ्वीके सर्वाधिक निकट होता है एवं इसीलिए बडा दिखाई देता है । मूल चंद्रतत्त्वका अर्थात ‘चंद्रमा’का प्रतिनिधित्व करनेवाला एवं हमें दिखाई देनेवाला चंद्र ‘चंद्रमा’ समान ही शीतल एवं आह्लाददायक है । ईश्वरके अवतारोंसे साधकोंको चंद्र समान शीतलताका अनुभव हो सकता है, इसीलिए रामचंद्र, कृष्णचंद्र जैसे भी नाम राम-कृष्णको दिए गए । चंद्रके इन गुणोंके कारण ही ‘नक्षत्राणामहं शशी’ अर्थात ‘नक्षत्रोंमें मैं चंद्र हूं’, ऐसा भगवान श्रीकृष्णने श्रीमद्भगवद्गीतामें (अध्याय १०, श्लोक २१) कहा है ।

आ. मध्यरात्रिको लक्ष्मी चंद्रमंडलसे भूतलपर आकर पूछती हैं – ‘को जागर्ति’ अर्थात ‘कौन जाग रहा है ?’, और जो जग रहा हो उसे अन्न-धनसे संतुष्ट करती हैं ।

कोजागरी पूर्णिमा का उत्सव मनानेकी पद्धति

‘इस दिन नवान्न (नए धान्यसे) भोजन बनाते हैं । इस व्रतके रात्रिकालमें लक्ष्मी एवं ऐरावतपर बैठे इंद्रकी पूजा की जाती है । पूजाके पश्चात देव व पितरोंको कच्चा चिवडा (पोहे) एवं नारियलका जल समर्पित कर उसका प्राशन नैवेद्यके रूपमें करते हैं; तदुपरांत उसे सबमें बांटते हैं । शरद ऋतुकी र्पूिणमाकी श्वेत चांदनीमें चंद्रको गाढे किए गए दूधका नैवेद्य चढाते हैं । चंद्रके प्रकाशमें एक प्रकारकी आयुर्वेदिक शक्ति है । इसलिए यह दूध आरोग्यदायी है । इस रात जागरण करते हैं । मनोरंजनके लिए विविध बैठे खेल खेलते हैं । अगले दिन सवेरे पूजाके पारण (व्रतके उपरांत पहला भोजन करनेकी क्रिया) करते हैं ।

कोजागरी पूर्णिमा का भावार्थ

शरदपूर्णिमाकी रात्रिमें जो जागता है और सावधान रहता है, उसे ही अमृतपानसे लाभ होता है !

कोजागर = को + ओज + आगर । इस दिन चंद्रकिरणोंद्वारा सबको आत्मशक्तिरूपी (ओज) आनंद, आत्मानंद, ब्रह्मानंद (क = ब्रह्मानंद) जी भर मिलता है; परंतु यह अमृतप्राशन हेतु ऋषि पूछते हैं, ‘कोऽजाग्रती ?’, अर्थात कौन
जागृत है ? कौन दक्ष है ? कौन इसकी महिमा जानता है ? जो जागृत एवं दक्ष और जिसे इसकी महिमा ज्ञात है, उसीको इस अमृतप्राशनका लाभ मिलेगा !’’ – प.पू. परशराम पांडे महाराज, देवद, पनवेल.

संदर्भ : सनातन का ग्रंथ, ‘धार्मिक उत्सव एवं व्रतों का अध्यात्मशास्त्रीय आधार

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