सेनापती तात्या टोपे : रणभूमि का एक आदर्श नेतृत्व !

हिंदुओ, सभी राजनितीक दल हमारे क्रांतिकारकोंको बड़ी चतुराई से भूल गये हैं, आप ऐसी कृतघ्नता, न करें !

ब्रिटिश सेना की नाक में दम करनेवाले, ‘दुसरे शिवाजी’ सेनापती तात्या टोपे !

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यदि वर्ष १८५७ के स्वातंत्र्य संग्राम का सार जानने की इच्छा है, तो हमें तात्या टोपे के चरित्र के एक पक्ष को सूक्ष्म दृष्टि से देखना चाहिए।

इस स्वातंत्र्य संग्राम में पराजित होने के पश्चात अगले १० माह तक तात्या टोपे ने वृकयुद्ध पद्धति अर्थात कूटनीति से चकमा दे कर एवं एकाएक आक्रमण कर ब्रिटिश सेना की नाक में दम कर रखा था। कुछ अवसर पर वे शत्रु की दृष्टि में आते थे तो, उनकी सेना में भगदड मच जाती थी, तो तात्या वहां से खिसक कर अन्य स्थान पर जाकर नई सेना स्थापित करते थे। जब भी तात्या चाहते थे, वे नई सेना खडी कर लेते थे, इसका अर्थ यह कि, लोगों में ब्रिटिशोंके विरोध में इतना असंतोष व्याप्त था एवं उन्हें मुक्त होने की इतनी लगन थी कि, मारते मारते मृत्यु को स्वीकारनेवाले देश प्रेमी उन्हें सरलता से उपलब्ध होते थे।

यह भी उतना ही सच है कि, तात्या के शौर्य पर लोगोंका दृढ विश्वास था।

लोग जानते थे कि तात्या टोपे अंत तक अथक रूप से शक्ति एवं युक्ति से लडाई करते रहेंगे !

– श्री. अरविंद विठ्ठल कुळकर्णी, ज्येष्ठ पत्रकार, मुंबई

अनंत काल तक अपराजित रह चुके, तात्या टोपे !

तात्या टोपे ‘क्षण’ के पराजित एवं ‘अनंत काल’ के अपराजित थे ! वे तब के ‘विद्रोही’ एवं वर्तमान के ‘स्वातंत्र्यवीर’ थे !

वे उस ‘समय’ के अपराधी; परंतु ‘आज’ के अधिदेव थे ! सत्ताधारी अंग्रेजोंका पराजय एवं सेनापति तात्या की विजय हुई थी। आज पूर्णांश से नहीं, अपितु बहुअंश से तात्या टोपे का सपना साकार हो गया था !

– श्री. पु.भा. भावे (मासिक स्वातंत्र्यवीर, दीपावली अंक २००६, पृष्ठ ७०)

‘विजेता’ एवं ‘अवतारी’ तात्या टोपे !

सेनापति तात्याराव सावरकर तात्या टोपे की आत्मा को आवाहन कर प्रार्थना कर रहे थे कि, यदि आप अब तक भी इस अवकाश में कहीं अस्वस्थ हों, तो शांत होइए, शांत होइए ! आप पराजित नहीं, विजयी हो ! ‘अपराधी’ नहीं, अपितु ‘अवतारी’ हो !

– पु.भा. भावे (स्वातंत्र्यवीर, दीपावली विशेषांक २००८)

‘दुसरे शिवाजी’ ऐसा परिचय देनेवाले १८५७ के स्वातंत्र्य संग्राम के सेनापति तात्या टोपे !

यदि १८५७ के युद्ध में तात्या टोपे एकमात्र सेनापति होते एवं एक निश्चित दिन ‘विद्रोह’ किया होता, तो १५० वर्षपूर्व ही भारत स्वतंत्र हो गया होता !

‘लंदन टाईम्स’ समान शत्रुराष्ट्र के समाचारपत्र ने भी तात्या की चतुराई एवं कल्पकता की प्रशंसा की थी। उस समय ब्रिटिश समाचारपत्र ‘प्रति शिवाजी’ के रूप में उनका नामोल्लेख कर रहे थे !

– डॉ. सच्चिदानंद शेवडे, डोंबिवली (‘पढें एवं चूप रहें’ दैनिक तरुण भारत, बेलगांव आवृत्ति, २९.६.२००८)

१८५७ के स्वातंत्र्य संग्राम के भारतीयोंके सरसेनापति तात्या टोपे की पुण्यतिथि न मनानेवाली, नासिक महानगरपालिका !

वर्ष १८५७ के प्रथम भारतीय स्वातंत्र्य संग्राम के सेनापति तात्या टोपे की पुण्यतिथि नासिक जिले में उनके येवला जन्मगांव में २३ अप्रैल २०१० को राष्ट्रभक्तोंने बड़े उत्साह के साथ मनाई; परंतु नासिक मनगरपालिका को तात्या टोपे की पुण्यतिथि का विस्मरण हो गया था !

भारतीय विद्यार्थी सेनाद्वारा पूर्व सूचना देने पर भी महानगरपालिका ने तात्या टोपे की प्रतिमा को उचित सम्मान अथवा उनका पूजन, ऐसा कुछ भी नहीं किया !

स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात

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