‘हिन्दू धर्म’ ही भारतीयों की राष्ट्रीयता और भारतभूमि ही ‘हिन्दू राष्ट्र’ !

सारणी


प्रस्तुत लेख ‘हिन्दू’ शब्द की उत्पत्ती, ‘हिन्दू धर्म’ ही भारतीयों की राष्ट्रीयता और भारतभूमि ही ‘हिन्दू राष्ट्र’ कैसी है, विभाजन के पश्चात भारत को ‘हिन्दू राष्ट्र’ घोषित न करना आदी सूत्रों पर प्रकाश डालता है ।

१. ‘हिन्दू’ शब्द का उद्गम

प्राचीन काल से ही इस देश के लोग ‘हिन्दू’के नाम से, जबकि यह भू-प्रदेश ‘भारत’ और ‘हिन्दुस्थान’के नाम से विख्यात है । ‘हिन्दू’ नामकरण ‘सिन्धु’ नदी के नाम से हुआ है । अरबी, ईरानी और फारसी लोग ‘स’ का उच्चारण ‘ह’ करते हैं । वे आरंभ से ही ‘सिन्धु’ शब्द का उच्चारण ‘हिन्दू’ कर रहे हैं । यूनानी (ग्रीक) सिन्धु’ शब्द का उच्चारण ‘इण्डस’ करते हैं । इस कारण उन्होंने हिन्दुओं को ‘इंडियन’ कहा । चीनी भाषा में ‘सिन्धु’को ‘शिन्तू’ कहते हैं । इसीलिए चीनी यात्री ‘ह्यु-एन-त्स्यांग’ने अपने लेख में भारतीयों का उल्लेख ‘जिन्तू’ अथवा ‘हिन्दू’ किया था । तात्पर्य यह कि ‘हिन्दू’ शब्द का प्रसार ईसाई और इस्लाम पंथ से बहुत पहले हो चुका था ।

अरब राष्ट्रों से आए इस्लामी आक्रमणकारियों का कठोर प्रतिकार हिन्दुओं ने ही किया था । इसलिए उन्हों ने हिन्दुओं को ‘काफिर’ (धर्मशत्रु) माना । इसी कारण ‘फारसी’ एवं ‘अरबी’ शब्दकोशों में ‘हिन्दू’ शब्द का अर्थ ‘काफिर’ लिखा गया है । अरब, तुर्क एवं मुगल आक्रमणकारियों के विरुद्ध दीर्घकालीन संघर्ष में ‘हिन्दू’ नाम राष्ट्रवासियों के सुखदुःख, जय-पराजय, त्याग एवं बलिदान की स्मृतियों से पवित्र हो गया है ।

अ. ‘हिन्दू’ शब्द की राष्ट्रवाचक व्याख्या

आसिन्धुसिन्धुपर्यंता यस्य भारतभूमिका ।
पितृभूः पुण्यभूश्चैव स वै हिन्दुरिति स्मृतः ।।

– वीर सावरकर

अर्थ : स्वातंत्र्यवीर सावरकरजी के अनुसार, ‘सिन्धु नदी के उद्गमस्थान से कन्याकुमारी के समुद्रतक (विस्तृत भूभाग को) भारत भूमि को जो पितृ भूमि (मातृ भूमि) और पुण्य भूमि मानते हैं, उन्हें ‘हिन्दू’ कहते हैं ।

२. राष्ट्र के विविध नाम तथा उनका इतिहास

अ. हिन्दुस्थान

भविष्यपुराण के अनुसार सिन्धुका पश्चिमी भू-प्रदेश ‘हिन्दुस्थान’के नाम से विख्यात है ।

आ. भारत

सम्राट भरत ने कश्मीर से कन्याकुमारी और सिन्धु नदी से ब्रह्मपुत्र नदीतक के प्रदेश में एकछत्र राज्य किया । उनके इस पराक्रम की स्मृति में यह प्रदेश ‘भारत’ अथवा ‘भारतवर्ष’के नाम से पहचाना जाने लगा । विष्णुपुराण (अंश २, अध्याय ३, श्लोक १) में भारत की चतुःसीमा बतानेवाला श्लोक इस प्रकार है –

उत्तरं यत् समुद्रस्य हिमाद्रेश्चैव दक्षिणम् ।
वर्षं तद् भारतं नाम भारती यत्र सन्ततिः ।।

अर्थ : समुद्र के उत्तर में और हिमादि्र के (हिमालय के) दक्षिण में जो वर्ष (भूमि) है, उसका नाम भारत है । यहां की प्रजा को भारतीय प्रजा कहते हैं ।

इ. इंडिया

‘सिन्धु’को ‘इण्डस’ कहनेवाले ग्रीकों के माध्यम से यूरोप महाद्वीप भारत से परिचित हुआ । इस कारण उन्होंने भी भारत को ‘इंडिया’ संबोधित किया ।

३. ‘हिन्दू धर्म’ ही भारतीयों की राष्ट्रीयता और भारतभूमि ही ‘हिन्दू राष्ट्र’ !

पंचखंड भूमंडल में ‘भरतखंड (भारत)’ सर्वाधिक पुण्यवान है; क्योंकि यहां हिन्दू (सनातन) धर्म का असि्तत्व है । महर्षि अरविंद ने कहा था, ‘‘हम भारतीयों के लिए हिन्दू धर्म ही राष्ट्रीयता है । इस हिन्दू राष्ट्र का जन्म हिन्दू धर्म के साथ ही हुआ है तथा उसके साथ ही इस राष्ट्र को गति प्राप्त होती है । हिन्दू धर्म के विकास से ही इस राष्ट्र का विकास होता है ।’’

‘राष्ट्र’ एक ऐसा जनसमूह है, जिसकी भाषा, धर्म अथवा पंथ, परंपरा, भूप्रदेश और इतिहास एक होता है; तथापि, राष्ट्रीयता निर्माण होने के लिए सबसे महत्त्वपूर्ण बात होती है उस समाज के एक ‘राष्ट्र’ होने की दृढ इच्छाशकि्त । अतः इस संबंध में पश्चिमी विचारक रेनन कहता है, ‘राष्ट्र की अवधारणा का मूल आधार हृदयों में जागृत होनेवाली एकता की तीव्र इच्छा और उसकी प्रेरणा’ है । यह आंतरिक चेतना और प्रेरणा ही राष्ट्र की आत्मा होती है । राष्ट्र और राष्ट्रीयता के मूलतत्त्वों एवं लक्षणों की कसौटी पर हिन्दू समाज की ओर देखने से ही, ‘हिन्दू राष्ट्र’की अवधारणा स्पष्ट होती है । भारत की आध्याति्मक और सांस्कृतिक परंपरा वैदिक है । यहां की सर्व भाषाएं संस्कृत भाषा से उत्पन्न हुई हैं । इसीलिए कश्मीर से कन्याकुमारी तक सर्व धार्मिक विधियां वैदिक पद्धति से और संस्कृत भाषा में की जाती हैं ।

इसीलिए भारत भूमि केवल हिन्दुबहुल भूमि नहीं; अपितु यह भूमि अर्थात एक स्वयंभू ‘हिन्दू राष्ट्र’ है । हिन्दू धर्म को राज्याश्रय मिलने पर ही इस भूमि पर ‘हिन्दू राष्ट्र’ अवतरित होता है । सिन्ध के राजा दाहीर, लाहौर के महाराजा जयपाल, देहली के (दिल्ली के) सम्राट पृथ्वीराज चौहान, राणा हम्मीर, राणा सांगा, महाराणा प्र्रताप, विजयनगर के कृष्णदेवराय, छत्रपति शिवाजी महाराज, महारानी लक्ष्मीबाई, राजा कुंवरसिंह इत्यादि सर्व हिन्दू राजाओं का उद्देश्य इस्लामी आक्रमकणकारियों से देश को मुक्त कर यहां ‘हिन्दुपदपातशाही’ अथवा ‘हिन्दू राज्य’ स्थापित करना था ।

अ. ‘हिन्दू’ शब्द भौगोलिक है तथा उसका स्पष्ट अर्थ राष्ट्रवाचक है !

सिन्ध प्रांतपर वर्ष ७१२ में अरबों का राज्य प्रारंभ हुआ तथा लाहौरतक का पश्चिम पंजाब वर्ष १०२० में गजनी के राज्य का भाग बना । वर्तमान पाकिस्तान पहली बार वर्ष १०२० में बना था; परंतु हिन्दुओं ने उसे कभी स्थायी मान्यता प्रदान नहीं की । महाराजा रणजीत सिंह एवं हरिसिंह नलुवाने खैबरखिंडी तक के क्षेत्र पर वर्ष १०२० में पुनः विजय प्राप्त की एवं तत्कालीन ‘पाकिस्तान’ समाप्त किया । वहां पुनः पाकिस्तान बना, उस समय अठारहवें शतक में मराठा सैनिकों के अश्व पुणे नगर से निकले तथा सिंधु नदी का पानी पीकर ही माने ! लाहौर, पेशावर तथा सीमापार (अटक के पार) भगवा ध्वज फहराने लगा । इस प्रकार अनेक शतक हमारे पूर्वजों ने ‘हिन्दू’ नाम से आक्रमणकारियों का सामना किया तथा हिन्दुस्थान को ‘हिन्दू देश’के नाम से विख्यात किया । इससे यह प्रतीत होता है कि ‘हिन्दू’ शब्द राष्ट्रवाचक है ।

आ. भारतभूमि को ‘मातृभूमि’ मानना हिन्दुओं की राष्ट्रीयता ही है !

हिन्दूमानस प्राचीन काल से सदैव राष्ट्रभकि्त की ओर आकर्षित हुआ है । इसलिए हिन्दुस्थान पहला देश होगा, जिसे ‘मातृभूमि’के नाम से जाना गया । प्रभु श्रीराम लक्ष्मण से कहते हैं, ‘जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी ।।’ अर्थात ‘माता एवं मातृभूमि स्वर्ग से भी श्रेष्ठ हैं !’ शिकागो (अमेरिका)से लौटते समय भारतीय तट निकट आनेपर स्वामी विवेकानंद ने कहा था, ‘‘इस क्षण मेरी पि्रय मातृभूमि से आनेवाली पवन ही नहीं; धूलि भी मुझे बहुत पि्रय लग रही है । इंग्लैंड में एक बार समुद्र की ओर देखकर वीर सावरकरने ‘ने मजसी ने परत मातृभूमीला । सागरा प्राण तळमळला ।’ ऐसी काव्यरचना की थी । अर्थात ‘हे सागर मुझे पुनः मातृभूमि ले चलो । मेरे प्राण तडप रहे हैं ।’

विष्णु के सातवें अवतार, एक संन्यासी तथा क्रांतिकारी का मातृभूमि के प्रति प्रेम हिन्दू मानस में छिपी राष्ट्रभकि्त का दृश्य रूप है । आज भी ‘वन्दे मातरम्’का उच्चारण करते समय हिन्दू भारतभूमि के समक्ष नतमस्तक होते हैं ।

४. विभाजन के पश्चात भारत को ‘हिन्दू राष्ट्र’ घोषित न करना, हिन्दुओं के साथ अन्याय !

वर्ष १९४७ में देश के विभाजन में भारत के मुसलमानों को इस्लामी सिद्धांत पर आधारित ‘पाकिस्तान’ राष्ट्र प्राप्त हुआ । वर्ष १९४७ में मुसलमानों की जनसंख्या २२ प्रतिशत थी; परंतु उन्हें भारतीय भूमि का ३० प्रतिशत क्षेत्र ‘राष्ट्र’के रूप में प्राप्त हुआ । जो भारत को ‘पुण्यभूमि एवं ‘पितृभूमि’ नहीं मानते थे, वे पाकिस्तान चले गए । जिन्होंने स्वयं के भूतकाल, वर्तमानकाल एवं भविष्यकाल को इस हिन्दूभूमि से संबंधित मानकर इस भूमि में रहने का निर्णय लिया, उन्होंने स्वयं की राष्ट्रीयता सिद्ध की । विभाजन से बोध लेकर इस राष्ट्रवादी समाज के लिए भारत देश को वर्ष १९४७ में ही ‘हिन्दू राष्ट्र’ घोषित करना आवश्यक था; परंतु दुर्भाग्यवश वैसा नहीं हुआ !

५. धर्मनिरपेक्ष (अधर्मी) लोकतंत्र में ‘हिन्दू राष्ट्र’ शब्द का प्रयोग ही लुप्त !

विगत सहस्त्रों वर्षों के विधर्मी आक्रमणकारियों तथा स्वतंत्रता के उपरांत सत्ता में आए धर्मनिरपेक्ष अर्थात अधर्मी वृति्त के हमारे ही राजनेताओं के कारण हिन्दू धर्म राजाश्रय से वंचित हो गया; परिणामस्वरूप आज भारतभूमि में ‘हिन्दू राष्ट्र’ शब्द का प्रयोग ही कठिन हो गया है । भारतीय लोकतंत्र में सत्ता हिन्दू शासनकर्ताओं के हाथ में होते हुए भी हिन्दू धर्म का राजाश्रय खंडित हुआ है ।

६. धर्मनिरपेक्ष लोकतंत्र से भारत की अधोगति होनेके कारण ‘हिन्दू राष्ट्र’की स्थापना की आवश्यकता !

प्राचीन भारत में सनातन वैदिक हिन्दू धर्म को राज्याश्रय प्राप्त होने के कारण यह राष्ट्र ऐहिक (व्यावहारिक) तथा पारमार्थिक (आध्याति्मक) दृषि्ट से प्रगति के पथ पर था । इसलिए सुसंस्कृत एवं समृद्ध समाज, उत्तम वर्णव्यवस्था, आचार-विचारों की शुदि्ध, आदर्श कुटुंबव्यवस्था इत्यादि की स्थापना इस हिन्दू धर्माधारित राष्ट्र में हुई थी । परंतु स्वतंत्रता के ६ दशकों के पश्चात भी ‘धर्मनिरपेक्ष लोकतंत्र’की प्रशंसा करनेवाले सर्वदलीय राजनेताओं के लिए सुसंस्कृत समाज एवं समृद्ध राष्ट्र की स्थापना करना संभव नहीं हुआ । इसके विपरीत अनेक सामाजिक, राष्ट्रीय एवं धार्मिक समस्याएं गाजर-घास के समान फैल रही हैं; इसलिए यह राष्ट्र ही तीव्र गति से विनाश की ओर अग्रसर हो रहा है । स्वतंत्रता के काल से ही इन समस्याओं को सुलझाने का प्रयास किया जा रहा है; परंतु वे दिन प्रतिदिन और अधिक जटिल बन रही हैं । इन समस्याओं की तीव्रता जानने के पश्चात हमारे द्वारा अपनाए गए लोकतंत्र की निरर्थकता तो ध्यान में आएगी ही, साथ ही हिन्दू धर्म पर आधारित ‘हिन्दू राष्ट्र’ स्थापित करने की अनिवार्यता भी समझमें आएगी ।

जयतु जयतु हिन्दुराष्ट्रम् ।

संदर्भ : ‘हिन्दू जनजागृति समिति’द्वारा समर्थित ग्रंथ ‘हिन्दू राष्ट्र क्यों आवश्यक है ?

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